उर्गम घाटी यात्रा – 2
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संदीप गुसाईं
नंदीकुंड ट्रैक-तीसरा पड़ाव वैतरणी (14500 feet) मनपाई बुग्याल तक के सफर का रोमांच आप पहले ही पढ चुके है।
अब नंदी कुंड ट्रैक में हमारा कारवां बर्मा बुग्याल और वैतरणी की ओर आगे बढना शुरु हो गया। मनपाई बुग्याल से करीब ढाई किमी की चढाई के बाद घुडसांगरी टाप पर जैसे ही हम पहुचे तो पूरा नजारा बदल गया। घुडसांगरी समुद्रतल से करीब 13000 फीट की ऊचाईं पर स्थित है। यहां से हिमालय की चोटियों के दीदार कर हम मंत्रमुग्ध हो गये। त्रिशूल, नंदादेवी, द्रोणागिरी, हरदेवल और ब्रम्हल सहित कई चोटियों दिख रही थी। इस स्थान पर मां नंदा का छोटा मंदिर भी स्थित है जहां स्थानीय लोग नंदाजात के दौरान पूजा अर्चना करते है। मान्यता है कि इसी स्थान पर मां भगवती रक्तबीज का वध करने के बाद रुखी थी जिसके बाद इसे घुडसांगरी नाम पडा। यहां पहुच कर पूरा नजारा ही बदल गया। रुद्रनाथ की पहाडियां और बुग्याल यहां से बेहद खूबसूरत नजर आ रहे थे। घुडसांगरी से हमें वो दर्रा भी दिखा जिसे पार कर हमें नंदाकुड पहुचना था। लक्ष्मण नेगी बता रहे थे कि प्रसिद्व पंचकेदार ट्रैक भी इसी मार्ग से किया जाता है। यहां थोडा आराम करने के बाद हम धीरे धीरे बुग्यालों के अनगिनत फूलों की खूशबू के बीच आगे बढते गये। अब ढलान शुरु हो चुकी थी। करीब ढाई किमी चलने के बाद एक नदी मिली जिसे पार करने के बाद अब कठिन चढाई शुरु हो चुकी थी। कई जगह रास्ता बेहद खतरनाक था। जब सुबह मनपाई बुग्याल से हमने सफर शुरु किया था तो मौसम साफ था लेकिन दोपहर 1 बजे तक आसमान में बादलों ने अपना डेरा डाल दिया था। ऊंचाई बढने के साथ साथ फूलों की प्रजातियां भी बदलती जा रही थी. करीब दो बजे हम बर्मा बुग्याल पहुचे।एक ऐसा बुग्याल जहां अचानक कोहरा आता थोडी देर रुकता और फिर आगे बढ जाता। ये सिलसिला कई बार होता रहा जो एक अनोखा रोमांच पैदा कर रहा था। चढाई अब सीधी खडी होनी शुरु हो गई। प्यास बहुत तेज लगी थी और पानी का कहीं नामोनिशान नही थी। तभी राजेन्द्र रावत जो हमारे साथ पोर्टर के रुप में आ रहा था एक पहाड़ी पर गया और पानी का इंतजाम कर दिया। बर्मा बुग्याल के पास ही कैलाविनायक का एक छोटा मंदिर है जहां पर हमने मथ्था टेका और भगवान गणेश का आशीर्वाद लेकर आगे बढ गये। करीब 4 बजे मुश्किल चढाई को पार कर हम पहुचे वैतरणी. अदभुत, अविश्वमरणीय, अलौकिक, एक दिव्य स्थान ब्रम्हकमल से घिरा वो स्थान जहां सदियों पहले ब्रम्हा ने तपस्या की थी। एक दूसरी किवदंती है कि वैतरणी का जल गोपेश्वर में स्थित वैतरणी में पहुचता है। वैतरणी एक कुंड के रुप में पूजनीय है जिसके एक छोर पर स्थानीय लोगों ने पत्थरों से मंदिर निर्मित किया है।स्थानीय लोग इस स्थान को काफी पवित्र मानते है। लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि इस स्थान पर बेहत शालीनता से रहना होता है। जूठे बर्तन इस कुंड में नही धोए जाते। अब बर्फीली हवाओं के साथ ही बारिश की फूहारें गिरनी शुरु हो गई। चूंकि वैतरणी में कहीं भी बड़ी चट्टान की आड़ नही है ऐसे में हमें मुश्किलें होगी यह तय था।
शाम के समय हमने टैंट लागने शुरु किए और हमारी टीम चाय की तैयारी करती तभी पता चला कि जो एकमात्र स्टोव हम लाएं उसका सामना रास्ते में कहीं गिर गया है जो अब स्टार्ट नही हो सकता। सबकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया कि अब खाना कैसे बनेगा क्योंकि वैतरणी कुंड से दूर दूर तक लकडी का कहीं नामोनिशान नही था तभी कुलदीप बंगारी ने अपना छोटा स्टोव निकाला ठंड बढती जा रही थी बर्फीली हवाएं और बारिश ने मुश्किल और बढ़ा दी। छोटा स्टोव को जलाते लेकिन तेज हवाओं के सामने वो टिक नही पाता ये सिलसिला काफी देर तक चलता रहा। दूसरी ओर बर्फीली हवाओं के कारण अब बाहर रहना मुश्किल हो रहा था। थोडी देर के लिए हम अपने टैंट में घुस गये। करीब 1 घंटे के बाद मौसम खुलने लगा और कोहरा भी हट गया तो मै और सोहन ब्रम्हकमल को कैमरे में कैद करने चले गये। चारों ओर ब्रम्हकमल, नीलकमल और सूर्यकमल की तेज महक ने पूरी थकान मिटा दी। वापस अपने आशियाने में पहुचे जो थोडा बहुत हमारे लिए खाना बन पडा था वो खाया और सो गये ऊचाई अधिक होने के कारण किसी को भी नींद नही आ रही थी। अब सरदर्द भी होने लगा था। यही हाल सोहन परमार और संदीप पंवार का भी था, खैर किसी तरह आंखों को बंद कर सोने की कोशिश करीब 3.30 बजे सुबह बारिश तेज बारिश की बूंदों ने फिर सबकी नींद खोल दी। कुछ देर बाद बारिश की जगह बर्फ के क्रिस्टल गिरने लगे। अब लगने लगा कि शायद नंदीकुंड जा पाना और मुश्किल हो जाएगा। तभी दूसरे टैंट से लक्ष्मण सिंह नेगी जी मंत्रोचार करने हुए सुनाई दिए। काफी देर वे हनुमान चालीसा, गायत्री मंत्र और स्थानीय जागर गुनगुनाते रहे। नींद अब गायब हो चुकी थी। करीब 6 बजे तक बारिश और फिर बर्फ की फूहारें गिरती रही और उसके बाद जैसे चमत्कार हुआ ना सिर्फ मौसम खुला बल्कि सूरज की किरणों ने हमें नई ऊर्जा दी। चारों ओर की पहाडियों में बर्फ की चादर बिछ चुकी थी और आज का दिन हमारे लिए सबसे मुश्किल था क्योंकि ना सिर्फ नंदी कुंड पहुचना था बल्कि वहां से वापस लौट कर मनपाई बुग्याल पहुचना था.
फोटो – सोहन परमार