November 21, 2024



शोसिअल मीडियाः आपदा से लड़ने का एक हथियार

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जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’


(सन २०१३ में लिखा गया मेरा यह आलेख आज भी समसामयिक है )

हिमालयन सुनामी के रूप मे बतायी जा रही उत्तराखण्ड की आपदा इस राज्य के इतिहास मे अब तक की सबसे बड़ी आपदा कही जा रहा है। विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों से अब तक हजारों लोगों के मारे जाने की आशंका है



लेकिन सरकार के नियम कानून, सूचना तंत्र, इसे सीमित करने पर तुला हुआ है। ये भी कथित आरोप सरकार पर लगाये जा रहे है कि सबसे पहला ध्यान मीडिया मैनेजमेण्ट पर लगाया गया और परिणाम ये हुआ कि पब्लिक भी समझ गई कि टेलीविजन चैनलों से लेकर मुख्य अखबारों की बोली, भाषा, चरित्र नोटों की खनक मे रातों-रात बदल गया। ऐसी परिस्थिति मे अगर कोई मीडिया जिन्दा व ईमानदार रहा तो वह था सोशियल मीडिया जिसे हम न्यूमीडिया के रूप मे जानते है।

कथित तौर पर सरकार पर प्रारम्भिक सूचनाओं को गम्भीरता से न लिए जाने के कारण जान माल की कई गुना नुकशान होने की बात कही जा रही है लेकिन इस आपदा मे यदि सबसे तेज कोई सूचनायें लोगों तक पंहुची तो उसमे सोशियल मीडिया खासकर फेसबुक की सबसे बड़ी भूमिका रही। जिसने 13 जून से ही आपदा से सन्दर्भित सूचनाओं को आमजन तक पहुंचाया। लोग लगातार अपने मोबाइलों से फोटो, वीडियों शेयर करते रहे व इन्ही सूचनाओं का असर रहा कि दिल्ली की केन्द्रीय सरकार तो सचेत हो गई लेकिन उत्तराखण्ड की सरकास दिल्ली के चक्कर लगाती रही व आपदा मे जो सुरक्षा व बचाव के काम होने थे उसको गम्भीरता से नहीं लिया गया। फेसबुक पर एक अति महत्वपूर्ण न्यूज क्लिप किसी मित्र ने पोस्ट की यह 2004 मे प्रकाशित दैनिक जागरण अखबार की एक स्केन पोस्ट थी। जिसमें लक्ष्मी प्रसाद पंत ने केदारनाथ व उसके आसपास घूमकर एक पक्षी रिर्पाट का शीर्षक था “केदारनाथ खतरे में बम की तरह फूटेगा चोराबाड़ी ग्लेशियर “ उस वक्त पंत जी को इस रिर्पोट लिखने पर खूब सताया गया था। इस न्यूज पोस्ट ने फेसबुक के माध्यम से सरकार की पोल खोल दी कि 2004 मे जब लगातर इस प्रकार के खतरे की ओर संकेत किया जा रहा था तो समय रहते क्यो नहीं राहत बचाव के कार्यों सहित संभलने की कोशिशे की गई। सरकार टेलीविजन चैनलों, अखबारों को लॉलीपाप देकर चुप करा सकती है लेकिन सोशियल मीडिया को चुप नहीं करा सकती है। न्यू मीडिया की ताकत व सूचनाओं की तेजी ने सरकारी तन्त्र की विश्वयनीयता व तकनीकी कौशलता को उजागर कर दिया है। यह संभवतः पहली बार होगा कि उत्तराखण्ड की किसी आपदा मे इतनी विविध सूचनाओं , वक्तव्यों, फोटो, वीडियों, वैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय टिप्पणियां सामने आयी होगी। इसमें सोशियल मीडिया सबसे बड़ा खजाना बन गया है जहां हिमालय की इस सुनामी का पल-पल का लेखा जोखा शामिल है। मैंने अपने फेसबुक एकाउण्ट में “उत्तराखण्ड डिजास्टर अपडेट-2013“ एक पेज 13 जून से ही शुरू कर दिया था। इस वेब पेज में उत्तराखण्ड की इस आपदा की प्रत्येक दिन की महत्वपूर्ण सूचनायें, फोटो, वीडियों, टिप्पणियां व आम लोगों की प्रतिक्रियाओं का संकलन किया गया है जो अब तक का सबसे बड़ा