November 23, 2024



चाइन्शील बुग्याल यात्रा

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सत्या रावत 


उत्तराखंड सरकार द्वारा घोषित किये गए “ट्रेक ऑफ द ईयर 2017” चाइन्शील बुग्याल में 1 अक्टूबर से 7 अक्टूबर के अंतिम प्रोग्राम में जाने का मौका मिला।


दरअसल सरकार द्वारा इसकी घोषणा के समय ही मेरे द्वारा इसे बुक करवा लिया गया था किन्तु मौसम के बदलाव के कारण इसका शेड्यूल जून से बदलकर सितम्बर अक्टूबर में कर दिया गया। इस प्रोग्राम को भारत की प्रसिद्ध ट्रेकिंग संस्था India Hikes द्वारा क्रियान्वित किया गया। 1 अक्टूबर को देहरादून से इस ट्रैक के बेस कैम्प बलावट तक पहुंचे। ग्रामीणों द्वारा फूलमालाओं और जोशोखरोश से स्वागत होते हुए देख मन अभिभूत हो गया। बलावट गांव समुद्र तल से 6700 फ़ीट की ऊंचाई पर है। 2 अक्टूबर को अपनी असल यात्रा शुरू हुई। यह बलावट से शुरू होकर सेबों के शानदार बगीचों से होकर गुजरी। कई जगहों पर ग्रामीणों द्वारा मुफ्त में सेब और बाबुगोशा फल अपनी और से मुफ्त में भेंट किए गए। इनके उपरांत देवदार, खरसु, मोरू के घने जंगलों से होकर रास्ता था। लगातार चढ़ाई और पीठ पर लगभग 12 किलो के वजन होने से हालात खस्ता होने लगी लेकिन थोड़ा सा संयम और साहस रखते हुए यात्रा जारी रखी। यह इस दिन खल्ला थाच में खत्म हुई। थाच यहां गड़रियों द्वारा अपनी भेड़ बकरियों को रात्रि विश्राम के लिए प्रयुक्त होने वाले पड़ावों को कहा जाता है। इस दिन की यात्रा में लगभग 9 किमी का सफर तय किया गया। लगातार चढ़ाई होने के कारण यह इस ट्रैक का सबसे कठिन रास्ता है। इस थाच की समुद्र तल से ऊंचाई 9800 फ़ीट है।


3 अक्टूबर को प्रातः 8 बजे पुनः ट्रेक प्रारम्भ किया। इस दिन रास्ते मे एक शानदार बुग्याल सुनावटी थाच पड़ा। इसकी हरियाली और विस्तृत मैदान देखने लायक था। इस दिन रात्रि विश्राम भूता थाच में किया गया। इस थाच के चारों ओर भोज पत्र के हजारों पेड़ हैं। आज कुल 6 किमी यात्रा हुई। इस स्थल की समुद्रतल से ऊंचाई 10800 फ़ीट है। 4 अक्टूबर को प्रातः यात्रा प्रारंभ की। इस दौरान रास्ता बहुत जोखिम भरा और सँकरा था लगभग 2 किमी जाने के बाद हिमालय की एक विस्तृत श्रृंखला सामने थी। जिसमे गंगोत्री, स्वर्गारोहिणी, बन्दरपूँछ, कालनाग, थलाई सागर चोटियां प्रमुख हैं। शानदार बुग्याल और हिमालय की चोटियों को लगातार देखते रहने से मन को असीम सुख का अनुभव होता रहा। इस दिन इस सफर की सबसे शानदार कैम्प साइट समता थाच में रुकने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सौभाग्य से इस दिन पूर्णिमा भी थी। पूरे ट्रेक के दौरान हमें मौसम साफ ही मिला अतः ऊंची चोटियों से सूर्योदय, सूर्यास्त तथा चन्द्रोदय और चंद्रमा को अस्त होते हुए देखना एक अद्भुत दृश्य होता था। समता थाच में हमें यह सब देखने को मिला। चंद्रमा की रोशनी में दूर तक बुग्याल को देखने से हुई सुखद अनुभूति को शब्दों में बयान करना सम्भव नहीं। चूंकि इस थाच की समुद्र तल से ऊंचाई 12300 फ़ीट के करीब है अतः पूर्णिमा में रात में इसके चारों ओर की खूबसूरती देखते ही बनती है। इस दिन हम लोगों द्वारा कुल 6 किमी के करीब यात्रा की गई।

