श्रीनगर – नगर निगम का औचित्य
योगेन्द्र कांडपाल
श्रीनगर को नगर निगम की सौगात मिले लगभग दो माह होने को हैं लेकिन शहर में न ढोल न नगाड़े, न पटाखे, न आक्रोश, न विरोध और कोई खास चर्चा-परिचर्चा भी नही है जब कि वर्तमान सत्ता सरकार और समर्थकों का उत्साह तो इस कदर है कि बिहार में चुनाव के फैसले आते हैं और श्रीनगर में आतिशाजी होती है, लेकिन नगर निगम बनने की कोई खुशी नहीं, चलो खुशी नही तो विरोध ही सही पर कुछ नही। पहाड़ के शिक्षा और राजनीति के केन्द्र श्रीनगर में यह निःस्स्तब्धता और मौन स्वीकृति समझ से परे है।
उत्तराखण्ड राज्य के गढवाल मण्डल का प्रमुख पहाड़ी कस्बा श्रीनगर जनपद पौड़ी गढ़वाल, शायद राज्य के पर्वतीय भैगोलिक परिस्थितियों वाला पहला नगर निगम बनने जा रहा है ऐसा कैबनेट का फैसला है। बद्रीनाथ-केदारनाथ यात्रा पर्यटन मार्ग का प्रमुख पड़ाव होने के साथ-साथ इतिहास के विभिन्न कालखण्डों में इस शहर का अपना महत्व रहा है। 70 के दशक में गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से यह कस्बा पर्वतीय क्षेत्र में उच्च शिक्षा का प्रमुख केन्द्र है। यहां की जनांकिकी विस्थापन आधारित ही रही है। अनेक राजनैतिक घटनाक्रमों, प्राकृतिक आपदाओं व सामाजिक बदलाओं से यहां का जनसंख्या घनत्व घटता और बढ़ता रहा है।
सन 1932 में यहां टाउन एरिया के प्रथम चुनाव हुये तथा सन् 1968 में श्रीनगर को नगर पालिका का दर्जा मिला। गढ़वाल विश्वविद्यालय, राजकीय पालीटेक्निक आदि अनेक शैक्षिक संस्थनों व बेस चिकित्सालय जैसे उच्च चिकित्सा संस्थानों की स्थपना के बाद श्रीनगर व उसके आस-पास डांग, उफल्डा, श्रीकोट व चैरास आदि निकटवर्ती क्षेत्रों में बसवाटे सघन होती रही हैं। आवसीय सघनता के बढते क्रम को देखते हुए 80 के दशक में उत्तरप्रदेश सरकार ने श्रीनगर महायोजना का खाका तैयार किया तथा पालिका के निकटवर्ती क्षेत्रों को विनियमित क्षेत्र घोषित कर दिया ताकि आने वाले समय में नगर निकाय को विस्तरित किया जा सके।
सन् 2019 में श्रीनगर पालिका से लगी ग्राम पंचायतों जैसे- श्रीकोट, रेवड़ी, डांग और उफल्डा को नगरपालिका में सम्मिलित किया गया और अब 2021 में नगर पालिका को विस्तारित कर नगर निगम का फैसला राज्य सरकार की कैबनेट ने लिया है, फैसला क्या आदेश भी जारी कर दिया गया है लेकिन जब 2019 में श्रीनगर नगरपालिका को विस्तारित किया गया था तब भी यही सरकार व यही कैबनेट थी तब ऐसा क्यों नहीं लगा कि श्रीनगर नगरपालिका को श्रीकोट, रेवड़ी, डांग, उफल्डा तक ही विस्तारित नहीं करना है वल्कि इसे नगर निगम बना देना है। केवल एक वर्ष के अन्तराल में ऐसा क्या हो गया कि श्रीनगर को नगर निगम बनाना अति आवश्यक है?
वर्ष 2019 में श्रीनगर नगरपालिका के चुनाव हुए और नगरपालिका परिषद गठित कर दी गयी। क्या इतने कम समय में नगरापालिका परिषद को भंग कर नगर निगम की स्थापना करना, जनादेश का अपमान व सरकारी धन का अपव्यय नहीं माना जायेगा? क्या श्रीनगर नगरपालिका के विस्तारित क्षेत्र श्रीकोट, रेवड़ी, डांग व उफल्डा नगरीय सुविधाओं से संतृप्त हो चुके हैं कि वर्तमान पालिका क्षेत्र में विकास कार्यों की सम्भावना ही नहीं रह गयी है। क्या श्रीनगर की जनसंख्या व भौगोलिक क्षेत्रफल नगर निगम की सभी मानकों को पूरा करता है? यदि नहीं तो आखिर वे कौन से आपात कारण हैं कि सरकार को नियम व मानकों में शिथिलता लाकर आनन-फानन में श्रीनगर को नगर निगम बना देना है?
यहां समय – समय पर अनेक जन समस्याओं के लिए आन्दोलन होते रहे हैं। जैसे- श्रीनगर में एन, आइ. टी. के स्थायी परिसर निर्माण के लिए आन्दोलन, श्रीनगर में रोडवेज डिप्पो के विधिवत संचालन व बस अड्डे के नवीनीकरण के लिए आन्दोलन, बेस अस्पताल की व्यवस्थाओं को लेकर आन्दोलन, पानी के मीटरों को हटाने के लिए जन आक्रोश आदि अनेक आन्दोलन पिछले 4-5 वर्षों से यहां होते रहे हैं लेकिन अभी तक उपरोक्त में से किसी भी एक समस्या का स्थायी समाधान सरकार नहीं कर पायी है। जब कि नगर निगम बिना आन्दोलन के बिना ज्ञापन प्रस्ताव के मिल जाना अचम्भित करता है।
श्रीनगर नगर निगम की स्थापना हेतु भौगोलिक और जनांकिकीय मानकों को पूरा करने के लिए विकासखण्ड खिर्सू के गहड़, स्वीत, फरासू, डुंग्रीपन्त, कलगड, ढामक कलियासौड़ आदि और विकासखण्ड कोट के नकोट, धनचड़ा दिगोली, बेलकण्डी, धौलकण्डी, चामपाणी आदि गांवें को शामिल किया गया है। नगर निगम बन जाने पर इन ग्रमीण क्षेत्रों की पंचायती स्वायत्तता समाप्त हो जायेगी और सारे संसाधन निकाय या निगम के अधीन हो जायेंगे जबकि इन ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश निवासियों का रहन-सहन निहायत ग्रामीण है जिनकी आजीविका पूर्णतया कृषि और पशुपालन पर आधारित है। नगर निगम बन जाने पर जल, जंगल और जमीन निगम के अधीन आ जाने से इनकी आजीविका और अस्तित्व के संकट में आने की बड़ी सम्भावना है।