उत्तराखण्ड विधानसभा चुनावों का बाज़ार सजा
रमेश पाण्डेय ‘कृषक’
“उत्तराखण्ड में विधान सभा चुनाव के बमुश्किल पांच महीने बचे हैं। तिकड़मों की राजनीति के इस दौर में राजनैतिक तिकड़मों का बाजार दूर दराज गांवों तक सज चुका है। सजे धजे इस बाजार में फरवरी 2022 तक खूब चहलपहल रहेगी मार्च पहले पक्ष में चुनाव परिणाम सामने आने के बाद यह चहल पहल अप्रैल से लगने वाले वित्तीय वर्ष के बजट के हो हल्ले में कहीं सिमट जायेगी।
2022 में किस पार्टी की और पार्टी में किस नेता की सरकार उत्तराखण्ड बनेगी अभी कुछ नही कहा जा सकता है। आज की तारीख में दोनो राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। काफी पीछे ही सही पर क्षेत्रीय दल के रूप में आम आदमी पार्टी दौड़ में मौजूद है। उत्तराखण्ड का सर्वमान्य क्षेत्रीय दल उत्तराखण्ड क्रान्ति दल सरकार बनाने के लिये तो नही पर अपना चुनाव निसान बचाने के लिये इस दौड़ में सामिल है। यहां हाल फिलहाल बागेश्वर जनपद की दोनो सीटों की स्थितियों परिस्थितियों और दावों को समेट कर उकेरने का प्रयास हिमालय के स्वर कर रहा है”।
बागेश्वर जनपद में विधान सभा की दो सीटें कपकोट और बागेश्वर हैं। बागेश्वर सीट पिछले 55 सालों से आरक्षित चली आ रही है। कपकोट सीट राज्य बनने के बाद अस्तित्व में आई थी। यहां यह भी दोहरा दिया जाए कि राज्य के दूसरे चुनावों २००७ में बागेश्वर जनपद में काण्डा नाम से तीसरी सीट भी बनी थी जो तीसरे चुनाव में भी अस्तित्व में रही। परिसीमन के बाद यह सीट समाप्त कर दी गई। वर्तमान में बागेश्वर जनपद में बागेश्वर और कपकोट नाम से दो ही सीटें अस्तित्व में है। इन दो सीटों में बागेश्वर आरक्षित है और कपकोट अनारक्षित है।
राज्य बनने के बाद अस्तित्व में आई कपकोट विधान सभा सीट पर भाजपा और संघ के बड़े चेहरे के रूप में स्थापित श्री भगत सिंह कोश्यारी पहले दो चुनावों 2002, 2007 में कांग्रेस को बड़े मतान्तरों से हरा कर विधानसभा पहुंचते रहे। दूसरी पारी के मध्य में श्री कोश्यारी को भाजपा ने राज्य सभा में भेजा तो इस सीट पर मध्यावधि चुनाव हुए। मध्यावधि चुनाव में भजपा ने अपने युवा नेता सेर सिंह गड़िया को मैदान में उतारा। श्री गड़िया खरे साबित हुए और चुनाव जीत गए। 2012 में तीसरी विधान सभा के लिये भाजपा ने सेर सिंह गड़िया की प्रबल दावेदारी के रहते हुए श्री बलवन्त सिंह भौर्याल को मैदान में उतारा। श्री भौर्याल पूर्व में काण्डा सीट से विधायक रहे थे तथा निशंक की सरकार में स्वास्थ्य राज्य मन्त्री का पद भी सम्हाल चुके थे।
कांग्रेस ने श्री भौर्याल के खिलाफ श्री ललित फर्सवाण को मैंदान में उतारा। भाजपा इस भ्रम में रही कि श्री फर्सवाण का बाहरी प्रत्यासी होना भाजपा के पक्ष में चला जायेगा पर गड़िया फैक्टर श्री फर्सवाण के पक्ष में आ गया और श्री फर्सवाण सम्मान जनक अन्तर से जीत कर विधान सभा पहुंच गए। कपकोट विधान सभा के लिये 2017 में मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच था। इस चुनाव में भाजपा के बलवन्त सिंह भौर्याल ने कांग्रेस प्रत्यासी श्री ललित फर्सवाण को बड़े अन्तर से हरा कर कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
