उर्गम, नीती और माणा घाटी की ओर
अरुण कुकसाल
बच्चों की पढ़ाई सबसे मेन बात है जोशीमठ (समुद्रतल से ऊंचाई 1890 मीटर) के मेन टैक्सी स्टेंड पर आज की चहल-पहल शुरू हो रही है। चाय, बीड़ी-सिगरेट, बंद-मख्खन से लेकर कंघा-शीशा बेचने वाले अपनी-अपनी तय जगह पर आज की कारोबारी तैयारी में हैं। यहां-वहां 3-4 के झुण्ड में चलते-फिरते या खड़े टैक्सी ड्रॉयवर आपसी नमस्कार के साथ ‘कल क्या हुआ था’ उसकी चर्चा में हैं। स्टैंड पर इधर-उधर लोकल सवांरियां हैं, पर्यटक तो दिख नहीं रहे हैं। ‘उर्गम जाने वाली टैक्सी कब जायेगी’ मैंने किसी से पूछा तो जबाब मिला कि-‘पूरी सवारी भरने में एक-दो घण्टे लगेंगे। आपको जल्दी वापस आना है तो आने-जाने का किराया देकर टैक्सी बुक कर लो। उर्गम से वापसी की कोई सवारी नहीं मिलती इसलिए दोनों तरफ का किराया पड़ेगा।’ हमारी तरफ मुख़ातिब तीन-चार टैक्सी ड्रॉयवरों में से किसी एक ने कहा है।
जोशीमठ से उर्गम 30 किमी. है। उर्गम के पास ही पांचवा केदार कल्पेश्वर मंदिर है। जोशीमठ से राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलकर 14 किमी पर हेलंग और उसके बाद अलकनंदा नदी पार करके लिंक रोड से 16 किमी. पर उर्गम घाटी में स्थित कल्पेश्वर धाम है।‘चलो, मैं चलता हूं, आपके साथ’ सामने वाले व्यक्ति ने कहा है।‘और कोई चारा भी तो नहीं है। चलिए, फिर।’ मैं कहता हूं।‘ये अच्छा हुआ, मेरा रिश्तेदारी का गांव भी वहीं है। कई दिनों से वहां जाना नहीं हुआ। शाम 4 बजे तक हम वापस आ जायेंगे। अब तो गाड़ी कल्पेश्वर तक जाती है। चिन्ता की कोई बात नहीं है। मैं आपको कल्पेश्वर मंदिर के बढ़िया दर्शन भी करा दूंगा।’ टैक्सी स्टार्ट करते हुए ड्रॉयवर हीरा सिंह भण्डारी कहते हैं।हीरा सपरिवार जोशीमठ में रहते हैं। महज इसलिए, कि उन्हें अपने दो बच्चों को अच्छी स्कूल में पढ़ाना है। वरना, टैक्सी का संचालन तो अपने नजदीकी गांव से भी वे कर सकते हैं।
‘शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार ये तीन बड़े कारण हैं, नजदीकी गांवों से शहरों में आने के।’ मैं यह कहकर हीरा से बातचीत शुरू करने का एक सिरा देता हूं।‘साहब, स्वास्थ्य और रोजगार तो बड़ी बात नहीं है, यहां। भगवान की दया से शुद्व वातावरण में स्वास्थ्य ठीक रहता है और लोगों को रोजगार भी कुछ न कुछ हो ही जाता है, गांवों में। बस, बच्चों की पढ़ाई सबसे मेन बात है।’ हीरा ने अनुभव की बात कही है।बीए पास हीरा पहले यहीं जेपी कम्पनी में काम करते थे। कम्पनी ने उनको हिमांचल भेजना चाहा तो उन्होने नौकरी ही छोड़ दी और अब पिछले दो साल से अपनी टैक्सी चला रहे हैं। ‘कम्पनी वाले ऐसा ही करते हैं, जब उनका काम पूरा हो जाता है और बिजली बनने लगती है तो वो ज्यादातर कर्मचारियों को दूसरे प्रदेशों में जहां उनका काम शुरू हो रहा होगा वहां भेजने को कहते हैं। अब 15-20 हजार में कोई लोकल आदमी जमा-जमाया परिवार छोड़कर कैसे इतना दूर जाये? तब नौकरी छोड़नी ही पड़ती है।’ हीरा और भी, आप बीती सुना रहे हैं।
