November 21, 2024



सांस्कृतिक विरासत

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अरुण कुकसाल


हरिया तेरो गात, पिंगंली तूरी ठून, 
लला तेरी आंखीं,नजर तेरी बांकी


कुमाऊंनी सांस्कृतिक विरासत को संवारती किताब. मिञ चन्द्रशेखर तिवारी से भारती पाण्डे जी की हाल में प्रकाशित कृति ‘कुमाऊं की अनमोल सांस्कृतिक विरासत’ सस्नेह पढ़ने को मिली. साहित्य एवं समाज सेवा में भारती पाण्डे का योगदान उल्लेखनीय हैं. सामाजिक स्तर पर कई वर्षों से अनेकों बच्चों के भविष्य संवारने में उनकी सक्रियता काबिलेतारीफ है. वे अपने बच्चों के साथ-साथ कई जरूरतमंद बच्चों के जीवन में मां की भूमिका में चुपचाप व्यस्त रहती हैं. सामान्यतया साहित्यकारों के बड़बोलेपन और आत्म-प्रशंसा से परे हटकर भारती पाण्डे शांतभाव से समाज सेवा और साहित्य साधना को अपनाये हुए है. उत्तराखण्डी समाज, संस्कृति और महिलाओं के सरोकारों पर उनका लेखन पठनीय और दिशाबोधक है. ‘हिन्दी, कुमाऊंनी, गढवाली, जौनसारी शब्दकोश’ उन्होने तैयार किया है. कुमाऊंनी लोककला पर ‘एेपण’, लोककथाओं पर ‘का्थ क्वीड.’ महिला विषयक ‘कुन्ती विमर्श’ उनकी चर्चित पुस्तकें हैं. भारती पाण्डे की प्रस्तुत पुस्तक कुमाऊंनी जनजीवन में निहित उमंग, उत्साह और उल्लास को सांस्कृतिक विरासत के रूप में रोचकता से अभिव्यक्त करती है. यह पुस्तक इन संर्दभों में भी सार्थक लगी कि कुमाऊंनी संस्कृति में निहित संस्कारों की प्रमाणिकता एवं उपादेयता को इसमें बखूबी विश्लेषित किया गया है. हमारी वर्तमान जीवन शैली में वीरान होती सांस्कृतिक परम्परायें, रीति-रिवाजों और संस्कारों को बताती-समझाती यह पुस्तक मुझ जैसे पाठक को बचपन की स्मृतियों से मुलाकात करती हुयी लगती है. मेरा बचपन से किशोरावस्था का कुमाऊं इसमें साकार हुआ है. पुस्तक के 8 अध्याय हैं. पुराण एवं इतिहास में कुमाऊं, गणेश पूजन, पर्व – त्योहार, लोकगीत, लोकनृत्य, हस्तकौशल, लोकजीवन, लोकसंवाद के कई रंग-रूप इसमें आपको मिलेगें. भारती जी ने कुमाऊंनी लोकशब्द संपदा के संकलन और बोधगम्यता के दृष्टिगत हिन्दी अनुवाद भी दिया है. उत्तराखण्ड में कुमाऊंनी-गढ़वाली भाषा में साहित्य सजृन की भीड़ का यह दौर है. लेकिन लोगों के परिवेश और जीवन शैली में वह नदारत है. अत: इस विरोधाभासी समयकाल में वही साहित्य सार्थक और टिकेगा जो सचमुच में जिये जा रहे जीवन में अपने लिए जगह बना पायेगा. यह पुस्तक इन्हीं संर्दभों में कुमाऊंनी सामाजिक जीवन के बिछुड़े पन्नों को संवारती नजर आती है. संस्कृति विभाग के प्रशंसनीय सहयोग औऱ अग्रणी-लोकप्रिय विनसर पब्लिशंग कं., देहरादून से प्रकाशित इस पुस्तक से जुड़े सभी महानुभावों एवं संस्थाओं को साधुवाद. भारती पाण्डे जी को विशेष बधाई और शुभकामना.