‘पहाड़ी घर’ पर्यटकों को बुला रहा
सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’
नाम से ही नहीं बल्कि काम से होती है व्यक्ति की पहचान। छोटी उम्र में बेमिसाल कार्य करने वालों की गढवाल में भी कमी नहीं। इसी कड़ी में पूर्व सैनिक श्री जितेंद्र सिंह पुंडीर भी हैं एक। 37 वर्षीय श्री जितेंद्र सिंह पुंडीर, सेना से सेवानिवृत्ति के पश्चात परिश्रम, कुशाग्रताक्षऔर पुरुषार्थ की मिसाल हैं। ग्राम खड़ीखाल के श्री बचन सिंह पुंडीर जी के चार पुत्रों में से एक श्री जितेंद्र सिंह पुंडीर हैं। सेना में भर्ती होने के बाद 17 साल तक सैनिक के रूप में सेवा की और 2020 को सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद उन्होंने अपने ही क्षेत्र में चौखाल स्थान पर “पहाड़ी घर” बनाकर पर्यटकों को आकर्षित किया।
चंबा से 06 किलोमीटर दूर मसूरी सड़क मार्ग से सटे स्थल पर अपनी पुरानी छानी को व्यवस्थित कर आधुनिक “पहाड़ी घर” बनाया। उसके बाद अपनी पुश्तैनी जमीन में 11 हट्स और रेस्टोरेंट का निर्माण किया। साथ ही 6 कैंप हट्स भी बनवाये हैं। बहुत सुविधाजनक और आकर्षक इन हटो में ऑनलाइन बुकिंग होती है और उत्तर भारत के कोने- कोने से पर्यटक यहां आ रहे हैं। जो सुविधाएं किसी अच्छे सितारा होटल में नहीं मिलती, वह श्री जितेंद्र सिंह पुंडीर अपने ग्राहकों को प्रदान करते हैं। सीजन में ₹4500/ तक प्रति हट प्रति दिन का किराया खुशी- खुशी उनके ग्राहक भुगतान करते हैं। आफ सीजन पर किराए में घट-बढ होती है। उनके हटों की हफ्तों पहले बुकिंग हो जाती है। समर्पित भाव से ग्राहकों की सुविधाओं का बहुत ध्यान रखते हैं।
स्वच्छ, सुंदर, आकर्षक, वेज- नॉनवेज और पहाड़ी व्यंजनों का लुफ्त वहां पर पर्यटक उठाते हैं। समीपवर्ती शहर चंबा और नई टिहरी के अनेकों लोग पार्टी देने के लिए इन कैंपों में आते हैं और खुले वातावरण में प्रकृति के सानिध्य में भोजन आदि का आनंद लेते हैं। इन हटों में विश्राम करते हैं। अधिकांश पर्यटक और ग्राहक, परिवार सहित यहां आते हैं। सुविधाजनक, सड़क संपर्क मार्ग से जुड़ा हुआ, अच्छी पार्किंग, सामने हिमालय का विहंगम दृश्य, चारों ओर हरीतिमा, हटों के इर्द-गिर्द सुंदर फुलवरियां, दूर- दराज तक दिखने वाली छोटी-मोटी पहाड़ियां और विस्तारित नीला आकाश बहुत ही आकर्षक दिखता है।
हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों से लेकर, सूर्योदय की पहली किरण के साथ यहां का वातावरण बहुत ही सुरम्य और आकर्षक नजर आता है।श्री जितेंद्र सिंह पुंडीर के अन्य तीनों भाई भी उनके इस कार्य में सहयोग करते हैं। यहां तक कि उनका भतीजा भी खाली समय में कार्य को संचालित करने में सहयोग प्रदान करता हैं। 5-6 नियमित कर्मचारियों के अलावा वह दैनिक मजदूर री पर भी कर्मचारियों की व्यवस्था करते हैं। जिन्हें ₹ 500/ 600/ दैनिक मजदूरी, रहने खाने के लिए व्यवस्था प्रदान की जाती है। व्यवहार कुशल और विनम्रता के धनी श्री जितेंद्र सिंह की सेवाओं से उनके ग्राहक कायल हो जाते हैं और उनके कार्य और व्यवहार की भूरी- भूरी प्रशंसा करते हैं।
