November 23, 2024



आस – पास विज्ञान

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समीक्षक – डॉ० नागेन्द्र ध्यानी


यह बालसाहित्य की एक अप्रितम कृति है | बालसाहित्य के प्रति भारतीय प्राचीनकाल से ही रूचि लेते रहे हैं |


विदेशियों ने भी हमारे बालसाहित्य की प्रशंसा की और उसका अनुवाद अपनी भाषाओँ में किया है | ‘हितोपदेश’, ‘पंचतंत्र’ और ‘सरित्सागर इसके उदाहरण हैं | बौद्ध और जैन साहित्य में समानेरों  (बाल भिक्षुओं ) को ज्ञान –विज्ञान की सरलतम विधि से शिक्षा देने के लिए ‘बालबोधिनी’ जैसी पुस्तकें आज भी उपलब्ध हैं | ज्ञान ही नहीं विज्ञान को भी हमारे मनीषियों ने प्राचीन काल से ही सूत्रबद्ध करके पद्यमय शिक्षा के माध्यम से पढ़ाया है | समस्त चिकित्सा  सूत्र, गणित और विज्ञान को पद्य के माध्यम से सिखाने का प्रयास हमारे ऋषि –मुनि वैदिक युग से करते आऐ है | डॉ० उमेश चमोला की विज्ञान कविताएँ पढकर मुझे ऋग्वेद के नासदीय सूक्त और अरण्यानी सूक्त का स्मरण हो आया | इन सूक्तों में भी सृष्टि उत्पत्ति के रहस्य तथा वनों के संरक्षण के भाव को वैदिक ऋषि ने कहीं सरलतम प्रहेलिकाओं और कहीं कथाओं के माध्यम से समझाया है | उपनिषदों में कथाओं का सहारा लेकर विज्ञान को विवेचित किया गया है | गार्गी – याज्ञवलक्य संवाद को ही देख लीजिए जिसमें गार्गी याज्ञवलक्य से सृष्टि के रहस्य को पूछती है | कठोपनिषद में मृत्यु और जीवन क्या है ? इसकी जानकारी के लिए नचिकेता और यम संवाद पठनीय हैं | इसमें एक बालक नचिकेता यम से पूछता है –‘अमरत्व क्या है ?’ यह सब विज्ञान की ही जानकारी है | ऋग्वेद में भुज्यु की मौत का उल्लेख,अश्वनी कुमारों की दी हुई औषधि से वृद्ध च्यवन्य का युवा होना,बुद्धिमती के कटे हाथ की शल्य क्रिया करके उस पर सोने का हाथ लगाना, वीरांगना विश्पला की टूटी जांघ को तोड़ने और शोण के घुटने ठीक करने का वर्णन मिलता है | अश्वनी कुमारों ने ऋजाश्व की आँखें ठीक की थी | यह वर्णन प्राचीनकाल के चिकित्सा विज्ञान की ओर संकेत करता है | अतएव इस विज्ञान के युग में जीने वाले नितांत भौतिकवादी विचिन्तको को भी इस प्राचीन विज्ञान के गवाक्ष उद्घाटित कर उसमें छिपे ज्ञान –विज्ञान पर भी अनुसन्धान करना चाहिए और इस प्रकाश को सबके लिए वितरित करना चाहिए | प्राचीन ज्ञान –विज्ञान को कल्पना कहकर नकार देना एक प्रकार की अकर्मण्यता ही होगी | मुझे प्रसन्नता है कि राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखण्ड में कार्यरत शिक्षक –प्रशिक्षक डॉ० उमेश चमोला का ध्यान उस प्राचीन ज्ञान –विज्ञान की ओर भी गया है | उन्होंने इस बालबोधिनी विज्ञान पद्यावली में दृश्यमान विज्ञान जो हमारे आस-पास बिखरा है को लेकर बच्चों को विज्ञान के रहस्यों से परिचित कराया है |