2022 के विधान सभा चुनावों के लिये भाजपा, कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी अपने अपने लिये चुनाव मैदान सजाने में जुटी हैं। भाजपा अभी सरकार में है और इस दल के पास अपना मजबूत संगठन है। भाजपा संगठन के अलावा आर एस एस, विश्वहिन्दू परिषद, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और जगह जगह रामलीला कमेटियां भाजपा की बड़ी संगठनात्मक ताकतें हैं।
कांग्रेस पार्टी का भी न्याय पंचायत स्तर पा संगठन फैला हुआ है। हाल में गान्धी जयन्ती पर कांग्रेस ने अपने संगठन को न्याय पंचायत स्तर पर सकृय भी किया ही है। कांग्रेस भाजपा से संख्या का मुकाबला भले ही ना कर सके पर कांग्रेस संगठन भी मुहल्लों तक फैला हुआ है। भले ही पिछले चुनाव में कांग्रेस को भाजपा ने बुरी तरह से हरा दिया था पर कांग्रेस के कार्यकर्ता गांव मुहल्लों में भजपा को मजबूती से टक्कर दे ही रहे थे।
आम आदमी पार्टी यदि 2017 के चुनावों से ना भागती तो तब की टीम के कार्यकर्ताओं के बूते पर जीत कर आये आप के एक दो विधायक अभी सदन में होते ही और आम आदमी पार्टी को अमीर लोगों का हाथ पकड़ कर राज्य में घुसने की नौबत ही नहीं आती। विपरीत इस नौबत के आप इस बार अभी से त्रिकोंणीय संघर्ष में होती। फिलहाल आप का उत्तराखण्ड में 2022 में पहला चुनाव होगा।
आम आदमी पार्टी की एक विशेषता यह रही है कि आप ने जनपद स्तर पर संगठनों को कभी खड़ा होने ही नही दिया। कुछ ही दिन पहले तक आप का उत्तराखण्ड में एक अध्यक्ष और छह उपाध्यक्ष थे। जिलों में भी कुछ लोग थे जो संगठन बनाने की जुगुतें कर ही रहे थे। आज की तरारीख में आप के तीन कार्यकारी अध्यक्ष और चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ही आप का मुख्य संगठन है। इन अध्यक्षों ने अभी तक तो गांवों के संगठन नही बनाये हैं। जब गांव के ही संगठन नहीं हैं तो ब्लाक, तहहसील, नगर और जिलों के संगठन होने का तो मतलब ही नहीं है बनता है। आप की तरफ से अभी जिस रणनीति का आभाष हो रहा है उस रणनीति में आप मुद्दों के चुनाव मैदान में भाजपा कांग्रेस को उतारने की ही रणनीति बनाती दिख रही है।
उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के पास उत्तराखण्ड राज्य के संघर्ष को जन्म देकर मुकाम तक पहुंचाने का गर्व भी है और अन्तिम आदमी तक इस संगठन का नाम भी पहुंचा हुआ है। इस उपलब्धि के बावजूद उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के पास ना तो मजबूत संगठन है और ना ही कोई क्षेत्रीय आन्दोलन ही है। राज्य बनने के बाद से अब तक उत्तराखण्ड क्रान्ति दल क्षेत्रीय मुद्दों से दूरी बना कर ही रहा। यहां के मूल निवासियों को स्थाई निवासी बनाने का कानून बनाने, जनता के ना कहने के बाद भी राजस्व क्षेत्रों को नियमित पुलिस क्षेत्र बनाए जाने, राज्य का अपना भूमि काननून ना होने, पूंजी पतियों के पक्ष में भूमि कानून के साथ संवैधानिक छेड़छाड़ किया जाना, वन पंचायत का एक्ट ना बनाया जाना, घटती कृषि जोत, रोजगार के लिये पहाड़ को डोड़ रही नौजवानी, बड़ी बड़ी कम्पनियों को बेची जा रहीं नदियां , शिक्षा, चिकित्सा के लिये हो रहा पलायन ऐसे क्षेत्रीय मुद्दे थे जिन मुद्दों के सहारे उत्तराखण्ड क्रान्ति दल उत्तराखण्ड को पहले चुनाव के बाद ही भाजपा कांग्रेस से मुक्त करवा चुका होता। अभी यदि आम आदमी पार्टी क्षेत्रीय दल के रूप में कदम जमाती है तो तो यह जमावट उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के लिये बड़ा खतरा भी साबित हो सकती है।
