November 23, 2024



छानियों वाला गाँव त्यूड़ी

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बीना बेंजवाल


जाखधार से आगे अपने प्राइमरी स्कूल बणसू में कुछ देर रुककर बणसू के खेतों के बीच बनी सड़क से त्यूड़ी गाँव की ओर बढ़ती हूँ। प्रकृति के अपार सौंदर्य के बीच बसा है त्यूड़ी। गाँव में अभी भी घराट चल रहे हैं। सड़क के दोनों ओर बनी हट्स ने गाँव की खूबसूरती को और बढ़ा दिया है। कोरोना की वजह से गिने-चुने पर्यटक ही दिखाई दे रहे हैं। बेटी सौम्या और भतीजी आयुषी स्कूटी से आई हैं। भतीजी बताती है कि यहाँ ‘सुबेरो घाम’ फिल्म की शूटिंग हुई है। गाँव में कहीं एक दिन पहले ढोढर में हुई पूजा और पशुओं की वापसी की बात हो रही है तो कहीं धूप में सुखाने के लिए रखा धान पूणा जा रहा है। हम पहले जलस्रोत और फिर नवनिर्मित बलभद्र मंदिर परिसर में पहुँचते हैं।

गुप्तकाशी से आठ किमी की दूरी पर स्थित त्यूड़ी गाँव प्राकृतिक सौंदर्य के साथ अपना सांस्कृतिक महत्व भी लिए है। इस गाँव को प्रकृति ने बलभद्र धारों के रूप में भी अप्रतिम उपहार दिया है। बलभद्र मंदिर के निकट स्थित यह प्राकृतिक जलस्रोत इस गाँव का एक प्रमुख आकर्षण है। बलभद्र यानी बलराम। वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मण सिंह नेगी जी द्वारा इस मंदिर पर निर्मित रिपोर्ट का कवयित्री शशि देवली के स्वर तथा जिला पंचायत उपाध्यक्ष श्री सुमन्त तिवारी जी के सहयोग से बनाया गया वीडियो यहाँ के विषय में जानकारी से समृद्ध करता है। नेगी जी ने त्यूड़ी गाँव के ऊपर स्थित मोठ खर्क के अनुपम सौंदर्य को भी छायांकित किया है।


मान्यता है कि द्वापर युग में कृष्ण द्वारा कंस का वध किए जाने पर बलराम हिमालय की ओर यात्रा पर निकल पड़े। केदारघाटी में स्थित इसी गाँव से चार किमी आगे भीमासुर से उनका सामना हुआ। कई दिन तक युद्ध चला। बलराम ने कृष्ण को भी सहायतार्थ बुलाया। फिर दोनों भाइयों ने मिलकर राक्षस को यहीं पराजित किया था। और यह भूमि उन्हें भा गई।


2 गते वैशाख को हमारे यहाँ जाखधार में जाख का मेला और 3 गते को त्यूड़ी में मेला लगता है। बलभद्र की इस धरती पर आयोजित इस मेले के संपन्न होने के बाद गाँव के पशुधन को ढोढर के मरड़ों की ओर भेज दिया जाता है। जिस परिवार में कोई गाय-भैंस के साथ मरड़ा जाने वाला नहीं होता है तो वे वहाँ जाने वालों में से ही किसी को ‘ह्यर्वाळी’ और राशन आदि देकर अपने पशुओं की जिम्मेदारी भी सौंप देते हैं। और गाँवों के पशु भी वहाँ रहते हैं। भेड़-बकरियाँ जोड़-ढोढर से भी ऊपर बुग्यालों में रहती हैं। पांच महीने वहाँ रहने के बाद भादों की अनंत चतुर्दशी को ढोढर में पूजा संपन्न होने के बाद अपने गाय-भैंसों को लेकर पशुपालक वापस गाँव आ जाते हैं।