लेखक ने दो कविताएँ,सात कहानियां तथा ३५ विज्ञान पहेलियों को इस पुस्तक में ‘आस-पास विज्ञान नाम से प्रकाशित किया है | ‘खोज’ कविता में न्यूटन और फ्लेमिंग के साथ बेटिंग और जेनर जैसे वैज्ञानिकों के द्वारा की गई खोजों का कवि ने वर्णन किया है | अपनी दूसरी कविता में वे विज्ञान विश्लेषण की विधियों का वर्णन करते हैं | विज्ञान के अध्ययन में पहले समस्या फिर कल्पना, फिर प्रयोग तदन्तर विश्लेषण और अंत में समाधान या नियम निर्धारण किया जाता है | भारतीय दर्शन शास्त्र में भी विज्ञान की इन अध्ययन विधियों को ही अपनाया जाता है | कवि ने बालबोधिनी कविताओं के माध्यम से इस प्रक्रिया को सरलता से समझाया है | इन कविताओं को पढने से लगता है जैसे वे हिन्दी कविता में आर्ष ऋषि द्वारा रचे गए सूत्र हों | छोटे और रोचक तथा सरल विज्ञानं के सूक्त | इस पुस्तक में ‘भूतों का रहस्य’ विज्ञानसम्मत कहानी है | यह बच्चों को ज्ञान दिलाती है कि रात में चमकने वाले (उड़ने वाली प्रकाशमान वस्तुएँ) भूत नहीं हैं | वह फोस्फोरस नामक तत्व है जो ओक्सीजन के साथ मिलकर जलने लगता है और ऑक्साइड बनाता है | इसी से रोशनी होती है जिसे लोग उड़ने वाला भूत समझते हैं | हम भी जब तक बच्चे थे विज्ञान के इस रहस्य से परिचित नहीं थे और इसे भूत ही समझते थे | ‘भूत रहस्य’ कहानी में विज्ञान के इस तथ्य को उजागर किया गया है कि रात में पौधे कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस छोड़ते हैं | उनके नीचे सोने से प्राय; साँस लेने में कठिनाई होती है | ऐसा लगता है कि भूत मुझे दबा रहा है | ‘चमत्कारी बाबा’ कहानी चमत्कारों के पीछे छिपे विज्ञान को स्पष्ट करती है | चमत्कारी बाबा समझे जाने वाले लोग आज भी अपनी रासायनिक विज्ञान सम्मत जानकारी से लोगों को चमत्कार दिखाकर खूब लूटते हैं | यह सब तंत्र –मन्त्र नहीं है | हाथ की सफाई है या रसायन विज्ञान का चमत्कार है | प्राचीन जातक ग्रंथों, बौद्ध और जैन साहित्य तथा नाथ सम्प्रदाय में ऐसे सन्यासियों का वर्णन आया है जो अपने चमत्कार से जनता पर अपना प्रभाव डालकर उन्हें आतंकित करते थे | बौद्ध काल में रसायन विज्ञान की चरम उन्नति हुई थी | रसायन के अनेक प्रयोग करके भिक्षुओं ने सिद्धांत प्रतिपादित किए तथा ग्रन्थ लिखे लेकिन साधारण जनता इस विज्ञान से अछूती रहने के कारण अन्धविश्वासों में जकड़ी रही | भिक्षु भी जो विज्ञान के रहस्यों को जानते थे, सीधी सादी जनता को इसके बल पर खूब लूटती थी | आज भी लोग ऐसे बाबाओं से लोग हर रोज लूटे जाते हैं |

डॉ ० चमोला की ये विज्ञान कहानियां बच्चों को ही नहीं उन लोगों की भी आँखे खोलेंगी जो अन्धविश्वासी हैं और किसी भी बात को विज्ञान की दृष्टि से न परख कर उसे परंपरा समझकर अपना लेते हैं | डॉ० चमोला की छंद्धबद्ध विज्ञान पहेलियाँ बड़ी ही रोचक हैं जो कि खेल –खेल में विज्ञान के रहस्य खोलती है | ये पहेलियाँ विज्ञान के नियम याद करने में नई प्राविधि को अनुसंधानित सी करती है | कविता के माध्यम से यह प्रयोग सर्वाधिक सुंदर है | ये पैतीस पहेलियाँ सरलता से ज्ञान को विज्ञान में बदलकर उन रहस्यों की ओर भी हमारा ध्यान आकृष्ट करती है जिन पर हमारी दृष्टि नहीं जाती है | नई शिक्षा नीति में जिन नवाचारों की बात की गई है उनमे यह भी एक है सरस पद्य के माध्यम से ज्ञान को सूत्रबद्ध करके पढाना या स्मरण कराना जिससे बच्चा खेल खेल में सीख सके | पद्य की सहायता से विज्ञान और गणित को पढाने के लिए डॉ० चमोला से पहले डॉ० शिवदर्शन नेगी प्रधानाचार्य ने भी ‘गणित गीतिका’ नामक पुस्तक लिखी थी | यह काफी लोकप्रिय रही | डॉ० चमोला की शैली उनसे भी अधिक  सरल है | उनकी लिखी इन कहानियों और और कविताओं के माध्यम से हमारे शिक्षकों को विज्ञान को पढाने और विज्ञान के रहस्यों को समझाने में आशातीत सफलता मिलेगी | ऐसा मेरा विश्वास है | निस्वार्थ भाव से अपना धन इस ज्ञान यज्ञ में व्यय करने वाले इस अनुसंधाता एवं प्रयोक्ता के विज्ञान सम्मत चिंतन की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए | आशा है कि भविष्य में प्राचीन विज्ञान की जानकारी के लिए भी इस प्रकार की सूत्रात्मक पद्धति का सहारा लेकर डॉ ० चमोला बालक –बालिकाओं के लिए पुस्तक लिखेंगे | ये पुस्तकें बच्चों के साथ – साथ विज्ञान से आँखें मूंदें हुए लोगों के लिए भी दृष्टि का भी कार्य करेंगी | विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में यह कार्य प्रशंसनीय माना जाएगा | डॉ० चमोला का यह नव्य प्रयोग शिक्षा जगत के लिए उपादेय है | पाठ्य पुस्तकों में भी इन विज्ञान पहेलियों और कहानियों को स्थान दिए जाने हेतु उपक्रम किया जाना चाहिए ताकि बच्चों को इसका लाभ मिल सके | पुनश्च लेखक को हार्दिक शुभकामनायें |


 पुस्तक –आस –पास विज्ञान

 लेखक –डॉ ० उमेश चमोला




 समीक्षक –डॉ ० नागेन्द्र ध्यानी

 प्रकाशक – बिनसर प्रकाशन देहरादून ,उत्तराखण्ड |