प्रीतम भरतवाण जागर ढोल सागर इंटरनेशनल एकेडमी
दिनेश शास्त्री
कान थक गए थे, तब से जब से उत्तराखण्ड ढोल संस्थान की स्थापना की बात सुन रहे थे। संस्कृति संरक्षण की बात पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री पंडित नारायण दत्त तिवारी के जमाने से सुनते आ रहे हैं। 2007 में बी सी खण्डूड़ी सीएम बने तो बाकायदा एक ढोल संस्थान की घोषणा हुई, आगे के दौर में भी यह ढोल पीटा जाता रहा। और तो औऱ उत्तराखण्डियत का बाजा करीब पिछले सात साल से गाहे बगाहे बजा रहे एक नेता को शर्म तक नहीं आई कि वे अपने कार्यकाल में ही ढोल संस्थान की अधूरी घोषणा को पूरी कर सकते थे। किसी ने उनके हाथ नहीं रोके थे। आज फिर उन्हें उत्तराखण्डियत का रोना रोते देखा जा सकता है लेकिन सच तो यह है कि उन्होंने कभी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया बल्कि लोगों को बहलाने के लिए उत्तराखण्डियत की बात उछालते रहे और आज फिर उछाल रहे हैं।
आप जरा अपनी स्मृति पर जोर डालें, जरूर आपने एक दौर में सुना होगा कि गैरसैंण अथवा गौचर में ढोल संस्थान खुलेगा। मकसद यह कि ढोल बचेगा तो ढोली भी पैदा होंगे और तभी उत्तराखण्ड की संस्कृति भी बचेगी। संस्कृतिकर्मी गजेंद्र नौटियाल के इस कथन से असहमति का कोई आधार नहीं है कि ढोली रहेगा तो राज्य की संस्कृति भी बचेगी। इस बात को किसी भी तरह से व्यक्त किया जा सकता है लेकिन बात जुबानी जमा खर्च से ज्यादा कभी नहीं रही।
सवाल अभी भी वहीं खड़ा है कि आखिर सरकार की घोषणा को किसने रोका और आज तक तमाम नेताओं की घोषणा धरातल पर क्यों नहीं उतरी। चलो सरकारी घोषणा धरातल पर नहीं उतरी लेकिन जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने आज एक बड़ी लकीर खींच कर न सिर्फ सिस्टम को आईना दिखा दिया, बल्कि सरकारी घोषणाओं को भी बौना बना दिया है। निसन्देह प्रीतम का प्रयास व्यावसायिक हो लेकिन इतना तो तय है कि सरकारें केवल लॉलीपॉप देती रही और प्रीतम ने वह सब कर दिखाया जो उत्तराखण्डियत का राग अलापते रहे हैं। इस मामले में किसी भी नेता को बरी नहीं किया जा सकता। आपने घोषणा की लेकिन उसे पूरा नहीं किया तो सवाल पूछा ही जायेगा।
बहरहाल रविवार 17 अकटुबर को प्रीतम भरतवाण जागर ढोल सागर इंटरनेशनल एकेडमी को सीएम पुष्कर सिंह धामी ने विधिवत उदघाटन कर दिया। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर अकादमी को 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने की भी घोषणा की, ताकि इस अकादमी के माध्यम से उत्तराखण्ड की संस्कृति को संरक्षित करने हेतु प्रयास में सफल हो सकें। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर लोक कलाकारों को सम्मानित भी किया। मुख्यमंत्री ने कहा की लोक संस्कृति हमारी पहचान है, हमें नहीं भूलना चाहिए की हमारी जड़े कहाँ हैं। जड़ कट जाए तो हरा भरा पेड़ भी धीरे धीरे सूख जाता है। जड़ सुरक्षित रहेगी तो पेड़ भी सुरक्षित रहेगा, इसी तरह हमारी संस्कृति सुरक्षित रहेगी तो हम भी सुरक्षित रहेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि अपनी संस्कृति को संरक्षित रखने हेतु हम सबको अपने अपने स्तर से प्रयास करना होगा। इस क्षेत्र में पद्मश्री प्रीतम भरतवाण का यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है।
कहना न होगा कि धामी के कथन से राज्य के नेताओं की भावना तो दृष्टिगत होती है लेकिन उसमें सरकारी तंत्र की उदासीनता भी सामने आती है। आप जानते होंगे कि किसी भी मुख्यमंत्री की घोषणा अपने आप में शासनादेश माना जाता है। जाहिर है उस घोषणा का क्रियान्वयन करना अफसरों की जिम्मेदारी है लेकिन यहां इसी आयोजन से जुड़े एक व्यक्तित्व की टिप्पणी का उल्लेख करना चाहूंगा, वह यह कि किसी अन्य संदर्भ में उनकी टिप्पणी थी ‘आईएएस’ यानी आई एम सेफ। बात बहुत काफी सटीक लगती है। में यहां जान बूझ कर उस व्यक्तित्व के नाम का खुलासा नहीं करना चाहता कि कल उनके लिए यह दिक्कत कर सकता है लेकिन टिप्पणी अपने आप में न सिर्फ रोचक है, बल्कि सचमुच सत्य का रेखांकन भी करती है। यह बात इसलिए भी प्रासंगिक है कि आईएएस ने इस उत्तराखण्ड की अभिलाषाओं को कुचला है। वरना क्या वजह है कि किसी सीएम की घोषणा पर कुंडली मार कर नौकरशाही बैठ जाए। आज तक हुआ तो यही है। ऐसे में अगर खुद प्रीतम ने पहल कर ढोल सागर एकेडमी स्थापित की है तो उन्हें शुभकामना देने का वक्त है। सरकार को कोसने से कुछ होने वाला नहीं है। प्रीतम इस संदर्भ में बधाई के पात्र हैं कि जो काम सरकार नहीं कर पाई, वह उन्होंने कर दिया है और एक साफ संदेश दिया है कि उत्तराखण्ड की संस्कृति को बचाने के लिए वे खड़े हैं। यह एक सुखद संकेत है कि उनके संस्थान के उदघाटन के मौके पर ही 623 लोगों ने जागर ढोल सागर, पँवाड़े, भगनोल, वीर गाथा और तमाम विधाओं में प्रशिक्षण के लिए आवेदन किया है। यह एक ऐसी सुबह की उम्मीद जगती है कि आने वाला कल बेहद सुखद होगा। फिर उसी बात की पुष्टि होती है कि ढोली बचेगा तो उत्तराखण्ड की संस्कृति भी बचेगी और उत्तराखण्ड भी बचेगा। एक बार फिर प्रीतम भरतवाण को उनके सत्कर्म के लिए शुभकामनाएं तो बनती ही हैं।