आज के कपकोट की राजनैतिक स्थिति
कपकोट के वर्तमान विधायक श्री बलवन्त सिंह भौर्याल हैं जो कपकोट विधान सभा की पुंगरघाटी से हैं। यह घाटी दो पट्टियों दुग व नाकुरी से मिलकर बनती है। श्री भौर्याल की व्यवसाइक सुरूआत छोटी सी परचून की दुकान के साथ दर्जी के काम से जुड़ी थी। तब नाकुरी क्षेत्र में एन एस कारपोरेशन और कटियार माइन्स नाम की दो सोप स्टोन खदाने सरकार द्वारा स्वीकृत की गई थी। तब नाकुरी के दो नौजवान श्री ठाकुर सिंह और श्री बलवन्त सिंह भी खड़िया की खदानों की स्वकृति ले कर आये। खड़िया खदान में हाथ डालने के कुछ समय बाद श्री भौर्याल ने भरतीय जनता पार्टी का हाथ पकड़ लिया। भाजपा में रहते हुए सबसे पहला चुनाव जिला पंचायत का लड़े और जीते।
बागेश्वर जिला बनने के बाद बागेश्वर के हिस्से में आई जिला पंचायत सीटों के सदन में श्री भौर्याल बागेश्वर जिला पंचायत के पहले अध्यक्ष भी बने। यही वह दौर भी था जब श्री भौर्याल ने भाजपा की संगठनात्मक राजनीति में पदार्पण किया और पार्टी में अपनी जड़ें मजबूत क़िले के रुप में फैलाई। काण्डा विधान सभा के अस्तित्व में आने के बाद श्री भौर्याल काण्डा से भाजपा प्रत्यासी बनाये गये और कांग्रेस के श्री माजिला से हार गए। पांच साल बाद श्री भौर्याल श्री माजिला को हरा कर विधान सभा पहुंचे और स्वास्थ्य राज्य मन्त्री की महत्वपूर्ण जुम्मेदारी भी कुशलता से निभाई। श्री भौर्याल 2022 के चुनाव के लिये भाजपा के मजबूत दावेदार हैं।
श्री भौयाल की मजबूत दावेदारी का यह मतलब नहीं है कि उनके खिलाफ दावेदारी ही नही है। भजपा में कपकोट से भाजपा का टिकट चाहने वालों की लम्बी कतार है। इस कतार में श्री सेर सिंह गड़िया, श्री सुरेश गड़िया, श्री पूरन सिंह गड़िया, श्री विक्रम साही, श्री गोविन्द दानू के नाम अपने अपने तरीकों से सार्वजनिक हो ही रहे हैं। श्री सुरेश गड़िया को लगता है कि श्री भगत सिंह कोश्यारी की कृपा दृष्टि बन जाये तो उनका विधाइकी का टिकिट पक्का हो सकता है। श्री सुरेश को टिकिट मिलने की उम्मीद की एक वजह यह भी हो सकती है कि भजपा की सरकार बनने की स्थिति में श्री भगत सिंह कोश्यारी की दावेदारी भी होगी ही यदि श्री कोश्यारी मुख्यमन्त्री बनते हैं तो सुरेश गड़िया के विधायक होने की स्थिति में यह सीट उनके लिये बिना किसी प्रयास के खली हो जायेगी।
सेर सिंह गड़िया पूर्व में कपकोट से विधायक भी रहे हैं तथा भाजपा में जिला अध्यक्ष सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए उन्होंने काम किया है। 2017 में बागेश्वर जिले की दोनों सीटों पर भाजपा की विजय उनके अध्यक्षीय खाते में ही जाती है। त्रिवेन्द्र रावत की सरकार में भी थोड़े समय के लिये ही सही श्री गड़िया का बीस सूत्रीय विभाग का राज्य मन्त्री रहना भी उनकी उपलब्धि ही है।
