कुछ भूली – बिसरी यादें
गुलाब सिंह नेगी
मत फेंक पत्थर पानी में, उसे भी कोई पीता है।
मत रहो उदास यूँ जिन्दगी में, तुम्हें देखकर भी कोई जीता है।।
बड़ा पत्थर ऊंणताल 14250 फीट (सहस्त्र ताल) 12.09.2021, मेरे आत्मीय स्वजनों आज यहाँ पर बैठकर कुछ यादें स्मरण हो आई बात 35 वर्ष पहिले की है, पहली बार 02 अक्टूबर 1984 में मैं और राकेश पंवार (पौड़ी) यहाँ पर आए थे। दूसरी बार 01जून 1985 को अत्याधिक बर्फ होने के कारण लम्बताल से वापस लौटना पड़ा। तीसरी बार 28 अगस्त 1986 में यहां से आगे दशर्नी ताल 14957 फीट पर एक रात्रि रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अगले दिन अप्सराताल होते हुए हम गंगी उतर गये थे। इस यात्रा में मेरे साथ पौड़ी से राकेश व लाटा से मदन सिंह और पारेश्वर रतूड़ी भी था।
चौथी बार 02 अक्टूबर 1994 को मेरी पत्नी बीना व उस समय सरस्वती शिशु मंदिर के आचार्य कर्मवीर नेगी, उपेन्द्र उनियाल, सुरेंद्रदत्त सकलानी, बलवन्त पंवार व पंकज कुमार अग्रवाल साथ थे। इस विशाल पत्थर के नीचे गुफा में रात्रि निवास किया। प्रातःकाल वीना नें वैगन का भर्ता व पूरियाँ बनाई थी जलपान के पश्चात हम लोग दर्शनिताल, अप्सरा ताल व गौमुखी ताल के दर्शन करके वापस लौट गए थे। वापसी में कुखलीधार के पास खूब बर्फवारी हुई थी। पण्डों सेरा में बर्फ के ऊपर ही हमने टेंट लगाया था।
आज पुनः 27 साल के पश्चात यहाँ पर आया हूँ आज रात को यहाँ पर तेज हवा व बारिश के साथ साथ बर्फ भी गिरी है। इस बार मेरे साथ मेरा बड़ा पुत्र आलोक मेरे पुरोहित श्री कमलेश्वर प्रसाद (सैंज) व मथुरा प्रसाद नौटियाल (गोरसाली) तथा हरदेव सिंह रावत (सिल्ला) आये हैं। मौसम ठीक नहीं है अभी दर्शनिताल से लौटे हैं आज रात को भी यहीं रहेंगे। साथी भोजन बना रहे हैं, स्टोव भी नखरे दिखा रहा है पम्प मारते मारते थक गये, दो घन्टे से दाल नहीं बन पाई, अभी भात भी बनाना है!
मैं एकांत में प्रकृति प्रदत्त दोनों ओर गुफा और मध्य में कुर्सी पर बैठकर बीते हुए पलों को याद कर रहा हूँ, बीना जो सशरीर अब नहीं है (7 फरवरी 2016 को पंचतत्व में विलीन हो गई) हर पल मेरे साथ है उसकी उपस्थिति का आभास हो रहा है लेकिन किसी ने क्या खूब लिखा है…
अजीब सी बेताबी है तेरे बिना,
रह भी लेता हूँ, और रहा भी नहीं जाता.
शेष फिर कभी
आप कहो तो, थोड़ा आराम कर लेते हैं अभी।
लेख़क हिमालय प्रेमी व जाने माने फोटोग्राफर हैं.