लोक माटी से उपजा चित्रशिल्प
बीना बेंजवाल
सुनहरी दाढ़ी में दमकता मुखमण्डल। आत्मा के उजास से दीप्त आँखें। कंधे पर लटकता एक थैला। कला जगत के बीच जाना-पहचाना यह नाम आम जन के बीच भी उतना ही लोकप्रिय था। लोक केवल इनके चित्रों में ही परिलक्षित नहीं होता था वरन् अपनी सादगी और सरलता के साथ इनकी बोली-भाषा और व्यवहार में भी मुखरित होता था। भीड़ के बीच भी सबसे अलग नजर आने वाले इस चित्रशिल्पी का नाम था बी. मोहन नेगी। इनका जन्म 26 अगस्त सन् 1952 को पौड़ी जिले की मन्यारस्यूं पट्टी के पुण्डोरी गाँव में हुआ था।
गोपेश्वर से वर्ष 1986 में श्री बंधु बोरा के संपादन में श्री बी. मोहन नेगी द्वारा किया गया हस्तलिखित पत्रिका ‘प्रयास’ का प्रकाशन उनके कला संयोजन का उत्कृष्ट निदर्शन था। इस पत्रिका ने जहाँ एक ओर नए रचनाकारों को एक मंच दिया वहीं दूसरी ओर साहित्य एवं कला जगत को उनके अद्भुत चित्रशिल्प से भी परिचित कराया। यही कारण था कि श्री बी. मोहन नेगी द्वारा निकाले गए ‘प्रयास’ के 10 अंक संग्रहणीय बन गए।
गोपेश्वर का प्रसिद्ध गोपीनाथ मंदिर। गोपेश्वर गाँव में स्थित उस प्राचीन एवं भव्य मंदिर के निकट अपने छोटे से कमरे में चित्रों का एक विशाल संसार रचता यह कलाकार। भोजपत्र पर बने देश की महान् विभूतियों के चित्रों से सुसज्जित दीवारें तथा उस चित्रकार की साहित्यिक अभिरुचि को दर्शाती कमरे में रखी अनेकों पत्र पत्रिकाएँ। चारों ओर बिखरे प्रकृति के अपार सौंदर्य और लोक जीवन के उस मनभावन परिवेश मे इनकी कला निखरती गई और प्रकृति को अपनी प्रेरणा मानने वाला यह कलाकार लोकजीवन का कुशल चितेरा बन गया। कविता लेखन के शुरूआती दौर में श्री बी. मोहन नेगी से मिली प्रेरणा व प्रोत्साहन तथा कविताओं के लिए किया गया इनका चित्रांकन भला कैसे भुलाया जा सकता है। गोपेश्वर में ही विभिन्न मंचों से इस संवेदनशील चित्रकार की हास्य व्यंग्य पूर्ण रचनाएँ सुनने का भी सुअवसर मिला।
नेगी जी की दृष्टि जितनी सूक्ष्म थी कला का क्षेत्र उतना ही व्यापक था। कविता पोस्टरों पर बनाए गए इनके चित्र कविताओं के अर्थ खोल देते हैं। गढ़वाली, कुमाऊँनी, नेपाली, जौनसारी तथा हिंदी कविताओं के लिए बनाए गए कविता पोस्टर इस कलाकार के चित्रशिल्प का लोहा मनवाते हैं। कविता पोस्टरों पर हाथ से लिखी गई कविताएँ एवं कविताओं के भावों को उजागर करता चित्रांकन काव्य प्रेमियों को बरबस अपनी ओर खींच लेता है। कला के उस वातायन से कविता का रसास्वादन पाठक को अद्भुत आनंद से भर देता है। प्रकृति के चितेरे कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल की कविताओं पर बनाए गए कविता पोस्टर विभिन्न प्रदर्शनियों में लोगों को विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। इनके चित्रों एवं कविता पोस्टरों की प्रदर्शनियों में जुटने वाली भीड़ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
श्री बी. मोहन नेगी के चित्रांकन का अद्भुत कौशल हमारे भीतर सोई हुई संवेदना को जगा देता है। विशिष्ट शैली में बने इनके चित्र हमारी चेतना को सजग बनाते हैं, पर्वतीय संस्कृति के अपार वैभव को दिखाते हैं। लोक माटी से जुड़े इनके चित्र जीवन को विस्तार देते हैं, एक नया आकार देते हैं। वहाँ पहाड़ का मुखरित मौन है। सूने नीड़ों का शोर है और है अपनी संस्कृति से दूर होते लोक की पीड़ा। पोस्ट आॅफिस की व्यस्ततम नौकरी के बावजूद अपनी कला के प्रति पूर्णतः समर्पित इस कलाकार के चित्रों में पहाड़ी जनजीवन सूक्ष्मता से चित्रित हुआ है। पहाड़ी स्त्री की श्रम-साधना, उसका दुख-दर्द, उसकी जीवंतता इनके चित्रों में विशेष रूप से मुखरित होती है। अपसंस्कृति पर बने इनके व्यंग्य चित्र अपना प्रभाव छोड़ने में पूर्णतः सफल हैं।
गढ़वाली के प्राचीन साहित्य के प्रति असीम लगाव और उस साहित्य को सहेज कर रखने की इनकी तीव्र ललक सराहनीय ही नहीं अनुकरणीय भी थी। पत्र पत्रिकाओं के पुराने हस्तलिखित अंक इनके घर में आज भी सुरक्षित हैं। बी. मोहन नेगी जी की सरलता एवं सहजता इनके व्यक्तित्व को असाधारण बनाती। आधुनिक जीवन शैली में घर कर गए तमाम दुर्व्यसनों से कोसों दूर नेगी जी आत्मा की उज्ज्वलता से जगमगाते तथा कला की साधना से निखरे प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। विनोदप्रियता इनके स्वभाव की प्रमुख विशेषता थी।
आज जब व्यक्ति आगे बढ़ने की होड़ में अपनी जमीन से दूर होता चला जा रहा है वहीं श्री नेगी इतनी ऊँचाइयाँ छूने के बावजूद अपनी उसी जमीन से जुड़े रहे। गोपेश्वर, गौचर तथा पौड़ी में रहते हुए वे अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्ति देते रहे। पहाड़ के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वैभव को अपनी चित्रकृतियों में बखूबी उकेरते श्री बी. मोहन नेगी की चित्रकला के इस सफर का 25 अक्टूबर, 2017 को देहरादून में अवसान हो गया। लोकमाटी से उपजे इस चित्रशिल्पी को सादर नमन!