पूरन गड़िया भले ही भाजपा में बड़ी कद काठी का नाम नही है पर नाकुरी की जिला पंचायत सीट जीतने के बाद श्री गड़िया ने दुग नाकुरी कमश्यार और दानपुर के एक हिस्से में अपनी पकड़ और छवि स्थापित की ही है। यदि किन्ही कारणों से श्री भौर्याल का विकल्प खोजने की स्थिति आती है तो श्री भौर्याल की पहली पसन्द पूरन गड़िया ही इस लिये होंगे कि श्री पूरन ने बड़ी आवादी के क्षेत्र दुग नाकुरी में अपनी मिलन सारिता की पहचान स्थापित की है। हाल के दिनों में जिला पंचायत के चुने गये २९ सदस्यों में से ९ सदस्यों द्वारा जिला पंचायत अध्यक्षा के खिलाफ चलाए गए आन्दोलन में मुख्य वार्ताकार की भूमिका में खड़े होकर भी श्री पूरन ने पार्टी में अपना कद बढ़ाया ही है।
श्री गोविन्द दानू मल्ला दानपुर से दो बार अलग अलग सीटों से चुनाव जीत कर जिला पंचायत में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वर्तमान में दानू कपकोट में क्षेत्र पंचायत प्रमुख के सम्मानित पद पर हैं। बागेश्वर में जिला पंचायत में श्रीमति बसन्ती देव को अध्यक्ष के पद तक पहुंचाने में श्री गोविन्द दानू का बड़ा योगदान भी रहा।
श्री विक्रम साही तल्ला दानपुर से हैं। पूर्व में ढाई साल तक जिला पंचायत के अध्यक्ष भी रहे हैं। श्री साही के सार्वजनिक जीवन की सुरूआत 1993 में कपकोट में चले लम्बे जन आन्दोलन से हुई थी। श्री साही जिला पंचायत से पूर्व कपकोट में ब्लाक प्रमुख भी रहे हैं। यदि सेर सिंह और सुरेश गड़िया के नामों पर अधिक अड़ंगा लगता हैं तो ये दोनो एक स्थिति में सरयू घाटी के विकल्प के रूप में श्री विक्रम पर भी दांव लगा ही सकते हैं।
“राजनीति में एक कहावत है कि जाट मरा ना मानिये जब तक तेरहवीं ना होय”। यह कहावत कपकोट में श्री भगत सिंह कोश्यारी पर तब सटीक बैठ सकती है जब कोश्यारी जी स्वयं कपकोट से विधान सभा चुनाव लड़ने का मन बना लेते हैं। श्री कोश्यारी के लिये सबसे सरल सीट कपकोट ही बनती है। श्री कोश्यारी के मैदान में उतरते ही भजपा ही नही अन्य पार्टियों के दावेदार भी इज्जत बचाने के लिये साइलेण्ट मोड में आ जाएंगे।
अभी कपकोट में कांग्रेस काफी सकृय है। विधान सभा की दावेदारी में कांग्रेस के दो नाम ललित फर्सवाण और हरीश ऐठानी सामने हैं। ललित फर्सवाण पूर्व में कपकोट से विधायक रहे हैं। पिछली बार श्री भौर्याल ने श्री फर्सवाण को करीब पांच हजार वोटों से हरा कर कपकोट सीट को भाजपा के खाते में डाला था। श्री फर्सवाण की हार में उनका बाहरी क्षेत्र से होना तो भाजपा ने खूब प्रचारित किया था पर बाहरी होने से बड़ा कारण कांग्रेस के दलित वोट का बसपा के ब्राह्मण उम्मीदवार श्री भूपेश उपाध्याय की तरफ बड़ी संख्या में चले जाना था। श्री ललित फर्सवाण मृदु स्वभावी और मिलन सार तो हैं ही साथ ही लगातार जनता के बीच बने रहते हैं। लगातर तनता के बीच बने रहना ही है कि वे बागेश्वर में कांग्रेस के एकछत्र नेता के रूप में स्थापित हैं।
कांग्रेस में दूसरा नाम हरीश ऐठानी का लिया जा रहा है। पांच साल तक जिला पंचायत बागेश्वर के अध्यक्ष रहे श्री ऐठानी का लोहा उनके विरोधियों ने तब माना जब दो वर्ष पूर्व सम्पन्न हुए जिला पंचायत चुनाव में श्री हरीश ऐठानी कपकोट की कुल 9 जिला पंचायत सीटों में से 6 सीटें कांग्रेस के पक्ष में जिता कर ले आये थे और भाजपा को तीन सीटों पर रोक दिया था। इन 6 सीटों में से एक सीट पर वे खुद जीते तो दूसरी सीट पर अपनी पत्नी को जिता कर लाये। बागेश्वर की राजनीति में श्री ऐठानी का नाम अभी भले ही एक दसक भी नही छू पाया है पर जनता में सर्वसुलभ और सभी की मदद करने वाले नेता के रूप में श्री हरीश का नाम लोगों में गहराई तक स्थापित हो गया है। सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं के ही नही किसी भी पार्टी के कार्यकर्ताओ के सुख दुख में श्री हरीश बिना लागडाट के सरीक हो जाते हैं, यही वजह है कि श्री ऐठानी को आजात शत्रु भी बोल दिया जाता है।
