कहानी दो बहिनों की
डॉ. एम. पी.एस. बिष्ट
दोस्तों जब भी मैं देवप्रयाग से गुजरता था तो भू विज्ञान के छात्र होने नाते मन में हमेशा एक ही प्रश्न उठता था कि आख़िर भागीरथी और अलकनंदा नदी में कौन पहले बनी यानी उम्र में बड़ी कौन है? वैसे तो वैज्ञानिकों के इस पर अलग-अलग विचार हैं, परन्तु कल जब हवाई मार्ग से मैं इस क्षेत्र के ऊपर से गुजर रहा था तो अपनी उस जिज्ञासा को शान्त करने का मौक़ा मिला। मित्रों जैसा कि अपने कैमरे द्वारा ऊपर से लिये गये इस छायाचित्र व ज़मीनी हक़ीक़त से साफ़ देखा जा सकता है कि भागीरथी जो कि हल्का आसमानी रंग लिये हुए अपने मार्ग में सीधे उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर बह रही है, वहीं अलकनंदा मटमैले रंग के साथ पहले पूरब से पश्चिम फिर अचानक भागीरथी से मिलते ही उत्तर से दक्षिण की ओर दिशागत हो जाती है।
हालाँकि कि दोनों नदियों में बहते पानी का रंग इस वक्त भिन्न है किसी वक्त जब तक टिहरी डाम नहीं बना था यह रंग आज के बिल्कुल विपरीत हुआ करता था। यानी भागीरथी का रंग अक्सर मटमैला और अलकनंदा का हल्का नीला या हरा रंग। अत: इसका सीधा सम्बन्ध पानी की मात्रा के साथ साथ नदी के ढाल पर भी निर्भर करता है। यानी नदी में पानी की मात्रा के साथ ढाल भी अधिक होगा तो सतह का कटाव भी उतना ही अधिक मात्रा में होगा, नतीजन पानी का रंग गाद के कारण मटमैला होगा। वहीं दूसरी ओर कम ढाल में कम कटाव व शान्त स्वभाव के चलते पानी का रंग हल्का नीला व हरा होगा। ये तो रही बात रंगों की परन्तु इसका सम्बन्ध नदी की उम्र की ओर कुछ इशारा भी करती है, तो दोस्तों वहीं विज्ञान ये भी कहता है कि जिसके ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र का कटाव अधिक होगा उस नदी की गहराई भी अधिक होती है।
यह उसके मार्ग की भूगर्भीय संरचना पर भी निर्भर करती है। और बाक़ी उसमें मिलने वाली सभी नदियाँ उसकी सहायक नदी कहलाती हैं। यहाँ पर दो बातें बड़ी महत्वपूर्ण व विचारणीय हैं। पहले भागीरथी अपने सीधे मार्ग में बह रही है और अलकनंदा उसमें आकर मिल ही नहीं रही है बल्कि दिशा भी बदल रही है। दुसरा ये भी सत्य है कि अलकनंदा का जलग्रहण क्षेत्र भागीरथी से अधिक है और उत्यधिक जल की मात्रा व लम्बी दूरी तय करने के कारण ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में नदियों द्वारा लाये गाद का जगह जगह पर जमाव भी देखने को मिलता है, जैसे मलेथा, श्रीनगर, चौरास , धारी, नगरासू ,गोचर, पीपलकोटी, मलारी सरीके बड़े बड़े सीडी नुमा खेत (Terraces)। जबकि भागीरथी में कभी टिहरी, सिंराईं, चिनालीसौड़, उत्तरकाशी और हर्शिल जैसे कुछ ही स्थानों पर ये गाद चौड़े टैरेस के रूप में मिलते हैं। साथ यह भी प्रमाणित है कि अलकनंदा घाटी में ये टैरेस नदी के किनारों पर कहीं कहीं छै: लेबल यानी अलग अलग ऊँचाई पर मिलते हैं।
वहीं भागीरथी में इनके प्रमाण केवल तीन ही लेवल के मिलते हैं। अब अगर बात करें हिमनदौं की तो अलकनंदा जलग्रहण क्षेत्र में लगभग ९७२ हिमनद हैं जबकि भागीरथी के क्षेत्र में कुल २६८ मात्र ही है। इस हिसाब से तो अलकनंदा बड़ी नज़र आ रही है। और शायद हमारे पूर्वजों ने भी इनके आकार प्रकार व क्रिया कलापों को आधार मान कर अलकनंदा को बड़ी बहन और भागीरथी को छोटी बहन की संज्ञा दी है। जैसा कि छोटी को घर पे लाड़ प्यार जादा मिलता है तो वह चपल स्वभाव की होती है जबकि बड़ी बड़े शांत स्वभाव की,
परन्तु मित्रों यहाँ एक सत्य और भी है वो है दोनों जलग्रहण क्षेत्रों की वैज्ञानिक प्रमाणिकता का आधार जी हाँ दोस्तों वैसे तो इन नदियों का उद्भव हिमालय की उत्पत्ति (लगभग ४७ मिलियन वर्ष पूर्व ) के साथ-साथ ही मानी जाती है। परन्तु हाल ही में इन दोनों घाटियों में स्थित हिमनदों के द्वारा छोड़े गये चिन्हों के आंकलन से पता चला कि गंगोत्री ग्लेशियर जो कि आज भी हमारा सबसे बड़ा ग्लेशियर है, के निशान घाटी में लगभग ६५ हज़ार साल के आसपास के हैं, जबकि अलकनंदा घाटी के हिमनदों के चिन्ह २०-२५ हज़ार साल के ही प्रमाण विध्यमान हैं । तो मित्रों ये कहानी थी दो बहिनों की अलकनंदा और भागीरथी की।