देवबनों का संरक्षण जरुरी
डॉ. महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट
आज एक ओर जहां हम सब, चाहे वे बहुत से बुद्धिजीवी वर्ग हों, सामाजिक कार्यकर्ता हों, सरकारी व ग़ैरसरकारी संस्थान हों, सभी लोग अपने इस पर्यावरण को बचाने की मुहिम में अलग अलग तरीक़े से जुटे हुए हैं। कोई वृक्ष लगाने में तो कोई सफ़ाई अभियान में जुटा हुआ है। कोई प्लास्टिक तो कोई नदियों की सफ़ाई में जुटा पड़ा है, परन्तु ऐसा नहीं कि ये जागरूकता आज ही लोगों में पैदा हो रही है।
ऐसे हमारे उत्तराखण्ड में सैकड़ों उदाहरण हैं जहां आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व महान गुरुओं, ऋषि मुनियों ने अपनी इस तपस्थली या यूँ कहें कुछ चुनिंदा स्थानों को प्राकृतिक संरक्षण देने का कार्य किया है। इन्हीं महत्वपूर्ण स्थानों में कुछ अपने पौडी ज़िले के नैनीडांडा ब्लॉक के अन्तर्गत दीवाडांडा, लगभग २१०० मीटर की ऊँचाई पर दीवा गढ़ी परिक्षेत्र में बांज का जंगल व रिखणीखाल ब्लॉक में १८०० मीटर पर स्थित ताड़केश्वर महादेव का मन्दिर है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मन्दिर के चारों ओर एक घना देवदार का जंगल है, जिसे हम “देव वन” के रूप में पूजते हैं।
इनको काटना या किसी भी प्रकार से क्षति पहुँचाना वर्जित है। कल्पना कीजिए आज से लगभग १०००-१५०० साल पहले के उत्तराखण्ड के ये संरक्षित वन हमारी जैव विविधता को संरक्षित करने का कितना नायाब उदाहरण है। आज से लगभग १० वर्ष पहले मैंने व मेरे मित्र प्रो० अशोक डिमरी, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय ने मिलकर उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी से अल्मोडा तक देवदार के वृक्षों का सर्वे किया था व इनकी आयु का पता तथा उस कालखण्ड में घटित मौसम व अन्य घटनाओं को डेन्ड्रांक्रोनोलॉजी के माध्यम से जानकारी जुटाने का प्रयास किया था।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे उत्तराखण्ड में ये वृक्ष १२०० साल से भी अधिक कुछ स्थानों पर आज भी खड़े होकर प्रकृति के थपेड़ों को झेलते हुये हमें इस धरती पर एक स्वच्छ व सुन्दर वातावरण दे रहे हैं। क्या सोच रही होगी हमारे उन पूर्वजों की? ज़रा सोचिए? ऐसे ही नहीं हमारी उत्तराखण्ड की धरती, जिसका कि लगभग ७१% भाग वनाच्छादित है, हमें आसानी से मिला है। ये हमारे उन्हीं महापुरुषों की देन है। अत: हम सबको मिलकर आज इसे बचाने का प्रयास करना चाहिए। तभी हमारे आने वाली पीढ़ी यहाँ सुरक्षित रह पायेगी व आने वाले कल में यह देवभूमि कहलायेगी ।
इसी सोच के साथ मैंने अपने यूसैक के वैज्ञानिकों की सहायता से इन संरक्षित देव वृक्ष व देव वनों का विस्तार से सर्वेक्षण कर मानचित्रीकरण करने का छोटा सा प्रयास सुरू किया है । उम्मीद है जल्दी ही हम इसकी विस्तृत रिपोर्ट आपके समक्ष पेश करने में सफल हो पायेंगे।
लेखक युसैक के निदेशक हैं