सकलाना के अंतिम मुआफीदार राजीव नयन सकलानी
सोमवारी लाल सकलानी ‘ निशांत’
सकलाना मुआफीदारी का अंत हो जाने के बाद, तत्कालीन सीनियर मुआफीदार श्री राजीव नयन सकलानी जी ने सुरकंडा माता मंदिर (कद्दूखाल) के समीप रेंणीधार के निर्जन स्थान पर अपना निवास स्थान बनाया।
देश की आजादी के साथ ही सकलाना में मुआफीदारों ने प्रजामंडल के सम्मुख सरेंडर कर दिया था और सत्ता की बागडोर छोड़ दी। सीनियर और जूनियर मुआफीदार क्रमशः श्री राजीव नयन सकलानी और गजेंद्र दत्त सकलानी ने विधिवत आदेश जारी कर सत्ता को छोड़ दिया। तदोपरांत 13 सितंबर 1947 को टिहरी नरेश की फौज – पुलिस ने सकलाना का दमन चक्र शुरू कर दिया। फिर भी क्रांति भूमि सकलाना में राजा की एक नहीं चली। सीनियर मुआफीदार श्री राजीव नयन सकलानी, जो नाते के मेरे ताऊ थे, एक सहृदय और प्रकृति प्रेमी व्यक्ति थे। उन्होंने कालावन क्षेत्र के अंतर्गत रेंणीधार में अपना निवास स्थान बनाया। तत्कालीन विकट परिस्थितियों में उन्होंने वहां मार्ग बनवाकर जीप रोड का निर्माण कराया और रस्सों के द्वारा खींच कर बमुश्किल अपने इस निवास स्थान तक टैक्सी पहुंचाई। यद्यपि आजादी के आज तक चंबा- मसूरी मोटर मार्ग से यह स्थान सड़क से दूर है।
राजा -महाराजा, सामंत- जागीरदार इनके शौक भी निराले होते हैं। देहरादून- मसूरी आदि स्थानों के बजाय इस निर्जन कानून में रहना ताऊ जी श्री राजीव नयन सकलानी ने रहना पसंद किया और “कमला भवन” नाम का एक छोटा सा महलनुमा घर यहां पर बनाया। 1600 वर्ग मीटर क्षेत्र में उनका या घर बना जो कि तत्कालीन वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। सुराही और मोरपंखी के शोभादार वृक्ष वहां लगाए गए। पानी के लिए एक बहुत बड़ा टैंक बनाया गया। विलायती खरगोश और चूहे पाले गये। सभी सुविधाएं वहां पर मुहैया कराई गई।
ताई जी सीनियर कैंब्रिज की पढ़ी-लिखी विदुषी महिला थी। त्रिवेदी परिवार से संबंधित थी। मूल रूप से शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) के सामंत परिवार की महिला थी। बाद में उनके मायके वाले लखनऊ के हुसैनगंज में रहने लगे। जहां वे आज भी हैं। जीवन के चार दशक से भी अधिक समय, सीनियर मुआफीदार श्री राजीव नयन सकलानी ने सपरिवार रेंणीधार नामक स्थान पर गुजारा।
64 गांव की जागीर का मुआफीदार (संपूर्ण सकलाना क्षेत्र, दिऊरी – सुधाड़ा क्षेत्र, अठूर सोनादेवी से पडियार गांव तक का क्षेत्र, खास पट्टी के छ गांव, देहरादून का बाजावाला क्षेत्र आदि) ने इस निर्जन स्थान में अपने जीवन के चार दशक तक इस स्थान को स्थाई निवास स्थान बना कर रखा, किसी किवदंती से कम नहीं है। आज भी उनका मंझला पुत्र शैलेंद्र सकलानी और उनका परिवार यहीं पर निवास करता है। बगल से उनका एक विस्तृत फार्म है। जहां पर आज भी अच्छी खेती – बाड़ी, बाग- बगीचा, अनेक प्रकार की जड़ी – बूटियां, उनके परिवार जनों के द्वारा उत्पन्न की जाती हैं।
