February 23, 2025



उर्गम घाटी यात्रा – 1

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संदीप गुसाईं 


ये है वंशीनारायण मंदिर जहां साल में मात्र एक दिन रक्षाबंधन को पूजा होती है।


मंदिर 6 फीट से भी लम्बी विशालकाय शिलाओं से बना है। मान्यता है कि पांडव यही से होकर बद्रीनाथ के लिए आगे बढे। मंदिर के पास नारायण की फूलों की बगिया है जहां स्थानीय लोग फूल नही तोडते साथ ही स्थानीय भेड बकरियां और जानवर भी इस स्थान पर नही जाते। स्थानीय लोग रक्षा बंधन के दिन यहां पूजा अर्चना के लिए बडी संख्या में पहुचते है। सबसे बड़ा आश्चर्य कि कुंवारी कन्याएं और विवाहित महिलाएं पहले वंशीनारायण को राखी बांधती है और फिर अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है। पौराणिक मान्यताएं है कि बामन अवतार धारण कर भगवान विष्णु ने दानवीर राजा बलि का अभिमान चूर कर उसे पाताल लोक भेजा। बलि ने भगवान से अपनी सुरक्षा का अनुरोध किया तो भगवान विष्णु स्वयं पाताल लोक में बलि के द्वारपाल हो गये। ऐसे में पति की मुक्ति के लिए स्वयं लक्ष्मी देवी पाताल लोक पहुची और राजा बलि को राखी बांधकर भगवान को मुक्त कराया। लोकमान्यताएं है कि तभी से भगवान विष्णु इस स्थान पर प्रकृत हुए।


दूसरा पड़ाव-मनपाई बुग्याल

नंदी कुंड यात्रा के पडाव में वंशीनारायण के बाद मनपाई बुग्याल (12,ooo feet) हमारा दूसरा पड़ाव था। सुबह करीब 7 बजे नाश्ता करने के बाद हमारी टीम मनपाई के लिए निकल गई। यकीन मानें वंशीनारायण के बाद तो आप जैसे स्वर्ग में चल रहे हो ऐसा प्रतीत होता है। हरी चादर ओढे रंग बिरंगे फूलों की खूशबू मदहोद कर देती है। बंशीनारायण के बाद करीब 4 किमी का सफर बेहद आरामदायक है जो करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई तक हमें ले गया। एक पूरा पहाड पार करने के बाद मिनवाखाल आया जहां पर स्थानीय लोगों ने पत्थरों से मां नंदा का मंदिर बनाया है। पूजा अर्चना की तो उसी दौरान बारिश और कोहरा दोनो एक साथ आ धमके। आगे बढे तो ढलान शुरु हो गई लेकिन बुग्याल अभी भी जारी था। यकीन नही हो रहा था रास्ते भर फूलों की खूशबू हमें आनन्दित कर रही थी। कैमरामैन सोहन परमार और संदीप पंवार भी इस रोमांचक यात्रा का आनन्द ले रहे थे साथ ही हमारे बडे भाई लक्ष्मण नेगी भी हमें कई महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे थे। अब ढलान का करीब 2 किमी सफर तक करने के बाद मौसम फिर साफ हुआ तो गोदला खर्क दिखाई दिया जहां डुमुक कलगोट गांव की करीब 12 सौ बकरियों ने हमे घेर लिया। नजारा देख मन में खुशी का ठिकाना ना रहा। बकरियों की नन्हे बच्चे तो बुग्याल में उछलते कूदते बेहद सुन्दर दिख रही थे। हम एक स्थान पर बैठ गये और फूलों की घाटी की डुप्लीकेट गगरतोली घाटी को निहारते रहे। जो खाना दिन के लिए पैक किया था उसे खाने लगे। गगरतोली घाटी में 2013 के आपदा के निशां दिख रहे थे।


करीब 2 बजे का समय रहा होगा। गोदरा खर्क से ही हमने मनपाई बुग्याल की पहली झलक देखी मनमोहक, अतुलनीय सौन्दर्य आंखे एकटक मनपाई को देखती रही। गोदला खर्क से हमें नदी पार करनी थी। सफर फिर ढलान का शुरु हो गया लेकिन इस बार बारिश ने दखल दे दिया। बारिश तेज होती गई और हमारे कदमों की रफ्तार भी। भीगते भगाते हमने नदी पार की लेकिन अब चढाई शुरु हो चुकी थी। बुरांश के झुरमुटों से होते हुए अब मखमली खास शुरु हो गई थी। करीब ढाई किमी चढाई के बाद मनपाई बुग्याल पहुचे। अंधेरा हो चुका था। हमारी पोर्टर टीम पहले ही पहुंच चुकी थी बारिश भी थम गई। जैसे ही कैंप में पहुचे सीधे टैंट में घुस गये और आराम करने लगे। हमारी पोर्टर टीम कुलदीप बंगारी के नेतृत्व में पहले ही पहुच चुकी थी। हमारे लिए चाय और सूप की व्यवस्था की गई। कुछ समय बाद खाना खाया और सो गये। अगली सुबह ठीक 6 बजे लक्ष्मण सिंह नेगी ने आवाज लगाई गुसाईं जी बाहर देखिए कितना प्यारा मौसम है। टैंट से बाहर देखा तो मन प्रफुल्लित हो गया। बिल्कुल क्लीन स्काई बादल का कहीं भी नामोनिशान नही था। सूरज की किरणें नंदा देवी और त्रिशूल पर्वत को अपनी लालिमा से जगमगा रही थी। मनपाई बुग्यालन उत्तराखंड के सुन्दरम बुग्लायों में से एक होगा। ये बुग्याल इतना खूबसूरत है कि बस इसे देखने का ही मन करता है। बुग्याल काफी बडा है यहां जगह जगह पर जलधाराएं और सुन्दर बनाती है। करीब तीन से चार किलोमीटर मेें फैले मनपाई बुग्याल में हाथों से फूलों को तोडने की परम्परा नही है। बल्कि यहां फूुलों को दातों से तोडते है। भेड बकरियों की भी यह पसन्दीदा बुग्याल है।…… (यात्रा जारी अगले अंक में)

फोटो – सोहन परमार