जोशीमठ से निकलते ही सेलंग गांव के पास लम्बा जाम लगा है। पता चला आगे की धार वाले मोड़ के पास बीआरओ और एनटीपीसी के कार्मिक सड़क का ट्रीटमेंट कर रहे हैं।‘अभी हाल ही में उस जगह पर सड़क से लगा एक होटल भूमिगत हो गया था। पता भी नहीं चला वह कहां समा गया? किस्सों में पाताललोक सुना था, अब यहां देख भी लिया। आधा घंटा तो मामूली बात है, जाम उससे पहले तो खुलता नहीं।’ हीरा यह कहते हुए मेरे साथ गाड़ी से बाहर आ गया है।‘ऐसा क्या हुआ, यहां पर’ मैं उससे पूछता हूं।‘सड़क लगातार धंस रही है। कई दिनों से उसमें भरान चल रहा है। पर रात भर में ही सड़क फिर धंस जाती है। इसके ठीक नीचे एनटीपीसी की एक सुरंग है। उसी में समा रहा है यह मटीरियल। अब उस जगह पर सड़क चौड़ी की जा रही है ताकि, सड़क नीचे दबी सुरंग से थोड़ा हट सके, पर खतरा आगे के समय के लिए बना हुआ है।’ हीरा ने पूरी जानकारी दी है।जाम खुलने के बाद धसांव वाले मोड़ पर गाड़ियां बेहद सावधानी से पार हो रही हैं। हीरा इस इलाके की अच्छी जानकारी रखते हैं। इसलिए, बतौर गाइड़ भी वो हमारे साथ हैं।
सड़क के इस ऊंचे धार वाले मोड़ के सामने वाले पहाड़ पर पैनी गांव है। हीरा बताते हैं कि पैनी गांव इस क्षेत्र का मशहूर प्राचीन गांव है। पैनी गांव से ऊपर की चोटी पर घने जंगल के मध्य इस क्षेत्र की ईष्टदेवी पर्णखण्डेश्वरी का मंदिर है। बताते हैं कि नंदा (पार्वती) ने शिव से विवाह करने के लिए यहां घनघोर तपस्या की थी। तपस्या के दौरान पर्ण (पत्तों) का ही उन्होने आहार किया और बाद में उसे भी त्याग दिया था। खण्डित पर्णो के कारण पार्वती यहां पर्णखण्डेश्वरी और अपर्णा के नाम से प्रसिद्ध है। देवी पर्णखण्डेश्वरी के नाम पर जोशीमठ क्षेत्र को प्राचीनकाल से पैनखण्डा भी कहा जाता है। इसमें दो पट्टियां शामिल हैं। तल्ला पैनखण्डा में माणा एवं उर्गम घाटी तथा मल्ला पैनखण्डा में नीती घाटी है।पैनी गांव के पास मुख्य सड़क से 200 मीटर नीचे की ओर उसका तोक गांव अणिमठ है। अणिमठ को वृद्ध बद्री माना गया है, क्योंकि, नारद मुनि को बद्रीनाथ भगवान ने एक वृद्ध के रूप में इस स्थल पर दर्शन दिए थे।
पौराणिक मान्यता है कि विश्वकर्मा ने अणिमठ में लक्ष्मीनारायण (बद्रीनाथ) के मंदिर को स्वयं अपने हाथों से बनाया। यह पंच बद्री में सबसे पुराना मंदिर कहा जाता है। अणिमठ के पुजारी त्रिपाठी लोग हैं। पीपल के पेड़ के पास चुपचाप यह मन्दिर वाकई बहुत खूबसूरत है। परन्तु सड़क से हटकर और प्रचार के अभाव के कारण यहां यात्रियों की आवत-जावत कम ही होती है।सेलंग और पैनी गांव के मध्यवर्ती ऊपर क्षेत्र में सलूड, डुंग्रा और बरोशी गांव हैं। हीरा जानकारी देते हैं कि सलूड़, डुंग्रा और बरोशी के धार्मिक अनुष्ठान ‘रम्माण मुखौटा नृत्य’ को यूनेस्को ने वर्ष-2009 में विश्व धरोहर घोषित किया है। प्रति वर्ष अप्रैल माह में आयोजित होने वाले इस उत्सव में हजारों लोग बढ़-चढ़ कर सम्मलित होते हैं।……यात्रा जारी है
अरुण कुकसाल साथी यात्री- विजय घिल्डियाल और हिमाली कुकसाल