ताऊ जी ने अजीबोगरीब शौक थे। कभी मशरूम प्लांट वहां पर लगाया, तो कभी अनेक वैज्ञानिक आविष्कार गतिमान रहे। ताऊ जी एक अजातशत्रु के रूप में भी जाने जाते हैं। आज भी क्षेत्र में नाम उनका बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। बाद के दिनों ताऊ जी और ताई जी अपने छोटे पुत्र और पुत्रवधू के साथ श्रीपुर चले गए और वहीं पर दोनों ने अंतिम सांस ली।उनके बड़े पुत्र और सबसे छोटे पुत्र और पुत्रवधू आज भी श्रीपुर में निवास करते हैं।
ताऊ जी के घर के ठीक सामने मेरी छान है और बाल्यकाल से ही उनके साथ संपर्क रहा। वंश-बिरादरी और पढ़ा – लिखा होने के कारण वह मेरा अत्यंत आदर भी करते थे और प्रत्येक छोटे-बड़े अनुष्ठानों में अपने घर आमंत्रित करते रहते थे। बीच में कुछ समय होने आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा लेकिन बाद के दिनों में फिर खुशाहाली लौट आई। ताऊ जी के घर के सम्मुख झंडा फहराने के लिए आज भी चबूतरा बरकरार है। घर के शीर्ष पर ओम् का अक्षर अंकित है। उनके पानी के टैंक आदि जीर्ण – शीर्ण अवस्था में आज भी मौजूद हैं। उनके इस घर और भवन को देखकर किताबों में जैसे पढा, राजा – महाराजाओं के महलों के ध्वन्सावशेष मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं। ताऊ जी सभी सुखों को भोगते हुए उनसे मुक्त थे। एक प्रकार से वह विदेह थे।
मुआफीदारी के अंतिम क्षणों तक वह गद्दी पर बैठने वाले अंतिम सीनियर मुआफीदार थे। यद्यपि बहुत कम समय ही वह मुआफीदार के रूप में कार्यरत रहे। आजादी के बाद सीनियर और जूनियर मुआफीदारों को मुआवजे के रूप मे अकूत धनराशि नगद प्राप्त हुई और लंबे समय तक प्रिवीपर्स भी मिलता रहा। बड़े पुत्र श्री त्रिलोक सकलानी श्रीपुर में रहते हैं, जो विम्बर एंड एलन स्कूल मसूरी के पढे हैं और लंबे समय तक आईडीपीएल में सेवाएं दी। वे आजीवन कुंवारे रहे हैं और सबसे छोटे भाई- बहू के साथ निवास करते हैं। ताऊ जी की छोटी बहू श्रीमती लक्ष्मी सकलानी क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य रह चुकी हैं। उनका देवदार का सघन जंगल जो कद्दूखाल के समीप है तथा 129 नाली क्षेत्र में फैला हुआ है। आज भी उनकी स्मृति – शेष है। भले ही यह जंगल आज सरकार के स्वामित्व में आ गया है।
सीनियर मुआफीदार श्री राजीव नयन सकलानी (ताऊ जी) दशकों तक मेरे वैचारिक मित्र रहे। वे जुबान के पक्के बहुत ही सरल आदमी थे और चरित्रवान व्यक्ति थे। बीड़ी- सिगरेट, शराब आदि से काफी दूर रहते थे। यद्दपि क्षेत्र में नशे का तब काफी प्रचलन था। अनेकों बार उनके साथ मसूरी – देहरादून जाना आना हुआ। कई बार उनके साथ बैठकों में शिरकत की। अनेक सभा गोष्ठियों में उनके साथ में रहा। यद्यपि वह तब उम्र दराज व्यक्ति थे और मैं विद्यालय का छात्र था।