November 21, 2024



प्यारी दीदी एलिजाबेथ व्हीलर

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अरुण कुकसाल


और, उसके बाद उन्होने जीवन में अंग्रेजी में बात नहीं की, ‘‘जीवन तो मुठ्ठी में बंद रेत की तरह है, जितना कसोगे उतना ही छूटता जायेगा। होशियारी इसी में है कि जिन्दगी की सीमायें खूब फैला दो, तभी तुम जीवन को संपूर्णता में जी सकोगे। डर कर जीना तो रोज मरना हुआ।’’एलिजाबेथ व्हीलर दीदी ने इसी जीवनदर्शन को मूल मंत्र मानकर अपना संपूर्ण जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया था। लोकहित की उनकी अदभुत भावना ने कई जिन्दगियों को संवारा। वे अविवाहित रही। परन्तु जीवन भर सैंकड़ों बच्चों का लालन-पालन उनकी नवजात अवस्था से उन्होने किया था। आज वे बच्चे समर्थ होकर सुखमय जीवन यापन कर रहे हैं।

सामाजिक सेवा कार्यों के लिए त्याग, समर्पण, स्नेह और कर्तव्य निष्ठा की जीती-जागती हमारी दीदी एलिजाबेथ व्हीलर (84 वर्ष) का काठगोदाम (नैनीताल) में 20 अक्टूबर को निधन हो गया। कुछ समय से वे बीमार थी। दीदी एलिजाबेथ व्हीलर का जन्म धन-धान्य और प्रतिष्ठा से सम्पन्न परिवार में 14 अगस्त, 1938 को अल्मोड़ा नगर से 15 किमी. दूर जलना-पौंधार स्टेट (लमगड़ा) में हुआ था। बचपन से ही कुछ नया, कठिन एवं लोकल्याणकारी कार्यों को करने की ललक ने उनको समाज सेवा के लिए प्रेरित किया। छोटी सी उमर में ही उन्होने उन निजी सुख-सुविधाओं एवं सफलताओं से अपने को अलग कर लिया, जिनके लिए लोग पूरा जीवन स्वाह कर देते हैं।


भवाली, जलना एवं पौंधार स्टेट के मालिक व्हीलर परिवार का पूरे कुमाऊं में उच्च मान-सम्मान रहा है। व्हीलर जाति विश्व में कुशल एवं जांबाज सैनिकों के रूप में विख्यात रही हैं। एलिजाबेथ दीदी के पूर्वज भी सेना के उच्च अधिकारी रहे। उनके पितामह सर ह्यू व्हीलर भारत में ब्रिटिश सेना के प्रथम गर्वनर जनरल रहे तथा दादा पैट्रिक व्हीलर भी आर्मी में जनरल के पद पर थे। पिता सर वाल्टर व्हीलर आर्मी में कर्नल थे। संयोग से सर वाल्टर व्हीलर की शादी अल्मोड़ा के खन्तोली गांव के पंत परिवार से हुआ था। सेना से अवकाश के बाद सर वाल्टर व्हीलर पौंधार (अल्मोड़ा) में रहने लगे थे।


बचपन से ही क्रिश्चियन एवं हिन्दू धर्म के आदर्श समन्वित स्वरूप में एलिजाबेथ एवं उनके बड़े भाई आर. व्हीलर का पालन-पोषण हुआ। दोनों धर्मों के रीति-रिवाजों और संस्कारों ने भाई-बहन की सोच और सामाजिक व्यवहार के दायरे को व्यापकता में विकसित किया। सर वाल्टर व्हीलर ज्योतिष विद्या में पारंगत थे, तब दूर-दराज के लोग उनके पास ज्योतिष गणना के लिए आया करते थे। एलिजाबेथ दीदी ने एडम्स स्कूल, अल्मोड़ा से हाईस्कूल (सन् 1958), लालबाग, लखनऊ से इण्टरमीडिएट (सन् 1960), आईटी. कालेज, लखनऊ से बीए (सन् 1960) और एमए अंग्रेजी (सन् 1964) की शिक्षा प्राप्त की थी। खेल एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे अव्वल थी। हारना उनकी फितरत में नहीं था। डर और संकोच से वह काफी दूर थी। पौंधार से अल्मोड़ा आने-जाने के लिए 15 किमी. का घने जंगल एवं विकट उतराई-चढ़ाई के रास्ते को वह अक्सर अकेले दौड़ कर तय करती थी। जंगली जानवरों से हुयी मुठभेड़ को वह सामान्य घटना मानती थी।

एलिजाबेथ दीदी के व्यक्तित्व का एक प्रमुख गुण यह भी रहा कि वे कठोर अनुशासन प्रिय थी। जो तय कर लिया उसे पूरे मनोयोग से पूरा करके ही छोड़ती थी। पढ़ाई के बाद सामाजिक सेवा कार्यों की तरफ उन्मुख हुई तो किसी स्थानीय व्यक्ति ने व्यंग में एलिजाबेथ से सीधे कह दिया कि ‘अंग्रेज जाति और अंग्रेजी बोलने वाली, आप हमारा भला क्यों करेंगी?’ तब एलिजाबेथ ने उससे कहा कि ‘मैं अंग्रेज जाति की हूं, उसको तो मैं चाह कर भी नहीं बदल सकती पर आज से मैं कभी भी अंग्रेजी में नहीं बोलूंगी।” और, अंग्रेजी में न बोलने के इस प्रण का उन्होने जीवन-भर पालन किया। इसी जिद्द पर उन्होने एमए हिन्दी की डिग्री हासिल की।


