सुमेरु – सिम्पलिसिटी फिल्म की ताक़त
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
इन दिनों फिल्मों में नयी युवा पीढ़ी बहुत सारे प्रयोग कर रही है और यह होना भी चाहिये. बोलीवूड ने अभी तक भी अपनी परंपरागत छवि नहीं तोड़ी है इसमें उसको रिस्क नज़र आता है. यहाँ तक की पचास पार कर चुके हीरो आज भी हीरो बनकर बीस इकीस की हिरोइन के साथ ठुमके लगा रहे है. कहानियों के चुनाव भी वही घीसे पीटे विषय है. भारतीय फिल्मों पर परिवाद की ऐसी छाप है कि नयी प्रतिभावों को मौका नहीं मिलता. लेकिन अब धीरे – धीरे ही सही नयी उभरती प्रतिभावों ने अब खुद ही कमान सभाल ली है. फिल्म निर्माण तकनीकी की सरलता ने युवाओं व रचनाकारों को पंख फ़ैलाने का सुनहरा मौका दे दिया है.
उत्तराखंड के एक ऐसे प्रतिभाशाली युवक ने इसकी जबरदस्त सुरुआत की है. इस जुनूनी युवक का नाम है अविनाश ध्यानी जिसकी हाल ही में रिलीज हुई नयी फिल्म सुमेरु लोगों को रोमांचित कर रही है. उत्तरखंड के मसूरी, धनोल्टी, देहरादून और हर्षिल की सुन्दर वादियों में फिल्म का सुन्दर फिल्मांकन किया गया है. फिल्म के टैग लाइन डायलौग “रे छोरे यो प्यार है, थारी समझ से बाहर है”. इस डायलौग से ही पाठक समझ जाता है की ये एक लव स्टोरी है. फिल्म की कहानी बहुत सरल व सपाट है. इसी तरह सुमेरु का फिल्मांकन भी है.
उत्तराखंड की सुन्दर बर्फीली वादियों में स्थित हर्षिल पहुंची सावी मल्होत्रा (संस्कृति भट्ट) अपनी वेडिंग डेस्टिनेशन की ख़ोज में है. दूसरी ओर हरियाणा का छबीला छोरा भंवर प्रताप सिंह (अविनाश ध्यानी) भी इसी इलाके में अपने पिता की ख़ोज कर रहा है जो पर्वतारोही थे लेकिन एवलांच में कही दबे हुए है. सावी ऐसो आराम व तड़क भड़क भरी जिंदगी से अज़ीज आ चुकी है. अपने मंगेतर के साथ हर्षिल पहुंची सावी प्रकृति के रूप से बहुत खुस नज़र आती है लेकिन उसका मंगेतर वहां कोई फाइव स्टार होटल न होने की बात करता है व खीज कर कहता है की कहा फंस गए. इस बात पर दोनों में झगडा हो जाता है. सावी अपने मंगेतर को छोड़ कर जंगल की तरफ भाग जाती है.
सांझ के बाद रात बढ़ती जाती है जंगली जानवरों की आवाज़े उसको डरा देती है. रातभर सावी रोती डरती रहती है. दूसरी ओर भंवर प्रताप सिंह भी उसी रास्ते अपने पिता की ख़ोज में रात में डेरा डाले हुए है. सुबह के धुदलके में दोनों की अकस्मात् मुलाक़ात होती है. अब सावी की मजबूरी है कि वह या तो भंवर प्रताप की बात माने या फिर जंगल – जंगल भटकती रहे. आखिरकार सावी भी भंवर प्रताप के मिशन में शामिल हो जाती है. इस खोज यात्रा में दोनों को एक दूसरे से प्यार हो जाता है लेकिन कोई खुलकर इजहार भी नहीं करता.
आखिरकार भंवर प्रताप व सावी ग्लेसियर में बर्फ से दबे भंवर के पिता को खोज लेते हैं. भंवर प्रताप वही अपने पिता को अग्नि को समर्पित कर देता है. वापसी में औचक कुछ नेपाली दोनों को घेर लेते है. भंवर की पिटाई होती है कि उसने लड़की का अपहरण किया है. किसी तरह दोनों उनको समझाते है हर्षिल पहुंचकर दोनों विदा लेते है. अब इससे आगे की कहानी बताकर फिल्म का रोमांच समाप्त नहीं करना चाहूँगा.
इस फिल्म को देखकर मुझे ऑस्ट्रेलिया की क्लासीक फिल्म वाक् अबाउट की याद आ जाती है. सुमेरु फिल्म की सिम्पलिसिटी ही इसकी जान है. 72- आवर्ष फेम अविनाश ध्यानी ने हमेशा की तरह कहानी के अनुरूप शानदार अभिनय किया है. मजे की बात ये है कि पूरी फिल्म में हरियाणवी हिंदी में ही अधिकांश बातचीत होती है. अविनाश व संस्कृति ने कही भी यह अहसास नहीं होने दिया कि वे हरियाणवी नहीं है. यह एक बड़ी चुनौती थी जिसे दोनों ने बखूबी निभाया.
संस्कृति भट्ट 2018 में मिस उत्तराखंड चुनी गयी थी. यह उनकी डेव्यू फिल्म है. जिस आत्मविश्वास के साथ संस्कृति ने अपनी भूमिका निभाई वह काबिले तारीफ़ है. सुमेरु फिल्म ने संस्कृति के अभिनय भविष्य की ठोस बुनियाद रख दी है, संस्कृति को सुभकामनाएँ. फिल्म में कहीं – कहीं अभिनय व निर्देशन के बीच का द्वन्द भी झलकता है. इस बात को अविनाश ने खुद भी महसूस किया होगा. एक सुन्दर बैकड्राप पर बनी फिल्म में टाईटलों पर ध्यान नहीं दिया गया है सुरुआती टाईटल पड़ने में नहीं आते, खैर ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं पर आगे के लिये सलाह हो सकती है.
सुमेरु फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका निर्माण पूरी तरह जहाँ उत्तराखंड में हुआ है वहीँ दूसरी ओर लगभग सारे कलाकार, तकनीकी टीम, कैमरा, संपादन, संगीत सब कुछ उत्तराखंड के युवाओं ने किया है. पद्मसिधि फिल्म्स बैनर पर बनी इस फिल्म का निर्माण रविन्द्र भट्ट व अविनाश ध्यानी ने किया है. फिल्म की कहानी व निर्देशन अविनाश ध्यानी ने किया है. 17 साल की नाओमी नौरियाल ने असिस्टंट डायरेक्टर की बढ़िया भूमिका निभाई. कलाकारों में शगुप्ता अली, सुरुचि सकलानी, अभिषेक मैंदोला, प्राशील रावत, सतीश शर्मा, जीत गुरुंग, अरविन्द पंवार, माधवेन्द्र रावत शामिल हैं. प्लेबैक सिंगर्स में शेखिना मुखिया, ऋषिराज भट्ट, मेधा ध्यानी, ख्याति रॉय, श्रेष्ठ नेगी ने अपनी भूमिका निभाई है जिसको संगीत से सजाया है सुजोय बोस व मुदित बोंठियाल ने. बैकग्राउंड स्कोर अमित बर्मा कपूर व संपादन मोहित कुमार ने किया है. सुमेरु का सुन्दर फिल्मांकन हरीश नेगी ने किया है.