November 21, 2024



उर्गम, नीती और माणा घाटी की ओर-02

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अरुण कुकशाल


(10-17, दिसम्बर, 2021) कल्पगंगा की ओर-अणिमठ के बाद हेलंग से दाई ओर की लिंक रोड़ उर्गम-कल्पेश्वर की ओर है। इसी पहाड़ के ऊपरी छोर के गौरसों-औली बुग्याल से जन्म लेती कर्णनाशा नदी हेलंग के पास से गुजरती है। हेलंग के तलहट पर अलकनंदा, कर्णनाशा और कल्पगंगा का संगम होता है। इस स्थल से अलकन्दा नदी के दायीं ओर उर्गम घाटी पसरी है।हेलंग से तीखी चढ़ाई वाली यह कच्ची रोड पहाड़ पर चलने का असली रोमांच दे रही है। सड़क के ऊपरी पहाड़ी से निरंतर गिर रहे पत्थरों और जगह-जगह पर विराजमान गढ़ढों से बचकर टैक्सी कैसे आगे बढ़े, इस समय यही हमारी सोच और शोध का विषय है। बांज, कैल, चीड़, पांगर, थुनेर और बुरांस के इस घने जंगल से गुजरती सड़क पर धूप तो आती नहीं होगी। जगह-जगह पर छोटे-बड़े स्त्रोतों से रिसते पानी से सड़क और ज्यादा फिसलनभरी हो गई है।

जबरदस्त हिचकौले खाती जीप से मेरी नज़रें आगे दिख रही सड़क पर ही टिकी हैं। हीरा के लिए ये रोड़ जानी-पहचानी है, इसलिए, उनके लिए ये सब सामान्य सी बात है।‘उर्गम घाटी की इस एकमात्र सड़क को दुरस्त करने के लिए ग्रामीण कई बार गुहार लगा चुके हैं, पर यहां कोई सरकार जैसा कुछ हो, तो वो सुने। करना तो बाद की बात है।’ हीरा सड़क पर खड़े पत्थर से बचकर गाड़ी निकालते हुये कह रहे हैं।सड़क के किनारे सामने खड़े ट्रक में बैठे व्यक्ति ने हाथ के इशारे से हमको रोका है। पता लगा ट्रक खराब हो गया है, और कंडक्टर किसी मैकेनिक की खोज में जोशीमठ गया है। जंगली जानवरों का डर है, इसीलिए, वह ट्रक ड्रायवर शीशे बंद किए हुए है। हीरा ने बिना उसके बोले अपना बीड़ी-माचिस का कोटा उसको दे दिया है, यह समझकर कि पता नहीं कब तक कंडक्टर आयेगा? घनघोर जंगल में अकेले – अकेले किसी का इन्तजार करने के लिए बीड़ी से बड़कर मददगार और क्या हो सकता है?


हेलंग से 5 किमी. पर ल्यारी थैणा और उसके बाद सलना गांव के मोड़ पर हम पहुंचे हैं (सलना गांव चिपको आन्दोलन की अग्रणी व्यक्तित्व बौणी देवी का गांव है। सत्तर के दशक में नीती घाटी में गौरा देवी और उर्गम घाटी में बौणी देवी ने वन आन्दोलनों की अलख़ जगाई थी।)।हीरा गाड़ी रोककर सड़क से हटकर एक सफेद शिला की ओर प्रणाम करते हैं। वे बताते हैं कि ‘यह बड़गिड्ंडा (उर्गम) गांव के अमर शहीद अमरदेव पंवार का स्मारक है। वे प्रथम विश्व युद्ध (सन् 1914) में फ्रांस में शहीद हुए थे। उन्होने युद्ध में जाने से पहले ही इस पत्थर को स्वयं यहां स्थापित किया था। उन्होने कहा था कि यदि मैं वापस नहीं आया तो यह मेरा स्मृति स्थल होगा। तब से, उर्गम घाटी के लोग यहां से गुजरते हुए इस स्मारक को अवश्य प्रणाम करते हुए आगे बड़ते हैं।’सलना गांव के बाद रास्ता है तो चढ़ाई का पर उतना नहीं जितना पीछे से चलकर आये हैं। ऊंची धार पर चलते हुए आर-पार की उर्गम घाटी हमारे सामने है।