एलिजाबेथ दीदी ने पढ़ाई के दौरान ही ग्रामीण महिलाओं की भलाई के लिए कार्य करना शुरू कर दिया था। वे प्रयास करती कि महिलायें जीवन में शारीरिक एवं मानसिक तौर पर सर्मथवान हों। उसके लिए वह गांव की लड़कियों को शिक्षा, खेल, स्वास्थ्य तथा अपनी रक्षा के लिए राइफल्स चलाना सीखने के लिए उत्साहित करती। इसी को अमल में लाने के लिए उन्होने एसएसबी में 25 वर्ष तक स्वैच्छिक रूप में बिना वेतन के स्वयंसेवी सीओ के पद पर अपनी सेवायें प्रदान की थी। इस दौरान उन्होने हजारों महिलाओं को न केवल राइफल चलाना सिखाया वरन् उनके दुःख-दर्दों में अग्रज की भूमिका में भी वे सक्रिय रही थी।

अपनी युवा अवस्था में एलिजाबेथ व्हीलर के जीवन में अप्रत्याशित रूप में वह दिन भी आया जब एक अज्ञात नवजात शिशु को वे अपने घर ले आयी थी। घर-परिवार वालों ने उन्हें बहुत समझाया कि अनजान और पराये बच्चे को पालना बहुत कठिन है। परन्तु परिवार के बड़े-बुजुर्गों की इन दलीलों का व्हीलर दीदी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। और, उन्होने तब एक क्षण भी नहीं गवांया और प्रण किया कि वह शादी नहीं करेंगी तथा समाज में बेसहारा बच्चों का जीवन-भर का सहारा बनेगीं। उनके इस दृड-संकल्प को परिवार की अतंतः स्वीकृति मिल ही गयी। तब से एक के बाद एक अनेक बच्चे उनके आंचल में सुख-चैन की छांव पाते गए। वह सैकड़ों बच्चों की ईजा, मौसी, दीदी, फूफू, दादी और नानी थी।




वाल्टर व्हीलर सेवा समिति, पौंधार (सन् 1982) के माध्यम से उन्होने अपने कार्यों को संगठित स्वरूप प्रदान किया। होम स्टे तथा डे-केयर सैंटर संचालित करने के उनके प्रयास कारगर सिद्ध हुए। जरूरतमंद महिलाओं एवं बच्चों को सुरक्षा, न्याय तथा आर्थिक संबल देकर वे जीने का मजबूत आधार प्रदान करती थी। गांवों में होने वाले विवादों के सरल समाधान, गरीबों को कानूनी सहायता और जानकारी के लिए ‘परिवार परामर्श केन्द्रों’ का उन्होने सफलतापूर्वक संचालन किया था। स्वःरोजगारपरक कार्यक्रमों के माध्यम से उन्होने सैकड़ों स्थानीय युवाओं को स्वः उद्यम प्रेरित किया था। उन्हीं के मजबूत प्रयासों से ‘पौंधार दुग्ध सहकारी समिति’ का गठन कर स्थानीय दुग्ध व्यवसाय को नया संगठित आयाम प्रदान किया गया था।

उत्तराखंड के वन, शराब और पृथक राज्य आन्दोलन में वे सक्रिय रहीं थी। पौंधार में उनका घर सामाजिक और आर्थिक चेतना और प्रशिक्षण का प्रमुख केंद्र था। बेसहारा महिलाओं और बच्चों की तो अभिभावक थी। व्हीलर दीदी सामाजिक कार्यकर्ताओं को समझाती कि ‘‘सबसे पहले बेसहारा हुए महिला एवं बच्चे के मन-मस्तिष्क में असुरक्षा, डर और हीन भावना से उनको आजाद करने का प्रयास करना चाहिए। ‘जीना है तो डरना कैसा।’ सब ठीक हो जायेगा की प्रेरणा हमेशा असहाय हुए लोगों को देनी चाहिए। इससे उनका स्वतः ही शारीरिक एवं बौद्धिक विकास होने लगेगा। इस नेक काम में हम तो मात्र एक माध्यम बनते हैं। प्रयास तो वे खुद ही करते हैं।’’

धन-दौलत, पद, प्रतिष्ठा, राजनीति, सम्मान और पुरस्कार की लालसा से दूर वह ‘एकला चलो’ की रीति और नीति पर अपने जीवन कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए इस दुनिया से चुपचाप विदा हो गई। नमन दीदी नमन। आपका स्नेह मिलना हमारी पीढ़ी की एक अमूल्य निधि है जो तुम्हारी याद तरह हमेशा हमारे पास ही रहेगी।