‘‘वाह रे बचपन‘‘ एक नया प्रयोग
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
प्रयोग केवल विज्ञान में ही नहीं हो रहे हैं बल्कि इन दिनों साहित्य में भी अनोखे प्रयोग देखने को मिल रहे हैं। साहित्य की अनेक विधाओं के द्वारा ऐसे ही प्रयोगों का परिणाम है। जन कवि, साहित्यकार, गीतकार व प्रसिद्व आन्दोलनकारी डा0 अतुल शर्मा आजकल एक नया प्रयोग कर रहे हैं।
उनके इन प्रयोगों के परिणाम स्वरूप ‘वाह रे बचपन‘ की श्रृंखलाबद्व दो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। अतुल जी ने अपने मित्रांे, लेखकों, साहित्यकारों, राजनीतिज्ञों, डाक्टरों यह श्रृंखला लम्बी होती जा रही है। कहने का आशय यह है कि कोई भी अपने बचपन के संस्मरणों को लिखकर ‘‘वाह रे बचपन‘‘ पुस्तक श्रृंखला में शामिल हो सकता है। इस तरह यह अविश्मरणीय संकलन बनता जा रहा है। जब अचानक कोई आपसे कहे कि अपनी कुछ बचपन की घटनायें सुनाओ या लिखो तो एक बारगी शक्स अगल बगल झांकने लगता है। सिर खुजाने लगता है कि आखिर उसके बचपन की ऐसी कौन सी घटना है जो उसे आजतक याद है। थोड़ा प्रयास करते हैं तो अनेकों घटनायें आंखों में तैरने लगती हैं। कुछ अच्छी, कुछ कड़वी, कुछ मनोरंजन तो कुछ खतरनाक और व्यक्ति अपने बचपन में लौट आ जाता है। ‘‘वाह रे बचपन‘‘ पुस्तक में कई लेखक अलेखकेां ने अपने बचपन की स्मृतियों को समेटने का कार्य किया है। इस लिहाज से यह संकलन एक यर्थात के धरातल पर काम कर रहा है। कई घटनायें ऐसी हैं कि आपको लगेगा कि वैसा ही आपके अथवा पाठक के बचपन के दिनों में बीता या घटित हुआ है। साहित्य में इस तरह के कार्य नहीं हो रहे हंै। लोग यात्रा वृतांन्त, संस्मरण, जीवनी लिख तो रहे हैं लेकिन इस तरह का साहित्य संस्मरण लेखन और वह भी बचपन पर आधारित ‘‘वाह रे बचपन‘‘ पुस्तक श्रृंखला की विशेषता बनता जा रहा है। अपने मिजाज के अनुरूप पुस्तक का नाम भी बच्चों की तरह ही चुलबुला है। प्रथम पुस्तक में 16 लेखकों ने अपने बचपन के संस्मरणों से पुस्तक को यर्थात के धरातल पर खड़ा किया है। इसमें लेखकों के स्वचित्र के साथ-साथ रेखांकनों का सुन्दर प्रयोग किया गया है। बाल साहित्य में इस तरह के प्रयोग पहली बार सामने आये हैं। प्रथम संस्मरण में प्रसिद्व लोकगीत कार नरेन्द्र सिंहि नेगी, छायाकार कमल जोशी, समाजसेवी गीता गैरोला सहित 16 प्रमुख लोगों ने खुलकर अपने बचपन पर कलम चलाई है। ‘‘वाह रे बचपन‘‘ के दूसरे संस्मरण एक और नया अनोखा प्रयोग हुआ है। इसमें संस्मरण भी हैं रेखाचित्र भी हैं तो लेखके के बचपन के फोटोचित्र भी शामिल हैं। दूसरे ही संस्मरण में बचपन के चित्रों ने पुस्तक को और यर्थात के धरातल पर खड़ा कर दिया है। यह समाज के व्यक्तित्वों के बचपन का अभिलेखीकरण अभियान बन गया हैं पुस्तकों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह कभी न खत्म होने का सिलसिला व पुस्तक श्रृखंला है जिसे लगातार जारी रखने की जरूरत है। ‘‘वाह रे बचपन‘‘ के द्वितीय संस्मरण में 12 लेखकों की रचनायें हैं जिनमें प्रमुख रूप से डा0 महेश कुडियाल, रविन्द्र जुगरान, डा0 जयन्त नवानी, डा0 मुनिराम सकलानी, डा0 नन्दकिशोर हटवाल जैसे लोगों ने अपने बचपन के संस्मरणों से पुस्तक की गम्भीरता व साहित्यिक जरूरत का एक नया सिलसिला जारी किया है। इस प्रकार दोनों पुस्तकों को मिलाकर लगभग 24 लेखकों का यह एक सामुहिक व सहभागी लेखन है। कुछ लेखकों ने दोनों पुस्तकों में योगदान दिया है। अब ‘‘वाह रे बचपन‘‘ के संस्मरणों में क्या लिखा है इस हेतु तो आपको सहृदय पुस्तके क्रम कर इस अभियान को आगे बढाने में मदद का हाथ बढाना ही चाहिये। इस अनोखे अनोखे साहित्यिक अभियान के सृजक डा0 अतुल शर्मा व उनके परिवार को हार्दिक बधाई शुभकामनायें कि तीसरी पुस्तक जल्दी सामने आये।
पुस्तक – वाह रे बचपन (दो-पुस्तके)
सम्पादक – डा0 अतुल शर्मा
प्रकाशक – रमा प्रकाशन, देहरादून
मूल्य – 125 व 200 रूपये क्रमशः