हेमन्त की कहानी
रमेश पाण्डेय
शायद 1988 की बात होगी उन दिनों गांव में सरकारी ऋणों का खूब हल्ला-गुल्ला था।
यही हल्ला – गुल्ला था कि ग्राम सेवकों की खूब चैल भी हो रही थी। गाय, बैल, खच्चर, भैंस के लिये खूब ऋण बट रहे थें। ऋण लेने – देने के नियम तो लोगों को मालूम नही थे सिर्फ इतना समझ आ रहा था कि ग्राम सेवक ऋण दिलवा देते हैं। हेमन्त का सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। गोठ में एक गाय बिहायी थी जिस से तीन मांणा दूध भितेर आ रहा था। भैंस उस ने कुछ दिन पहले इसलिये बैच दी थी कि घर में पाली – पोसी थोरी भी ब्याने वाली थी। हेमन्त ने जब भैंस बेची थी तब गांव में चर्चा भी हो चुकी थी की भैंस बैच कर जो रुपये हेमन्त को मिले थे उन रुपयों से उसने अपनी पत्नी के लिये कनफूल बनाये हैं। अब किसी घर में कनफूल बने होंगे तो दूसरे घरों में चर्चा होनी ही ठैरी। कनफूल बनाने की चर्चा के कुछ महीनें बाद हेमन्त की थोरी ब्याने और थोरी से एक बार में साम माणें दूध होने की चर्चा भी गांव में चली ही थी। हेमन्त का सब कुछ ठीक चल रहा था कि इसी बीच एक दिन प्रधान ने हेमन्त को घर बुलाया। इस बुलावें की खबर किसी को नहीं थी। प्रधान जी के घर ग्राम विकास अधिकारी भी आया था। ग्राम विकास अधिकारी ने हेमन्त के लिये सरकारी कागज भी भरे थे। कुछ दिन बाद हेमन्त की नयी – नयी ब्याही थौयोरी के कान में पीतल का गोल सिक्का जैसा टक गया तो लोगों को पता चला की हेमन्त को भैंस का लोन मिला हैं।
दो वर्षों तक किसी को पता नहीं चल सका कि हेमन्त को कितना लोन मिला है। हेमन्त को कितना लोन मिला का पता तब चला जब बैंक से बीस हजार रूपयें वसूली की चिट्टी आयी। चिट्टी पड़ कर हेमन्त बौखला कर प्रधान के घर पहुंचा तो प्रधान ने उसे पहले तो प्यार से समझाने की खूब कोशिश कि जब हेमन्त जोर देने लगा तो प्रधान जी ने उसे ग्राम सेवक के जाने को कहा और झिड़क दिया कि अब मेरे पास मत आना। हेमन्त ने कई चक्कर ग्राम सेवक के पास भी लगाये। तब तक ग्राम सेवक भी बदल गया था। नये ग्राम सेवक ने उससे साफ-साफ बोल दिया कि लोन उसने थोड़े दिलवाया था। जिसने दिलवाया था उसी से मिल। पहले प्रधान फिर ग्राम सेवक से झिड़क खाने के बाद हेमन्त को जब लगा कि उसके सारे रास्ते बन्द हो गये तो उसके पास एक ही रास्ता बचा था कि जैसे भी हो अपनी इज्जत बचाये। उसने बताया कि कैसे प्रधान और ग्राम सेवक ने उसके कागजों मे साइन करवाये थे। ओर कुछ दिन बाद उसे बैंक ले गयें थे। बैंक में उसने अपना फोटों भी दिया गया और बैंक वालों ने खूब सारे कागजों में उन से साइन करवाये थे। कागजी नाम पूरा हो जाने के बाद उसे बैंक के पास ही उसे एक दुकान मे बैठा दिया गया था। कुछ देर के बाद ग्राम सेवक ने 2 हजार रू0 उसके हाथ में पकड़ा कर कहा था कि दूसरे दिन सरकारी आदमी उसके घर आ कर उसकी भैंस के कान में टैग लगायेगा। कुछ दिन बाद पशु विभाग का एक कर्मचारी हेमन्त के घर आया भी और भेंस के कान में पीतल का टैग लगा कर सौ रुपया हेमन्त से टैग की कीमत बता कर ले गया।
हेमन्त ने लोन के दो हजार रुपये घर पर अपनी पत्निी को देते समय बताया था कि ग्राम प्रधान और ग्राम सेवक ने उसके लोन के बांकी रुपये बैंक में ही रखवा दिये हैं। कुछ दिन में सरकारी लोन की छूट आ जायेगी तो उसका लोन अपने आप पूरा हो जायेगा। तब हेमन्त को लगा था कि उसको तो सब कुछ मुफ्त में मिल गया हैं। इस मुफ्त में मिले लोन से खुश होकर हेमन्त ने ग्राम सेवक को घी की चौथाई ओर रम की एक बोतल भी दी थी। बीस हजार की वसूली का सरकारी कागज मिलने के बाद हेमन्त कई लोगों से मिला भी। सभी ने हेमन्त को एक ही राय दी कि जैसे भी हो सके बैंक का लोन लौटा दे नही तो पटवारी आ कर वसूली करेगा। ऋण चुकाने के लिये हेमन्त के पास पैसा बीस हजार रुपये तो थे नही तो पत्नी के कनफूल और गोठ में द्वैण ब्याई भैंस बिकाऊ कर दी। तथा पन्दरह हजार रू0 में भैंस बिक गई और 4 हजार के कनफूल भी सुनार ने ढाई हजार रू0 में खरीद लिये। बांकी तीन हजार रुपयों के लिये हेमन्त ने एल आई सी तुछ़वा दी। हेमन्त सरकारी ऋण से तो मुक्त हो गया पर ऋण उतारने में जो टीम उसे मिली उसने हेमन्त को इतनी बुरी तरह से तोड़ दिया कि वह कभी खड़ा ही नहीं हो सका।