आओ खुशियों का स्वागत करें
महावीर सिंह जगवान
सुकून भरी वादियों मे हर दिन की तरह प्रात: होते ही नाना प्रकार के पच्छियों का मधुर कलरव
मखमली बुग्यालों मे अनन्त पुष्पों का सतरंगी चादर खिलने के लिये आतुर, शांत सरोवरों मे हरे भरे पर्वत श्रृँखलाऔं का छाया चित्र, सदानीरा पावन नदियों की मंद मंद खुशबुहाहट उठ जाग रे मानव। सूरज की धवल किरणे हिम से आच्छादित शैल पर्वत को स्वर्ण रूप देकर धरा पर आने के पावन लक्ष्य से गर्वित होकर नृत्य करती हुई, सम्पूर्ण धरा के अन्धकार को चीरकर उत्सव से प्रकाशित, धरा और मानव का खिलता स्वछन्द अंतस मानो धरा प्रभात की बेला पर स्वर्ग से प्रतिस्पर्धा कर रही हो, हर दिन की तरह आज नंदा भी हर्षित और भावुक है, कुछ ही दिनो मे आने करवा चौथ का पावन पर्व उसे उत्साहित और चिन्तित कर रहा है। चेहरे पर मुस्कान का भाव लेकर अपने सास ससुर को सुबह की चाय देते हुये और सास की पूछना “नंदा बेटा घर आ रहा है न” तभी बात को आगे बढाते हुये ससुर जी “मेरा बेटा जरूर समय पर पहुँच जायेगे, खुश रहना बेटी अच्छी तैयारियाँ करना “नंदा यह सब सुन कर भावुक हो गई और अपने कमरे मे जाकर अपनी दोनो बेटियों को सीने से चिपकाकर प्रियतम की याद मे, भावुक होकर ममत्व और प्रेम से भरे सुनहरे आँखों से आँसुऔं की बूँदे टपकने लगी, फिर स्वयं को ढाँढस देती हुई अपनी दोनो बेटियों सुनंदा और प्रिय नंदा को जगाती हुई उठो मेरी आँखो के तारे आज गणित और हिन्दी का पेपर है तुम्हारा कल और अधिक सो लेना क्योंकि कल छुट्टी भी है और मम्मी का व्रत भी।
सुनंदा और प्रियनंदा उठती हैं अपनी माँ के पाँव छूती हैं, दादा दादी के कमरे मे जाकर उन्हें नमन करते हुये थोड़ा अपनी पढाई और आँखो को मिचलाती हुई, क्योंकि परीक्षा की वजह से दोनो बहिने रात को ग्यारह बजे तक पढ रही थी इसलिये थोड़ी से असहजता तो होती ही है। दोनो बहिने सुबह का कलेऊ खाकर दादा दादी और माँ का आशीष लेकर खुशी से कुबलाती हुई चुपके से माँ के कान मे कहती हैं, “जिया व्रत के लिये पपा आयेंगे न” और हँसती हुई परीक्षा के तनाव से मुक्त होकर मंद मंद कदमो से आपस मे बातें कर रही हैं हम परीक्षा अच्छे नम्बरों से पास करेंगे अपने मम्मी पप्पा का नाम रोशन करेंगे।
नंदा खुश भी है और चिन्तित भी क्यों परसों रात अपने प्रियतम शिव से बातें हुई थी जिसमे शिव ने कहा था “नंदा तू अपनी पूरी तैयारी करना, मेरी तीन दिन की ड्यूटी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ लगी है और हो सकता है शनिवार को आदरणीय अजित डोभाल जी का कार्यक्रम बद्रीनाथ और माणा का है। डोभाल जी सायद इतवार की सुबह छुट्टी दे दें और सोमवार को मे देहरादून ड्यूटी ज्वाइन कर दूँगा, नंदा बद्रीविशाल की कृपा से जरूर पहुँच जाऊँगा चिन्ता मत करना सुनंदा और प्रिय नंदा को मेरा स्नैह कहना।”
