मां सुरकंडा की कुंडी और कौंरदेई
सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’
यूं तो मां सती के पावन स्थल सुर कुट पर्व (सुरकंडा) के बारे में शायद ही कोई अनभिज्ञ हो । इस पर्वत शिखर का ऐतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसके चतुष्पदों से निकलने वाली सदानीरा नदियां अपने अमृत रूपी जल से अवस्थित घाटियों तथा संपूर्ण देहरादून शहर की जलापूर्ति करती हैं। सुरकंडा शिखर से निकलने वाली नदियों में सबसे बड़ी नदी सौंग है। रायपुर नहर के द्वारा देहरादून शहर के एक बहुत बड़े क्षेत्र में इस नदी से जल आपूर्ति की जाती है।
टिहरी गढ़वाल में 10000 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित सुरकंडा शिखर केवल श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इसका एक बहुत बड़ा भौगोलिक महत्व भी है। मंदिर के ठीक 100 मीटर के नीचे मां भगवती की कुंडी है। मेरा मानना है कि यही कुंडी सौंग नदी का उद्गम स्थल है। इसी से निसृत हुए पानी से कालावन -तेगना तथा उनियालगांव- हवेली से आने वाली दो विपरीत जलधाराएं मंजगांव (वीर नगर) के पास मिलती है। जिसका कि पुराना नाम जोड़ा गाड़ (दो गदेरों का संगम) है। वहां पावन संगम के रूप में यह नया रूप लेती है। वीरनगर से आगे यह गाड़ सौंग नदी बन जाती है।
सुरकंडा पर्वत पर बनी हुई मां की कुंडी बहुत पावन और पवित्र जल की स्थाई धारा है। इस कुंडी का पानी कभी सूखता नहीं है और यह भी मां का चमत्कार है कि शिखर पर पानी का स्रोत कैसे फूटा ! मां सुरकंडा की का पानी गंगा जल के समान है और जिसके पानी में कभी कीड़े नहीं पड़ते हैं। जड़ धार गांव के, जो कि मां सुरकंडा के मायके वाले हैं, वरिष्ठ पत्रकार श्री रघु भाई जरदारी ने एक बार सुरकंडा की कुंडी का पानी घर ले जाकर के कई वर्षों तक रखा। बाद में लैबोरेट्री में उसका टेस्ट कराया गया तो बरसों बाद भी या पानी उतना ही निर्मल था। हमारे सकलाना क्षेत्र में ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रों की मां बहनें जब सुरकंडा मंदिर में आती हैं, तो पवित्र कुंड का पानी भरकर शीशियों में ले आकर अपने पूजा गृह में रखती हैं और यह गंगा जल का कार्य करता है। किसी भी अनुष्ठान में प्रयुक्त होता है।
जानते हैं कि इस पानी की कुंडी का निर्माण, संरक्षण किसने किया था- संवत 2009 जो कि चित्र पर भी अंकित है, कलावन- तेगना की नंबरदारन स्व. श्रीमती कौर देई पत्नी स्वर्गीय धर्म सिंह भंडारी ने इसका निर्माण करवाया। आज से 67 साल पहले यह कुंडी निर्मित हुई थी और आज भी बरकरार है। नंबरदारन स्व कौंर देई एक बहुत ही परोपकारी और धार्मिक महिला थी। अपने समय मे वह बहुत ही समृद्ध शाली परिवार की मालकिन थी। भंडारी नंबरदार या सयाणा भी थे। आजादी से पूर्व जब सकलाना में सकलानी मुआफिदारों की जागीर थी तो वह समय हिमाचल प्रदेश से जोगिंदर नगर, भराड़ू गांव से श्री धर्म सिंह भंडारी सकलाना (टिहरी) आए थे। वह चौलाई और आलू की फसल लगाना और खेती बाड़ी के ज्ञाता थे। साथ ही कोयले के भट्ठे भी लगाना वह जानते थे। इसलिए उन्होंने सुरकंडा मंजगांव की तरफ पड़ने वाला सुरकंडा के नीचे वाला क्षेत्र सुरकार्द तक खेती के लिए मांगा। श्री धर्म सिंह भंडारी अपने साथ अनेक लोगों को जोगिंदर नगर हिमाचल प्रदेश से लाए और घोर जंगल जैसे कि नाम से भी क्षेत्र कालावन के नाम से जाना जाता था, अपनी मेहनत के बल पर इस क्षेत्र समृद्धशाली बनाया और सुरकंडा से लेकर के सुरकार्द (मंजगांव) तक का क्षेत्र, सिंदूरी आलू, सब्जी उत्पादन, चौलाई और दालों के लिए मशहूर हो गया।
आजादी से कुछ वर्ष पूर्व जब सकलाना के मुआफीदार गजेंद्र दत्त सकलानी और सीनियर मुआफीदार -राजीव नयन सकलानी ने प्रजामंडल के सम्मुख सरेंडर कर लिया और आजाद सकलाना की घोषणा की, तो उस समय मुआफिदारन जी ने स्व. धर्म सिंह भंडारी के नाम सनद लिख दी और वह इस भू- क्षेत्र के मौरूसी हकदार बन गए। कालावन के अधिकांश लोग उस समय काश्तकार/खायकर सीरतान के रूप में थे। बाद में सेटलमेंट के समय उनको आजादी के बाद भूमि का मौरूसी हक मिल गया। कुंडी के निर्माण करने वाली परोपकारी महिला स्व. कौंर देई, जौनपुर प्रखंड के मथलेऊ गांव की थी। यह गांव उनका मायका था। नंबरदारन होने के कारण सफेद घोड़े पर बैठकर वह (जौनपुर) मथलेऊ से कालावन (सकलाना) आती जाती थी, ऐसा जानकार बताते हैं। इस परोपकारी महिला के पास अपनी मेहनत का अच्छा संपत्ति का भंडार भी था जो कि उन्होंने अनेक परोपकारी कार्यों में भी लगाया। सुरकंडा की कुण्डी इसका एक सबूत है।साठ के दशक से पर्यटन विकास के कारण तथा क्षेत्रीय लोगों के जीवन स्तर में सुधार के कारण सुरकंडा शिखर तथा सुरकंडा मां सती के मंदिर का महत्व भी बढा और आज लाखों लोग यहां तीर्थाटन/पर्यटन के लिए आते हैं ।
पानी की समस्या के निदान के लिए कद्दूखाल स्थल से घोड़ा-खच्चरों से पानी ऊपर पहुंचाया जाता है ।लेकिन यह समस्या कुछ समय बाद हल हो जाएगी क्योंकि सकलाना मैं सुरकंडा पंपिंग योजना का कार्य भी अंतिम चरण में है । मई सन 2012 में मैंने अपने आलेख में “पानी के लिए कब तक तरसेगा सुरकंडा ?” में बहुत पहले इस बात का जिक्र भी किया था। मां भगवती ने मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थना सुनी और पानी आने के कारण संपूर्ण उच्चस्थ भाग की आबादी को भी लाभ मिलेगा। लेकिन यह जो मां की पौराणिक कुंडी है इसके संरक्षण करने के लिए आज भी जरूरत है। मैं अपने क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों से भी निवेदन करना चाहूंगा कि इस कुंडी का निर्माण करने वाली महान महिला कौर देई, पत्नी स्व धर्म सिंह भंडारी द्वारा किया गया था उनके नाम से कालावन- तेगना में अवश्य कोई द्वार, स्मारक या विद्यालय का नाम या कोई अस्पताल होना चाहिए ताकि उस महान महिला को आने वाली पीढ़ी अभी याद कर सकें।