November 22, 2024



उत्तराखण्ड : अपने प्रदेश के भूगोल को जानें

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चंद्रशेखर तिवारी


लघु हिमालय के उत्तर दिशा में महान हिमालय का भू-भाग स्थित है जिसका विस्तार मुख्य केन्द्रीय भ्रंश से लेकर उत्तर में भारत-तिब्बत सीमा से पूर्व तक मौजूद है। इस भू-भाग में अनेक हिमाच्छादित पर्वत शिखर व हिमनद घाटियां पायी जाती हैं। लगभग 50 किमी. की चौड़ाई में विस्तृत इस भाग का औसत उच्चावचन 4800 मी. से 6000 मी. के मध्य मिलता है। यहां की आन्तरिक चट्टानों में ग्रेनाइट, नीस, सिस्ट आदि की प्रधानता है। इसके बाद कायान्तरित व अवसादी शैल मिलते हैं। अवसादी चट्टानों की तह में कई किस्म के जलीय जीवाश्म भी पाये जाते हैं। भूगोलवेत्ता महान हिमालय को हिमाद्रि, वृहत हिमालय ,ग्रेट हिमालया अथवा महा हिमालय आदि नामों से भी जानते हैं। विश्व के कठिनतम हिम शिखरों में कई शिखर हिमालय के इसी भू-भाग में स्थित हैं।

भारत की दो सर्वोच्च पर्वत चोटियां नंदादेवी (7817 मी.) तथा कामेट(7756 मी.) इसी भाग में स्थित हैं। इस भाग में हिम शिखरों की कई श्रेणियां हैं जिनमें अनेक हिमनद मिलतेे हैं। हिमनदों द्वारा यहां विविध तरह की स्थलाकृतियों का निर्माण किया गया है जिनमें यू आकार की छोटी-छोटी हिम घाटियां प्रमुख हैं। यहां की प्रमुख पर्वत चोटियों में माणा (7273मी.), चौखम्भा (7138मी.), सतोपंथ (7075मी.), त्रिशूल (7045मी.), पंचाचूली (6905मी.), तथा बंदरपूंछ (6315मी.) उल्लेखनीय हैं। हिम शिखरों का दुर्गम परिवेश व उसकी नैसर्गिक सुन्दरता पर्वतारोहियों, पथारोहियों व साहसिक पर्यटकों को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती है।


हिम शिखरों से उद्गमित भागीरथी, अलकनंदा, धौली गंगा, जाड़ गंगा, पिंडर,गोरी, दारमा व कुटीयांगती नदियों ने इस भू-भाग में अनेक गहरी व संकीर्ण घाटियां बना दी हैं। इस भाग में तीव्र ढालदार भूमि की अधिकता व कठोरतम जलवायु कृषि कार्य के लिए उपयुक्त दशाएं उत्पन्न नहीं करती। फलतः यहां के निवासी पशुचारण, कुटीर विर्निमाण, व्यापार जैसे परम्परागत उद्यमों में संलग्न रहते हैं। इस भाग में कड़ाके की ठण्ड पडत़ी है।यहां का औसतन वार्षिक तापमान हिमांक शून्य डिग्री सेल्सियस से निम्न रहता है। न्यूनतम तापमान जनवरी में -12 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला जाता है। अधिकतम तापमान जून में 4 डिग्री सेल्सियस के करीब आ जाता है। कठोर शीत जलवायु के कारण यहां वनस्पति का प्रायः अभाव दिखायी देता है। महान हिमालय के निम्न भाग जो 4000 मी. की ऊंचाई तक स्थित हैं उनमें मखमली घास की घाटियां पायी जाती हैं। इन्हें यहां बुग्याल अथवा पयार कहा जाता है। ग्रीष्म काल में बर्फ पिघलने के बाद यहां की जमीन में अनेक किस्म की घास, पुष्प प्रजातियां व बहुमूल्य औषधीय वनस्पतियां उग आती हैं। फूलों की घाटी, वैदिनी बुग्याल, पंवाली कांठा, दयारा बुग्याल व हर की दून जैसे प्रमुख बुग्यालों का इस दृष्टि से विशेष स्थान है।


आलेख एवं चित्र : चन्द्रशेखर तिवारी