कांग्रेस में कम ही ऐसे नेता मिलते हैं जो पार्टी लाइन को तोड़ कर जनता के साथ खड़े होने की हिम्मत कर सकते हैं। श्री राहुल गांधी की तरह यह गुण श्री हरीश में दिखता है। श्री एठानी का सबको साथ लेकर चलने का हुनर ही था कि बागेश्वर की जिला पंचायत सीट पर बराबर वोट पड़ने की स्थिति में निकाली गई लाटरी में विजई घोषित किये गए एठानी को लेकर घोषण कर दी गई थी कि कभी भी उनके खिलाफ अविस्वास आ जायेगा। भाजपा की ओर से उनके खिलाफ अविस्वास लाने के कई दफा प्रयास भी हुए पर वे सभी प्रयास जिला पंचायत परिसर की दीवार को ही पार नही कर पाये सदन में पहुंचने का तो मतलब ही नही हुआ। वैसे अपनी अध्यक्षता को बचाने केलिये श्री ऐठनी सर्वोच्च न्यायालय तक भी गए ही थे।
भाजपा की सरकार के इन साड़े चार सालों में श्री हरीश ऐठानी पर कई प्रकार के आरोप लगाए गए उनके खिलाफ कई बार उच्च स्तरीय जांचें बैठाई गयीं। श्री ऐठानी पर भाजपा सरकार कोई आरोप सिद्ध नहीं कर सकी। यही वजह थी कि श्री ऐठानी का कद बागेश्वर की राजनीति में उस मुकाम पर पहुंच गया जहां कांग्रेस की राजनीति में सिर्फ सात साल में पहुंचना सबके बस का नही होगा। यहां गौर तलब यह है कि श्री हरीश और श्री ललित में से किसी को भी टिकट मिलने के बाद पार्टी में फूट पड़ने की कोई गुन्जाइस इसलिये नही है कि दोनो नेता श्री हरीश रावत खेमे से हैं और रावत सम्मानजनक सुलह करवाने में तो महारथ रखते ही हैं। यहां यह भी बता दिया जाये कि यदि भाजपा की तरफ से श्री भगत सिंह कोश्यारी का नाम सामने आता हैं तो कपकोट विधान सभा में कांग्रेस की ओर से श्री कोश्यारी को कोई आमने सामने की टक्कर देकर जीतने से रोक सकता है तो वह नाम श्री हरीश ऐठानी का ही हो सकता है।
आम आदमी पार्टी से भूपेश उपाध्याय कपकोट विधान सभा प्रत्यासी के रूप में सामने आ चुके हैं। श्री भूपेश उपाघ्याय का पहले पहल ताजनीतिक पोस्टर उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के बैनर पर छपा हुआ बागेश्वर की दीवरों पर किसी वर्ष की उत्तरायणी मेले में देखा तो गया था पर उत्तराखण्ड क्रान्तिदल की राजनीति श्री भूपेश ने कभी नही की। उस पोस्टर के बाद श्री भूपेश भाजपा कांग्रेस में आते जाते रहे। विजय बहुगुण के मुख्यमन्त्रित्व काल में जब कांग्रेस संगठन दो फाड़ था तब श्री भूपेश श्री बहुगुण के पक्ष में खुल कर सामने आये थे। श्री बहुगुणा ने भी श्री भूपेश को राज्य मन्त्री का दर्जा दे कर बड़ी जुम्मेदारी का सम्मान दिया था। 2013 की केदार नाथ आपदा के बाद श्री बहुगुणा की सरकार के जाने और श्री रावत की सरकार के आने के साथ ही श्री भूपेश भी कांग्रेस से अलग हो कर भाजपा खेमे में चले गए। भाजपा से विधान सभा का टिकट प्राप्त करने के लिये श्री भूपेश ने एड़ी चोटी का जोर तो लगाया पर यह जोर जिले की राजनैतिक सीमा के बाहर कोई मजबूत हाथ पकड़ ही नही सका।
