उजाले की किरण बने पौड़ी के पहाड़
सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’
कहते हैं “जहां चाह- वहां राह।” कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों के बाद उसके कुछ सुखद परिणाम भी पहाड़ों में देखने को मिलते हैं। पलायन के कारण अपने मूल स्थान को छोड़कर चले यहां से चले जाने वाले लोग, इस महामारी की त्रासदी के बाद अपने गांवों को लौटे हैं। गांव में खेती की जोत कम पड़ जाने के कारण कुछ प्रगतिशील युवाओं में नया उत्साह उत्पन्न हो गया। उन्होंने अपने निर्जीव पड़े पाखों (घस्याड़ों) पर सोलर पैनल/ प्लेटें लगवा कर आज खूब पैसा, प्रगति, स्वरोजगार और संपन्नता का जीवन जी रहे हैं। जिससे वीरान पड़े हुए पहाड़ों के पाखों पर नई चहल-पहल है। अचानक दो बरस में सौर ऊर्जा से चमकने लगे हैं। रात्रि के समय सफर करने पर जब इन पाखों की तरफ नजर डालो तो लगता है कि जैसे अनेक सैनिक छावनियां यहां बन चुकी हैं।
अभी हाल में अपनी पौड़ी गढ़वाल की यात्रा के दौरान पर्वतीय क्षेत्रों में हमारा परंपरागत विकास था, उसकी एक झलक देखने को मिली है। “हीरो ऑफ नेफा” महावीर चक्र प्राप्त बाबा जसवंत सिंह के गांव पहाड़ियों से जाते आते समय नयार घाटी के ऊपर के क्षेत्र जगमगाते नजर आए। सारे पहाड़ सोलर प्लेटों से ढके हुए हैं और उसके द्वारा आज वे सौर उर्जा प्रकाश से जगमगा रहे हैं। साथ ही स्वरोजगार के साधन उत्पन्न हो चुके हैं। सन साइड के क्षेत्रों में जहां घास भी उत्पन्न नहीं होती थी, वहां युवा वर्ग ने कटीली झाड़ियों को साफ करके, सोलर प्लेटों को लगाकर, सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन शुरू किया तथा खासी मात्रा में बिजली उत्पादन के साथ, अपने जीवन की खुशहाली भी अर्जित की है।
कोरोना महामारी के कारण सबसे ज्यादा असर युवा वर्ग पर पड़ा। वर्षों से चली आ रही है उनकी प्राइवेट नौकरियां चली गई। बेरोजगारी फैल गई तथा अचानक पहाड़ों में रिवर्स पलायन का दौर शुरू हुआ। गांव के मूल निवासी भी चिंतित होने लगे कि इतनी बड़ी तादाद में बेरोजगारों की फौज को कहां खपाया जाय। लोगों ने अपने घर- गांव की जगह- जमीन को खोजा और जगह- जगह पर अक्षय ऊर्जा / सौर ऊर्जा के द्वारा अपने को पुनर्स्थापित करने का कार्य किया।
पौड़ी गढ़वाल के चार ब्लाक विकासखंडों से होकर मैंने यात्रा की और पाया कि बीरोंखाल, पोखड़ा, रिखणीखाल, यमकेश्वर में आज पहाड़ कुछ और ही अंदाज में नजर आए। सरकार की योजनाओं का लाभ उठाते हुए युवाओं ने एक ओर अनुदान का लाभ प्राप्त किया तो दूसरी ओर बिजली उत्पादन के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया। अपने उपयोग के बाद बची हुई बिजली को बेचकर अनेक युवाओं ने अकूत संपत्ति प्राप्त कर ली है। परिणाम यह हुआ कि पर आज देखा- देखी पौड़ी के निर्जीव और बंजर पड़े इलाके सौर ऊर्जा प्लेटों से ढके हुए हुए नजर आ रहे हैं। पौड़ी गढ़वाल में सड़कों के जाल होने के कारण यह कार्य संपन्न हो चुका है और आसानी से ही लोगों को इस प्रकार के उद्योग स्थापित करने में मदद मिली है। जो कि उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। आने वाले समय में इसी प्रकार के अन्य भी अनुसंधान पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाले हैं।
चंबा मसूरी फल पट्टी टिहरी गढ़वाल में जहां होटल व्यवसाय चरम पर पहुंच चुका है, वहीं पौड़ी गढ़वाल के क्षेत्रों में सौर ऊर्जा के द्वारा स्वरोजगार के क्षेत्र में यह एक अद्भुत क्रांति उत्पन्न हो चुकी है। यद्यपि युवा उद्यमियों के साथ बैठने, उनसे बातचीत करने, उनके प्लांटों को देखने का, समयाभाव रहा लेकिन जितना देखा और समझा वह एक सुखद आभास कराने वाला है। युवा पीढ़ी के लिए विकासवादी सोच के द्वार खोलने वाला आयाम है। मैं इन समस्त नव उद्यमियों को अपनी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए आशा करता हूं कि यह लोग क्षेत्रीय युवाओं को इस प्रकार की अद्भुत कार्यों से प्रेरित करते रहेंगे।
पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी रोजगार की असीमित संभावनाएं हैं। बस! केवल इच्छाशक्ति का होना जरूरी है। फल सब्जी उत्पादन, फूड प्रोसेसिंग, कुटीर और लघु उद्योग, लघु होटल उद्योग व्यवसाय, होमस्टे योजना, सौर ऊर्जा पर आधारित उद्योग, सामूहिक खेती आदि न जाने कितने प्रकार के संभावना हैं। दूर-दराज के क्षेत्रों में जाकर छोटी- मोटी नौकरियों के पीछे जीवन बर्बाद करने के बजाय, यदि लोग पर्वतीय क्षेत्रों में ही इस प्रकार के विकास कार्यों को करें तो इस से दोहरा लाभ क्षेत्र को मिल सकता है। पलायन, बेरोजगारी, कुंठा और गरीबी दूर होगी तथा अपनी लोक संस्कृति, लोक समाज, लोक जीवन से भी जन जुड़ा रहेगा। सोचने समझने और उसे आत्मसात करने मे मदद मिलेगी। पुनः एक नई सोच उत्पन्न होगी। इसके अलावा पारंपरिक खेती- बाड़ी और जीविकोपार्जन के अनेक साधन धीरे-धीरे विकसित होंगे। पशुपालन के क्षेत्र में भी ध्यान देना चाहिए। यह भी रोजगार का एक साधन है।