पशुधन पर केन्द्रित इस आयोजन में शामिल होने वाले ललित देवशाली भुला बताते हैं कि इस पूजा की तिथि जन्माष्टमी के दिन निश्चित की जाती है। उस दिन अपनी बारी पर मंदिर में पूजा करने वाले कोठेड़ा के पुजारी द्वारा ही अनंत चतुर्दशी के दिन ढोढर में भी पूजा की जाती है। भादों महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को विष्णु भगवान के अनंत रूपों की पूजा होती है। उस दिन वहाँ खीर बनती है और उसी का भोग लगाया जाता है। सभी पशुपालकों द्वारा दूध एवं पहले दिन छांछ बनाकर निकाला गया मक्खन क्षेत्रपाल देवता हेतु लाया जाता है। वे अपने पशुओं संबंधी मांगी गई मन्नत पूरी होने पर मूर्ति भी चढ़ाते हैं। गाँव से भी उस दिन लोग चावल, ककड़ी, मकई, सब्जियाँ आदि लेकर वहाँ पहुँचते हैं। यह एक तरह से पशुओं को सुरक्षा देने के लिए स्थानीय लोकदेवता के माध्यम से प्रकृति के प्रति भी कृतज्ञता भाव है। ललित ने यह भी बताया कि बांगर के पशुपालक मणखा में रहते हैं।


धऽन-चऽन यानी पशुधन के लिए की जाने वाले क्षेत्रपाल देवता की यह पूजा कठिन विधि-विधान से की जाती है, पूजा में शामिल राजेन्द्र देवशाली चाचा जी यह जानकारी देते हैं। 19.9.2021 को संपन्न हुई इस पूजा की बारी इस साल कोठेड़ा से श्री प्रियधर भट्ट जी की थी। गाँव वाले काफी संख्या में शामिल हुए। ढोढर से जोड़, सतगुड़ु खर्क और उससे ऊपर मोठ खर्क है। यहाँ बुग्याळ की रमणीयता देखते ही बनती है। अंगड़ताल का अपना निराला सौंदर्य है।

ढोढर के छानी-मरड़ों और वहाँ के आयोजन में स्वयं भी सम्मिलित होने वाले त्यूड़ी के ग्राम प्रधान श्री सुभाष रावत जी ने भी महत्वपूर्ण जानकारी दी। उनके अनुसार मान्यता है कि बांगर क्षेत्र के एक चरवाहे की गाय आज जहाँ सौंळा नारैण है, वहाँ आकर एक लिंग पर अपना दूध चढ़ा देती थी। चरवाहे ने गाय को वहाँ से हटाने के लिए प्रहार किया। गाय के बजाय लिंग पर चोट लगने से उसके कई खण्ड हो गए। यह सब देखकर चरवाहा उन्हें एक कण्डी में उठाकर नदी में विसर्जन हेतु ले जाने लगा। उनमें से कुछ ढोढर में गिर गए। बाकी बचे त्यूड़ी गाँव के करीब कण्डी बहुत भारी होने से वो आगे नहीं ले जा सका। उसी जगह पर अब मेला लगता है।




रावत जी ने बलभद्र जलस्रोत के विषय में बताया कि जरा-सी भी अस्वच्छता होने पर वहाँ साँप दिखाई देने लगते हैं। जन्माष्टमी के दिन बलभद्र मंदिर में लगने वाले जागरों पर भी अपनी जानकारी साझा की। कई गढ़वाली एवं एक हिंदी फिल्म की वहाँ हुई शूटिंग के विषय में बताया। उन्होंने बताया कि बृजमोहन दास नामक एक साधु 10 साल से ढोढर में रह रहे हैं।

त्यूड़ी गाँव भले ही सड़क से जुड़ गया है पर उसने जंगल, छानी-मरड़ों, खेतों, घराटों से जोड़ने वाली अपनी पगडंडियों को भी नहीं छोड़ा है। उसके घरों में आज भी दोखे और पाखले सहेजे मिलेंगे। वो जागरों की हमारी सांस्कृतिक विरासत को भी संजोए हुए है। घराटों से जुड़ी शब्दावली को अभी भी बचाए हुए है। उसके ढोढर के मरड़ों में आज भी अपनी पुरानी समृद्ध परंपरा के अनुसार पशुधन को समर्पित लोकोत्सव मनाया जाता है तो दूसरी ओर पर्यटन की अपार संभावनाओं को भी गति दे रहा है त्यूड़ी गाँव!

फोटो -श्री सुभाष रावत-ग्राम प्रधान त्यूड़ी, श्री ललित देवशाली, सौम्या बेंजवाल एवं आयुषी देवशाली