सोशियल मीडिया/न्यू मीडिया रिर्सोस पेज है। इस पृष्ठ को लोगों ने भरपूर उपयोग किया व खूब शेयर भी किया। फेसबुक के कई गुप ऐसे है जिसमे 20-25 हजार सदस्य है। एक बार एक गु्रप से पेज को शेयर हो जाता है और यदि उनमें से उन्होनें इस अपने अन्य मित्रों को शेयर किया तो इस प्रकार यह एक श्रृंखला बन जाती है इस प्रकार आपकी एक पोस्ट लाखों लोगों तक पहुंच जाती है। यह पृष्ठ आपदा पर कार्य करने वाली संस्थाओं, संस्थानों, वैज्ञानिकों, मीडियाकर्मियों के लिए अति महत्वपूर्ण सिंगल विन्डो सिस्टम है। जिसमें आम लोगों से लेकर महत्वपूर्ण लोगां की आपदा से सन्दर्भित जानकारियां को जुटाया गया है। हिमालय की इस आपदा का डॉक्यूमेंटेशन भले ही कुछ दिन बाद विभिन्न विभाग संस्थान वैज्ञानिक अपने-अपने तरीके से करने का भले ही प्रयास करेंगे लेकिन सह समझने वाली बात है कि जितनी तेजी से सूचनायें न्यूमीडिया के माध्यम से लोगां तक पहुंची व संकलित हुई ऐसी तकनीकी व्यवस्था अभी तक दुनियां में नहीं हो पायी थी। फेसबुक ने इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभाई जो पल-पल की खबरें लगातार लोगों के साथ आज भी साझा कर रहा है। सूचनाओं के सूरमा समझने वाले प्रिन्ट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया को भी न्यू मीडिया ने अपने तन्त्र के अन्दर पैक कर दिया है। सोशियल मीडिया ने उनके द्वारा जुटाई गई सामग्री को भी अपने मीडिया के माध्यम से करोड़ो लोगों तक पहुंचाने की व्यवस्था कर दी है। सोशियल मीडिया अथवा न्यू मीडिया के इस स्वरूप व ताकत को समझने में अभी भी सरकारें संजीदा नहीं है। सरकारों के पास न्यूमीडिया के माध्यम से आमजन मे साझा की जा रही सूचनाओं से आपदा राहत कार्यां, खोज बचाव व लोकेशन हंट करने जैसे विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञों का कोई पैनल नहीं है। अभी सूचना विभाग के एक विज्ञापन में फेसबुक पेज खोलने की बात की गई है। देर आये दुरस्त आये कम से कम कुछ तो समझ आयी लेकिन यह सिर्फ दिखावे के लिए न हो । न्यू मीडिया के इस युग से सरकार को “न्यू मीडिया सेल“ खोलना चाहिये जो सतत रूप मे इस दिशा मे काम कर सके क्योंकि जनता के हाथ मे आज एक ऐसा यन्त्र व हथियार आ गया है जिसका उपयोग त्वरित रूप से किया जा सकत है। सरकारें कितना भी प्रयास करें लेकिन तन्त्र की अपनी सीमायें होती है। इसलिए अच्छा यही है कि आमजन को न्यू मीडिया के सदुपयोग हेतु शिक्षित प्रशिक्षित किया जा सके । जैसे-जैसे लोग सोशियल मीडिया को समझेंगे सरकार के लिए बहुत बड़ी सहायता के लाखों हाथ हर वक्त खड़े रहेंगे ।
फेसबुक पर सोनम नेगी रावत की यह पोस्ट बहुत कुछ बयां कर देती है। मेरा पहाड़ रो रहा है। पर आंसू पोछने वाला है ही कौन? न मैं, न आप, न सत्ता, न ही अपने, जो थे वो चले गये, जो वहां हैं उनके आंसू भी सूख चुके है। बाकी बचे हम जिन्दगी की दौड़ में कहीं पीछे न छूट जाये, इसलिए पहाड़ को छोड़कर आ गये। बस ये कहते हुये कि यहां कुछ नहीं है फिर हमें ये हक किसने दिया कि हम हमें कहें “मै उत्तराखण्ड का हूॅ “फेसबुक पर बैठकर लिखना आसान है। और हम फिलहाल बस यही कर सकते है। लेकिन यह समय हाथ पर हाथ धरे बैठने का नहीं है। आइये मैदान मे कूदें और आपदा से लड़ते के लिए खड़े हो जायें।