December 3, 2024



नेलांग और जादुंग में आपका स्वागत है

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पंकज खुशवाल


नेलांग और जादुंग में छह दशक बाद फिर आदम जात चहलकदमी करेगी 1962 में भारत चीन युद्ध के परिणाम का खामियाजा यूं तो पूरे देश ने भुगता था लेकिन सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले, तिब्बत और भारत के बीच पुल के काम करने वाले लोगों ने अपनी जमीन, अपना वजूद ही भारत चीन युद्ध के बाद खो दिया था, भारत सरकार ने कभी भारत तिब्बत के बीच के पुल का काम करने वाले जादुंग नेलांग के ग्रामीणों को निर्वासित कर हर्षिल के समीप बसा दिया और उनका ग्रीष्मकालीन ठिकाना डुंडा बना दिया। जबकि इससे पूर्व उनका गर्मियों का ठिकाना ऋषिकेश के समीप हुआ करता था।

खैर, भारत चीन युद्ध होने के बाद सीमावर्ती इलाके इनर लाइन में तब्दील कर दिए गए, और करीब पांच दशक तक इन इलाकों में सेना के अलावा किसी आम इंसान को आवाजाही की अनुमति नहीं दी गई। लद्दाख जैसा माहौल वह भी दिल्ली से विकेंड में पूरा होने वाले प्लान के साथ, संभव है। नेलांग और जादुंग में फिर से 60 साल बाद आम आदम की आवाजाही के खुलने जा रहा है। जिलाधिकारी मयूर दीक्षित के प्रयासों और स्व. विधायक गोपाल सिंह रावत के प्रयासों से तिब्बत उत्तरकाशी का यह साल्ट रूट आम पर्यटकों के लिए 1 अप्रैल से खुल जाऐगा। करीब पांच दशक तक बंद गर्तांगली और नेलांग जादुंग तक आप लोग आवाजाही कर सकते हो, बस जरूरत है किसी स्थानीय टूर ऑपरेटर की जो आपको परमिट दिलवा सके।


बगोरी के पूर्व प्रधान भगवान सिंह जिनके पूर्वज नेलांग जादुंग वासी थे, और बाद में निर्वासित जीवन बिताना पड़ा, भगवान सिंह ने सैकड़ों पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षा मंत्री कार्यालय को भेजे हैं, प्रधान रहते हुए पूर्व प्रधान होने के बाद भी दर्जनों पत्र भेजे कि इन सीमांत गांवों को बहाल किया जाए। कल यानि सोमवार को नेलांग जादुंग के मूल निवासी जिलाधिकारी मयूर दीक्षित की अगुवाई में अपने मूल गांवों तक जाएंगे। जिलाधिकारी मयूर दीक्षित बताते हैं कि केंद्र सरकार से वार्ता की जा रही है कि नेलांग जादुंग गांव को पर्यटकों के ठहरने का प्रमुख केंद्र बनाया जाए, केंद्र सरकार जैसे ही अनुमति देगी यहां पर्यटकों की आवाजाही बहाल की जाएगी। मयूर दीक्षित बताते हैं कि लद्दाख जैसी परिस्थितियों और वातावरण वाले नेलांग जादुंग उत्तराखंड के पर्यटन को एक नई दिशा और दशा देगा।


लेखक युवा पत्रकार हैं – साभार फेसबुक पोस्ट