पूर्व सैनिक संगठन के अध्यक्ष श्री देव सिंह पुंडीर, संरक्षक श्री इंद्र सिंह नेगी, सेना मेडल प्राप्त कैप्टन बृजेंद्र सिंह और मैने इन कैंपों में भ्रमण किया। सौभाग्य की बात है कि कैप्टन विजेंद्र नेगी की पल्टन के ही कर्नल सुशील कोटनाला का वहां आगमन हुआ। कर्नल कोटनाला के साथ विस्तृत बातचीत करने का मौका भी मिला। सेना, पूर्व सैनिक, पर्वतीय क्षेत्रों के विकास, पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटन की संभावनाएं और हिमालय की सुंदरता और पवित्रता के बारे में अनेक बातें हुई। कर्नल सुशील कोटनाला ने भी श्री जितेंद्र सिंह पुंडीर की प्रशंसा की और स्वयं के लिए भी इस प्रकार के कार्य करने में दिलचस्पी दिखाई।
शहरों की भीड़-भाड़ से दूर, इस प्रकार के स्व- रोजगारमूलक कार्यों के प्रति पहाड़ी युवाओं का रुझान दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। कोरोना वायरस के बाद असंख्य लोगों का पहाड़ के तरफ रिवर्स पलायन हुआ। अनेक ऐसे उदीयमान प्रतिभाओं ने अपने क्षेत्रों में कृषि, लघु उद्योग, व्यापार और पर्यटन के क्षेत्र में अपनी किस्मत अजमायी। वह आज अच्छी खासी कमाई भी कर रहे हैं। श्री जितेंद्र सिंह पुंडीर एक सेवानिवृत्त सैनिक के साथ दसों लोगों को रोजगार भी दिए हुए हैं। पहाड़ के लिए इससे अधिक सौभाग्य की बात और क्या हो सकती है। उनके भाई सोबन सिंह, राजेंद्र सिंह, विजेंद्र सिंह और भतीजा विकास पुंडीर भी समर्पित भाव से इस पहल को आगे बढ़ाते हैं।
सेना मेडल कैप्टन विजेंदर सिंह के साहस, लगन और समर्पण की भी कर्नल सुशील कोटनाला ने प्रशंसा की। उन्होंने कैप्टन बिजेंद्र सिंह के बारे में बताया कि एवरेस्ट अभियान का हिस्सा होने के साथ-साथ कैप्टन बिजेंद्र ने सेना में 5 कोर्स किए।जो कि सेवा के दौरान किए। उन्होंने उचित प्रशिक्षण लेकर देश की सेवाएं की। इसलिए उन्हें कैप्टन बिजेंद्र साहब पर गर्व है। दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा के अवसर पर इस प्रकार के लोगों को मिलना, उनके साथ बातचीत करना तथा पुरुषार्थी व्यक्तियों से पहाड़ के विकास की अनेक बातें समझना और सीखना किसी सौभाग्य से कम नहीं है। साहित्यकार होने के नाते मेरा भी यह नैतिक कर्तव्य है कि ऐसे लोगों की कर्तव्य परायणता को समाज के सम्मुख समय-समय पर लाता रहूं जिससे युवा पीढ़ी को एक प्रेरणा मिलेगी और लोग नौकर के स्थान पर मालिक बनना उचित समझेंगे।
शहरों की दौड़ भाग पूर्ण जिंदगी से दूर रहकर अपने पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार ढूंढेंगे और अन्य लोगों को भी रोजगार देंगे। साथ ही शहरों का पैसा भी पहाड़ों में आएगा। बाजारों की क्रय शक्ति बढ़ेगी और युवा वर्ग अपने परिवार के साथ सुखमय जीवन जिएगा। बच्चों को उचित शिक्षा दीक्षा भी प्रदान करवा सकेंगे। संक्षेप में कह सकता हूं कि श्री जितेंद्र सिंह पुंडीर युवा वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। यदि हम उनसे कुछ सीख सकें और उनके कार्यों का अनुसरण कर सकें तो हम नाम, सम्मान, पैसा और प्रतिष्ठा चारो चीजे कमा सकते हैं। अपने लोगों के साथ रहकर टीम वर्क के द्वारा भी कार्य कर सकते हैं। वृद्धावस्था में मां- बाप की सेवा के साथ – साथ बच्चों का उचित लालन-पालन, शिक्षा- दीक्षा और देखभाल भी कर सकते हैं। एक बार पुन: श्री जितेंद्र सिंह पुंडीर की कार्यों को सलाम।