नंदा के अंतस मे निरन्तर बद्रीविशाल का सुमिरन चल रहा है। उसकी सहेली गौरी उससे यह कहने आयी है आज बाजार जाना है और व्रत सामग्री लेनी है। पहाड़ी ढलानो पर रचे बसे झुरमुट सदृश गाँवो के आँगन से पगडंडियों और छोटे छोटे बाजारों और कस्बों मे एक नया कौतूहल, एक नया संगीत, एक नये अंदाज मे सजने सँवरने की आकाँक्षा मानो धरती मे परियों के अवतरण की तैयारियाँ हो। गाँवो मे नया बाजार विकसित हुआ है जैसे मुम्बई और महानगरों मे फुटपाथ पर सुबह अपने बक्शों और पोटरी को खोलकर बाजार सजते हैं वैसे ही अब पहाड़ों मे गाँव गाँव पैदल चढाई चढकर फेरीवालों ने नया बाजार हथिया लिया है, इसमे नजीबाबाद से लेकर किसनगंज (पं बंगाल) और नेपाल के सुदूर हिमालयी पहाड़ी जिलों के लोग हैं। इनकी कौशलता ने पहाड़ियों के स्वरोजगार के दम्भ को बड़ी चुनौती दी है। इस नीति ने दैनिक नगद बाजार पर चालीस फीसदी कब्जा कर रखा है। फेरी वालों से लेकर छोटे छोटे ग्रामीण दुकानदार और बाजार इस पर्व पर ऐसे सजे हैं मानो यह उत्सव (करवाचौथ व्रत) दीवाली की चकचौंध मे सरोवार हो रखा हो।
नंदा की देवरानी जेठानी सहित गाँव की पन्द्रह से अधिक महिलायें बाजार जाने की तैयारियाँ कर रही हैं, नंदा के ससुर सास से कह रहे हैं बहू को तीन हजार रूपये मे हो जायेगा, सास कह रही है तीन आपकी ओर से और दो मेरी ओर से पूरे पाँच हजार देगें, हमारी बहू समझदार है हिसाब से खर्च करती है। और सास प्यार से नंदा को आवाज देती है हे मेरी नंदा आ, नंदा आती है और सास के पाँव छूती है सास पूरे पाँच हजार हाथ पर रखती है और कहती है बेटी खुशी से खर्च करना एक तू ही तो है जो हमारी आँखो की रोशनी है खुश रहना शिव आ ही जायेगा मुझे विश्वास है। हाँ किसी सहेली को खर्च कम पड़ेगा तो ये दो हजार रूपये रख दे देना। नंदा सास के दुलार और सहेलियों की चिन्ता के निदान के साथ अपने प्रियतम शिव के आगमन की ढाँढस से हर्षित और गर्वित है। आज नंदा बचपन की तरह उत्सुकता और कौतूहल से आनन्दित है।
गाँव मे सड़क तो प्रधानमंत्री सड़क योजना मे बनी है लेकिन भ्रष्ट और गैरजिम्मेदार सिस्टम के कारण छोटी जीप लायक ही है यहाँ आने जाने के लिये केवल रामू की सोलह साल पुरानी जीप है। रामू हार्न बजाता है और गाँव की पन्द्रह महिलायें गाड़ी के पास पहुँचती हैं, नंदा पढी लिखी है वह रामू देवर से कहती है आगे केवल दो ही बुजर्ग महिलायें बैंठेगी और बीच मे छ:महिलाऔं को बीच मे बिठाकर वह अपने साथ सात महिलाऔं के साथ पीछे बैठती है। बैठने मे सबको तकलीफ हो रही है लेकिन दूर दूर तक समाधान भी नही, रामू भी चिन्तित है सबको तकलीफ हो रही है फिर भी वह दो बार आपदा मे काम हो चुका है वर्ल्ड बैंक से लेकिन सड़क ऐसी है मानो मच्छियों के बच्चों के लिये तालाबों की श्रृँखला हो चौड़ायी सात फिट भी नही रामू धीरे धीरे कम हिचकोले खाती हुई गाड़ी को बाजार के कोने तक लाता है।और दोनो हाथ जोड़कर कहता है असुविधा के लिये क्षमा करना, आराम से खरीददारी करना अभी दस बज रहे हैं दो बजे तक वापस आ जाना।