कल्पगंगा के इस ओर के पहाड़ हल्के ढ़लान और दूसरी तरफ सीधे खड़े पहाड़ हैं। कल्पगंगा पार के पहाड़ों के पीछे बद्रीनाथ क्षेत्र है। पहाड़ों की लकदक चोटियों से काफी नीचे तक बर्फ चमक रही है। ऐसा लगता है इन पहाड़ों ने अपने माथे पर एक लम्बा-चौड़ा सफेद दुप्पट्टा सलीके से बांध दिया है।ल्यारीथैणा, सलना, बड़गिंड्डा, देवग्राम के बाद कल्पेश्वर (समुद्रतल से 2134 मीटर की ऊंचाई) पहुंचे हैं। मुख्य द्वार पर ही मित्र लक्ष्मण सिंह नेगी हमारे स्वागतार्थ आये हैं। (लक्ष्मण उर्गम घाटी के प्रमुख व्यक्तित्वों में हैं। ‘जय नंदा देवी स्वरोजगार शिक्षण संस्था’ (जनदेश) के माध्यम से वे सामाजिक क्षेत्र में विगत 3 दशकों से सक्रिय हैं।)मित्र लक्ष्मण नेगी उर्गम घाटी की पुरातन जानकारी देते हुए कई मान्यताओं को बताते हैं। उनके अनुसार ‘एक श्रृति यह है कि प्राचीनकाल में यह क्षेत्र उर्गम नामक नागवंशी शासक के प्रभाव में था। नाग शासकों की एक पट्टी उर्गास भी थी। यह भी कहा जाता है कि उर्ग्व ऋषि के नाम पर उर्गम नाम प्रचलन में आया।

एक लोकोक्ति यह भी है कि उर्गम क्षेत्र में आदमी हृदय के वशीभूत होकर चलता है। अर्थात, ‘उर’ माने ‘हृदय’ और ‘गम’ याने ‘चलना’ इसी से ‘उर्गम’ नाम की उत्पत्ति हुई होगी।’लक्ष्मण जानकारी देते हैं कि ‘वर्तमान मेें 3 हजार की आबादी वाली उर्गम घाटी में 5 ग्राम पंचायतों के 12 गांव शामिल हैं। ये गांव- ल्यारी थैणा, सलना, बड़गिंड्डा, तल्ला बड़गिंड्डा, द्वयूडा, गीरा, वांसा, खोली, भर्की, भेंटा, पिलखी और ग्वाणां-अरोशी हैं। राजमा, आलू, चौलाई, धान, गेहूं, झंगौरा, मंडुवा, सेब, संतरा, भांग, अखरोट, नाशपाती, पलम, माल्टा की पैदावार यहां बहुत है। उर्गम घाटी में भेड़-बकरी पालन पहले प्रमुख व्यवसाय था, परन्तु अब वह सिमटने को है।’लक्ष्मण सिंह नेगी बताते हैं कि उर्गम घाटी को कल्प गंगा दो भागों में बांटती है। कल्पगंगा के दायें ल्यारीथैणा, उर्गम और देवग्राम तथा बायें भर्की एवं भेटा ग्राम पंचायतें हैं। लक्ष्मण का गांव पिलखी कल्पगंगा के बांयी ओर के पहाड़ पर स्थित है।


लक्ष्मण गढ़वाल विश्वविद्यालय से सन् 1992 में स्नातक करने बाद उर्गम घाटी में सामाजिक कार्यों की ओर उन्मुख हो गए थे। ‘जय नंदा देवी स्वरोजगार शिक्षण संस्था’ (जनदेश) के माध्यम से कल्पक्षेत्र उर्गम के सभी 12 गांवों में प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर वो कार्य कर रहे हैं। जनदेश के प्रयासों से अब तक 70 हैक्टयर क्षेत्र में नया जंगल विकसित किया जा चुका है। महिला और बाल शिक्षा, जीवन कौशल, ग्रामीण तकनीकी का विकास, फल-सब्जी उत्पादन, मधुमख्खी पालन, पशुपालन और आपदा अवधि में उनके द्वारा सराहनीय कार्य किया गया है।कल्पगंगा नदी के ऊपर बने पुल के पार जल प्रपात को देखकर लगा कि उसे बस देखते ही रहना चाहिए। प्रकृति की अदभुत चित्रकारी के कई रंग-रूप उसमें हैं। लक्ष्मण नेगी उसे ‘कल्प फाल’ कहते हैं। इस पुल के बगल में एक पुराने पुल के अवशेष हैं। हीरा बताते हैं कि ‘वर्ष-2013 की आपदा में वो पुल टूटकर बह गया था। तब यह नया पुल बनाया गया है।’……..यात्रा जारी है

अरुण कुकसालसाथी यात्री- विजय घिल्डियाल और हिमाली कुकसाल