जिले के अन्दर संघ के लोग और श्री कोश्यारी का धड़ा श्री भूपेश को कोई तबज्जो ही नहीं दे रहा था। परिणाम भाजपा ने श्री बलवन्त को विधायक प्रत्यासी के रूप में घोषित कर दिया तो श्री भूपेश बहुजन समाजवादी पार्टी का हाथ पकड़ कर हाथी के चुनाव चिन्ह को पकड़ कर चुनाव मैदान में कूद गए। यह अलग बात है कि श्री भूपेश जीत की एक चौथाई दूरी भी तय नही कर पाये पर चुनाव दम खम के साथ लड़ते दिखे। इधर पिछले एक साल से श्री भूपेश भाजपा में वापिसी के जोड़ तोड़ में लगे थे इस जोड़ तोड़ में श्री विजयवर्गी से उनकी नजदीकी को भी नापा तोला जा ही रहा था। बंगाल चुनाव में श्री मोदी की बड़ी फजीहत के साथ ही पार्टी में जियवर्गी का कद घटने और श्री पुष्कर धामी के मुख्य मन्त्री बनते ही श्री भूपेश को आभाष हो गया था कि उत्तराखंड में भाजपा की राजनीति में कोश्यारी फिर से ताकत बन चुके हैं तो श्री भूपेश ने नया ठिकाना आम आदमी पार्टी पकड़ लिया। आम आदमी पार्टी का अपना कोई मजबूत संगठनात्मक ढांचा उत्तराखण्ड में है नही। यह दल पूरी तरह से एन सी आर पर केन्द्रित है और एन सी आर चेहरे बदलने में माहिर है।
इधर श्री कलेर की अध्यक्ष पद से छुट्टी होना प्रतीक्षित घटना थी। अघ्यक्ष पद के साथ ही जैसा भी टूटा फूटा संगठन था वह भी स्वतह समाप्त होना ही था। इस रिक्तता की स्थिति में आम आदमी पार्टी ने राज्य में तीन कार्यकारी अध्यक्ष बैठा दिये जिनमें एक नाम श्री भूपेश का भी है। श्री भूपेश कार्यकारी अध्यक्ष के अलावा कपकोट से विधान सभा प्रत्याशी भी हैं। वे जानते है कि बसपा के वोट को आप की झोली में लाना सरल नहीं है। जो दलित वोट श्री भूपेश पिछले चुनाव में अपने पक्ष में लाए थे वह जिला पंचायत चुनावों में अपनी जगह लौट गया है। श्री भूपेश यह भी जानते हैं क कांग्रेस के वोट को भी आप की ओर खींचना सरल नही है। ऐसे में उनकी नजर एन्टी कैम्बैन्सी के वोट के साथ ही भाजपा के वोट बैंक पर टिकी हुई है। इसी सप्ताह उनकी कपकोट रैली में जय श्री राम के नारे बड़े उत्साह के साथ लगना भी इसी ओर इसारा कर ही रहा है। यहां बता दिया जाये कि इसी साल श्री भूपेश ने बागेश्वर मश्जिद में नमाज की बड़ी आवाज को कम करवाने के लिये जब प्रशासन को कानूनी चेतवनी दी थी तब भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, आर एस एस खेमों से श्री भूपेश के पक्ष में खूब समर्थन बाहर छलका था।
श्री भूपेश पूरी कोशिस करेगें कि वह समर्थन उनकी भीड़ में सामिल हो। यदि भूपेश उस समर्थन को अपनी भीड़ बनाने में कामयाब हो जाते हैं तो चुनावी संघर्ष को भाजपा से छीन कर कांग्रेस से आमने सामने की टक्कर तो बना ही लेंगे। श्री भूपेश के पास रोजगार, बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त की बिजली पानी के अलावा अच्छी शिक्षा और अच्छी चिकित्सा का बड़ा मुद्दा तो श्री केजरीवात पकड़ा ही गए हैं यदि श्री भूपेश जंगली जानवरों से जनता को सरकार द्वारा निजात दिलवाने की घोषण श्री केजरीवाल के मुख से करवा देते हैं तो बहुत बड़ा वोट बैंक वे पूरे पर्वतीय क्षेत्र में आम आदमी पार्टी की ओर खींच ही लेंगे। यहां यह बता दिया जाए कि जब कोई पार्टी जन मुद्दों पर चुनाव मैदान सजाती है तो स्वयं जनता संगठन की भूमिका में आ जाती है यह राजनैतिक हुनर श्री केजरीवाल के साथ ही कर्नल कोठियाल में भी है ही।
लेखक ‘हिमालय के स्वर’ पत्र के सलाहकार संपादक हैं