नंदा अपनी सहेलियों के साथ बाजार गई सबसे पहले वह कपड़े की दुकान पर गई सभी सहेलियों ने पूछा यहाँ क्या खरीदना है नंदा ने कहा चलो तो सही। दुकान मे बैठकर नंदा ने दुकानदार से कहा गर्म कपड़े दिखाऔं अपने ससुर के लिये गर्म इनर चुस्ती का जोड़ा गर्म कमीज और ऑ सी एम की गर्म पेन्ट ली, सास के लिये गर्म ब्लाउज पेटीकोट सूती मोटी धोती साथ ही गाँव की तीन वृद्ध और गरीब सासुऔं के लिये गर्म ब्लाउज और पेटीकोट खरीदा। साथ ही अपनी काकी सासू बड्या सासू और स्नैही गाँव की सासुऔं के लिये भी ब्लाज और परन्दा (पर्वतीय इलाकों मे महिलायें सिर पर रखती है यह गर्मियों मे धूप और सर्दियों मे ठण्ड से बचाता है साथ ही यहाँ की रीति रिवाज के अनुशार सिर को नंगा नही रखते है औरते इसे अपने सिर पर बाँधती है जो आकर्शक रंगो का दो ×ढाई फीट के आसपास काॅटन प्रिन्टया गर्म प्रिन्ट मे रहता है) खरीदती है धीरे धीरे सभी सहेलियाँ अपने बजट और देने के अनुसार कपड़े खरीदकर अब फल की दुकानों से केले सेब और कच्चा नारियल खरीदते हैं। यहाँ से सभी साड़ी की दुकान पर पहुँचते हैं सभी अपनी पसन्द और बजट की साड़ी खरीदते हैं जो व्रत के दिन पहनी जायेगी। नंदा को ऐसी साड़ी चाहिये जो उसके प्रियतम को भाये। जब भी उसे फुर्सत मिलती वह बद्रीविशाल का नाम लेती और फिर अपनी उधेड़बुन मे लग जाती है, दुकानदार कहता है बहिन्जी साड़ी किस रंग की चाहिये उसके मुँह से तपाक से निकलता है आर्मी ग्रीन दुकानदार सकबकाता है और फिर ढूँढने लगता है उसे बहुत मेहनत कर एक प्लेन चौड़े बार्डर सिल्क की साड़ी मिलती है और झट से उसे पसन्द आ जाती है वह मन्द मन्द मुस्कराने लगती है और अपने प्रियतम के भाव मे खो जाती है फिर अचानक जय बद्रीविशाल बोलकर सहज हो जाती है, तभी साड़ी विक्रेता कहता है आपके पति कहाँ रहते हैं बात पूरी भी नही हुई थी झट से नंदा मुस्कराकर और शर्माकर कहती है मेरा शिव हिन्द की सेना मे मेजर हैं। ब्यापारी बड़े स्नैह और सम्मान से ठण्डा सर्व करता है।
इसके बाद करवा की खरीददारी और चूड़ियाँ विन्दियाँ लेकर, चाऊमीन और मोमो खाकर रामू की गाड़ी मे गाँव लौट आये। अगले दिन सुबह जल्दी उठकर तैयारियाँ करने लगे। आज सुनंदा और जयनंदा सुबह ही उठ गई इतवार का दिन है और ऊपर से माँ का व्रत। नंदा खुश भी है और चिन्तित भी लेकिन बद्रीविशाल पर उसे पूरा भरोसा है उसका मेजर जरूर पहुँचेगा। सुबह से ही गाँव मे स्नैह प्रेम सजने सँवरने का दौर शुरू हो गया, कीर्तन भजन के साथ मानो आज सभी महिलायें नंदा सहित दुल्हन की तरह सजी हैं। एक दूसरे को देखकर इनका धीमा संवाद और मधुर मुस्कान धरा के लिये भी कौतूहल का विषय बन गया। सायं की पाँच बज रही है सुनंदा, जय नंदा अपनी जिया से चिपक कर बैठी है और सास अपनी नजरें आँगन की ओर अपने लाडले की प्रतीक्षा मे। ससुर ढाँढस देते हुये बद्रीविशाल की कृपा से आ ही रहा होगा। हल्के हल्के कदमो की आहट से शिव पहुँचता है और घर मे मानो सभी त्योहार एक साथ पहुँच गये हों नंदा की प्रार्थना बद्रीविशाल ने सुन ली वह स्नैह और आराध्य के अनुग्रह हँस भी रही है और रो भी रही है। साथियो कोई कुछ भी कहे नंदा के करवाचौथ के व्रत को देखकर तो यही लगता है पर्व कहीं का भी हो लेकिन इसमे आत्मीयता है, स्नैह है, सदभावना है, शुभ मंगल की कामना है, सृजन का पक्ष है शसक्तीकरण का पक्ष है, मातृ शक्ति की मुस्कराहट है, अंतस से उत्साह है उमंग है।