5 अक्टूबर को समता थाच से आगे की ओर बढ़े। यहां पर अधिकतर ट्रेकिंग हिमाचल प्रदेश की सीमा में होता है। इस जगह पर रोहड़ू चिटगांव होकर एक मोटर मार्ग भी कुछ दूरी पर बना है जो सुदूर के गांवों डोडरा क्वार तक जाता है। इसी दिन हमें इस ट्रैक के सबसे ऊंचाई पर स्थित स्थल जिसकी ऊंचाई 13000 फ़ीट है पर भी पहुंचे। कुल दो दिन तक हिमालय की विस्तृत श्रृंखला देखने के बाद आज शाम अलविदा कहकर अपने विश्राम स्थल कास्मोल्टी थाच पहुंचे। यह स्थल समुद्र तल से 12400 फ़ीट की ऊंचाई पे अवस्थित है। यह स्थान भी समता थाच की तरह एक बड़े बुग्याल के बीच मे स्थित है। यहां पर अपना सामान रखने के बाद पास की एक पहाड़ी पर चढ़ गए। यहां से भी चाइन्शील बुग्याल की एक विस्तृत फैलाव दिखता है। रात में यहां से हिमाचल के गांव ऐसे दिखते हैं जैसे जमीन पर तारे बिछे हुए हों।


6 अक्टूबर की सुबह अपने कैम्प से प्रस्थान कर सबसे पहले हिमाचल की सीमा में 12000 फ़ीट की ऊंचाई पर अवस्थित सरुताल पहुंचे। बुग्याल के बीचों बीच स्थित इस झील की सुदरता अद्भुत है। इसके पश्चात थोड़ा आगे जाने पर टिकुला थाच व टिकुला ताल में विश्राम कर लंच किया। इसके पश्चात वापसी के लिए नीचे उतरने लगे। यहां पर भी मोरू का विस्तृत फैला हुआ जंगल है और कई जगह से घाटी का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। थोड़ा उतरने के बाद आज के अपने केम्प स्थल मोरियाच थाच पहुचे। जो देवदार के घने वृक्षों के बीच अवस्थित था। इस स्थल की ऊंचाई 10200 फ़ीट है।

7 अक्टूबर को प्रायः जल्दी उठकर अपने बेस कैम्प के लिए निकले। तंग रास्ते और ख़ड़ी ढलान होने के कारण दल के कई सदस्यों को चलने में परेशानी हुई। लगभग 1 बजे बलावट पहुंचने पर ग्रामीणों द्वारा फूलमालाओं और ढोल नगाड़ों से दल का स्वागत किया गया। काफी बड़ी संख्या में लोगों देखकर आश्चर्य के साथ एक एक सुखद अनुभूति भी हुई। दल की मुझे भी जनसभा को सम्बोधित करने की इच्छा व्यक्त की गई। मैने अपने और दल के समस्त सदस्यों की ओर से ग्रामीणों को धन्यबाद देकर देहरादून की ओर प्रस्थान प्रस्थान किया। देर रात देहरादून पहुंचकर सभी से विदा लेकर घर पहुँचा। हिमालय में जाकर महसूस होता है कि प्राकृतिक सुंदरता, शांति, जीवन, संघर्ष, निश्छल प्रेम और अपनापन क्या चीज होती है और बार 2 जाकर भी मैं लौट तो आता हूँ लेकिन मन वहीं कहीं डोलता रहता है।
जल्द लौटूंगा फिर इन्ही वादियों में। क्योंकि जो यहां मुफ्त में मिलता है वो कहीं लाखों देकर भी नहीं मिलेगा।




फोटो सौजन्य – सत्या रावत