नानतिनो कि सजोलि
डॉ० सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
कवितायेँ कवि के मन की उदगार होती हैं, जिनके द्वारा उसका व्यक्तित्व पूर्ण रूप से परिलक्षित होता है|
कविताओं में निहित भावपक्ष, कलापक्ष और उनमे संप्रेषित ज्ञान के आधार पर उन्हें अच्छी या बुरी कहा जाता है| मेरा मानना है कि जो कविता आत्मिक शान्ति के साथ दूसरों के लिए शिक्षाप्रद और आनंद देने वाली हो वह अच्छी कविता कही जा सकती है| जहाँ तक बाल कविताओं की बात है बच्चों के भीतर वैज्ञानिक सोच पैदा करने, अतीत, वर्तमान और भविष्य का बोध कराने, अज्ञानता दूर करने, नैतिकता का पाठ पढाकर चारित्रिक गुणों का विकास करने तथा जीवन को प्रगतिपथ पर अग्रसर करने वाली कविता ही अच्छाई के पद को विभूषित करती है| डॉ उमेश चमोला और विनीता जोशी के संयुक्त प्रयास से रचित ‘नानतिनो कि सजोलि’ गढ़वाली और कुमाउनी कविताओं की पुस्तक इन सभी विशेषताओं से युक्त है| अपने में मौलिकता लिए हुए ये कवितायेँ बालमन को गुदगुदाते हुए पढने की लालसा जाग्रत करने, भरपूर मनोरंजन, अपनी संस्कृति से रूबरू होने और नैतिकता के साथ शिक्षा को फैलाने में पूर्ण सक्षम हैं| दोनों रचनाकारों ने मानों स्वयं बालमन में उतरकर उनकी मानसिकता के अनुरूप कविताएँ रचकर जिज्ञासाएं शांत की| विषय सामग्री के साथ भावपक्ष और कलापक्ष का जो ग्राह्य स्वरूप प्रस्तुत किया, वह देखते ही बनता है|
डॉ उमेश चमोला ने गढ़वाली और विनीता जोशी ने कुमाउनी में पच्चीस – पच्चीस कविता रुपी पुष्प पुस्तक में पिरोकर एक नया प्रयोग किया है| यह मात्र बच्चों के लिए ही बहुउपयोगी न होकर बड़ो के लिए भी लाभदायी है| पुस्तक का शुभारम्भ परम्परा का पालन करते हुए डॉ चमोला ने गढ़वाली कविता ‘शारदे वंदना’ से किया है –
‘भला-भला बाटों, मीते हिटे दये, ज्यू कु अन्ध्यारू ब्वे तू मिटे दये.’
सबि नौना – नौनि, हैंसदा रौन, जन अगास मा, हैसदु ज्वोंन.’
इस कविता के माध्यम से कवि यह संदेश भी देना चाहता है कि कोई भी बाल अधिकारों का हनन न करे| उन्हें अच्छी शिक्षा और संस्कार देकर ज्ञानवान बनाये ताकि वे जीवन भर हँसते रहे| ‘पहाड़े सौगात’ कविता द्वारा विनीता जोशी ने अपनी कुमाउनी कविताओं का शुभारम्भ किया है| इसमें पारम्परिक अन्न, हवा, पानी, फल – फूल और व्यंजन आदि का सटीक चित्रण किया है –
मंडूवे रवाट / गदुवक साग
निमुवे झोलि / मनिरोक भात, पहाडेकि सौगात.
कवयित्री इस कविता के माध्यम से मानो प्रवासियों को पहाड़ लौटने की याद दिला रही है| ’मीतें स्वांदु’ गढ़वाली कविता में एक प्रवासी के अन्तर्द्वन्द्व, मातृभूमि की विशेषताओं और मैदानी क्षेत्र की परेशानियों का अंतर अनुभव करते हुए उसकी छटपटाहट को दर्शाया गया है –
मी छौं उन्द शैर मा, जख गाडयों कू घुंघ्याट,
राति बगत व्हे त व्हे, दिन मा भी लूटपाट,
पौन – पंछी नी दिखेंदा, नी घसेरू की भौण,
चुडा – बुखणा अर अरसा, खांदु छौ मी जमी तैं.
कुमाउनी कविता ‘चौद नौम्बर’ के द्वारा बच्चों को महान पुरुषों पर केन्द्रित दिवसों को मनाने और उनके पदचिह्नों पर चलने का सन्देश दिया है| इसी प्रकार ‘घुघुती त्यार’ कविता के माध्यम से पक्षियों के प्रति अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया है-
घुघुत पाकी, लगड़ पाकी / बड पाकी, पाकी खीर,
आ रे काले, कौवा ऐ जा / खे जा घुघुत, खे जा खीर.
गढ़वाली कविता ‘देशगीत’ में मातृभूमि की महानता का वर्णन करते हुए देशभक्तों के महान कार्यों का भी उल्लेख किया है –
दुन्याँ मा सबसे पैलि / ज्ञान कु द्यु जले,
भटकदा मनखी छा / वूंते बाटू बते,
कुमाउनी कविता ‘घाम दिदी’ और गढ़वाली ‘गैणु’ कविता के माध्यम से समय पर काम करने और प्रगति पथ पर बढ़ने की प्रेरणा दी गयी है| यही भाव गढ़वाली कविता ‘पोथिली’ में भी दृष्टिगोचर होता है| ’फूल’ कविता डॉ० चमोला की शिक्षाप्रद के साथ ही काँटों के बीच फूल की तरह कठिनाइयों में हँसते हुए जीने की प्रेरणा देती है –
रिंगला-पिंगला फूल / कांडों दगड़ा हैंसदा स्वान्दा,
खैरी मा भी हैंसा / सबु मू यन छ्वीं लगांदा.
कुमाउनी कविता ‘एक, द्वी, तीन’ के माध्यम से कवयित्री ने बच्चों को गिनती सिखाने का जो अनूठा प्रयास किया है वह प्रशंसनीय है| गढ़वाली कविता द्यु के माध्यम से दूसरों की भलाई में अपना सर्वस्व कुर्बान कर देने का जो सन्देश दिया है उससे कवि की उदारवादिता का पता चलता है| विस्तार भय से यहाँ सभी कविताओं का उल्लेख संभव नहीं है| दोनों ही रचनाकारों द्वारा स्थानीय भूगोल, वनस्पतियों, तीज त्यौहारों, रीतिरिवाजों, जीव जन्तुओ पर केन्द्रित बहुउद्देश्यीय कविताओं की रचना सराहनीय है| डॉ० संजीव चेतन द्वारा कविताओं में व्यक्त भावों के अनुरूप जो चित्रांकन किया गया है उससे निश्चित ही पाठकों विशेषकर बाल पाठकों को अधिक आनन्दानुभूति होगी, छपाई व मुखपृष्ठ भी सुंदर व आकर्षक है|
(गढ़वाली – कुमाउनी प्रथम संयुक्त बाल कविता संग्रह)
रचनाकार – डॉ० उमेश चमोला एवं विनीता जोशी
प्रकाशक – आधारशिला प्रकाशन हल्द्वानी नैनीताल