जीत के रुमाल को हिलाके लेंगे उत्तराखण्ड
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जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
जनकवि डॉo अतुल शर्मा का लिखा जनगीत “लडके लेगे भिड़ के लेंगे छीनके लेंगे उत्तराखण्ड ” एक ऐतिहासिक दस्तावेज है । जन-जन की जुबान पर रहा यह जनगीत उत्तराखण्ड आंदोलन की मांग का उद्देश्य भी व्यक्त करता रहा। प्रभात फेरी, मशाल जुलूसों, नुक्कड़ नाटकों, रैलियो, स्मारिकाओ, समाचार पत्रो मे इस जनगीत को स्वीकारा गया ।
चाहे वह पहाडो़ मे कर्फ्यू तोड़ते समय गाया गया हो या अन्य संघर्षपूर्ण आन्दोलन मे यह जनगीत गाते हुए लोग मुट्ठियां ताने रहते थे। कौन नही जानता इस गीत के बारे मे। यह जनगीत ध्वजवाहक बन गया था उत्तराखण्ड आंदोलन मे । इसके विषय मे अनेक आन्दोलनकारी अपने अनुभवो को समय समय पर साझा कर चुके हैं।
लेकिन इस गीत की रचना के सम्बंध मे इस लोकप्रिय जनगीत के प्रतिष्ठित जनकवि डॉo अतुल शर्मा क्या कहते है.
जनकवि डॉo अतुल शर्मा नै बताया कि इस जनगीत की रचना एक मशाल जुलूस के दौरान हुई। उन्होने बताया कि रामपुर तिराहे के जघन्य कांड के दौरान एक मशाल जुलूस निकला और तब लोग नारे लगा रहे थे। उस समय मै मशाल जुलूस मे शामिल था। वही पर एक पंक्ति आयी ” मिलके लेगे उत्तराखंड “, मै घर पहुचा और मैने इसे लिखा। यह अधूरा लिखा गया था। बाकी गीत पहाड़ मे आन्दोलन के दौरान हम एक गांव मे थे वहीं यह गीत पूरी तरह लिखा। सुबह यही गीत मैने प्रभात फेरी मे गाया। ढपली की ताल और लोगो के जोश के साथ। फिर मेरे अनुरोध पर इसकी फोटो स्टेट कापी हर जगह पर वितरित की गई।
रात-रात भर जाग-जाग कर इसका ओडियो कैसेट तैयार किया गया। बलराज नेगी ने इसे देहरादून मे बहुत से आन्दोलनकारी मे प्रस्तुत कराया। इनमे महिला स्वर मे लोकप्रिय गायिका श्रीमती रेखा उनियाल धस्माना और नैनीताल के मित्र जगमोहन जोशी मंटू ने पुरुष स्वर दिया। इसमे संगीत मधवाल (अब ढौंढियाल) ने साथ दिया था। अन्य बहुत से आन्दोलनकारी शामिल थे। यह कैसेट पहाडो़ मे आन्दोलनकारी पहुचाते थे। इसके बाद एक अन्य कैसेट के माध्यम से यह भी पूरे पहाड़ मे पहुचा। उसका नाम था ” कदम मिला के चल “। इसे हमारे परिवार और मित्र स्वयं कौपी करके निशुल्क आन्दोलनकारियो को वितरित करते थे।
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देहरादून मे उत्तराखण्ड सांस्कृतिक मोर्चे ने इस जनगीत को अन्य जनगीतो के साथ प्रभात फेरी मशाल जुलूसों, नुक्कड़ नाटकों आदि मे लगातार गाया। जिससे आन्दोलन को गति पकड़े। फिर सौ दिनो की प्रभात फेरी उत्तरकाशी मे हुई उसमे रोज़ ही लोग इसे गाते हुए चलते। वही नैनीताल समाचार ने इसे प्रमुखता से छापा। उत्तरा पत्रिका ने इसे आन्दोलन की आवाज़ बनाया। उस समय लगभग सभी स्मारिकाओ पुस्तको मे यह जनगीत ऐतिहासिक भूमिका निभाता रहा। सभी का नाम लेना सम्भव नही है। पर सभी ने इसको आन्दोलन मे गाया।
डॉo अतुल शर्मा ने बताया कि युगवाणी ने इस जनगीत को प्रकाशित करके जन-जन तक पहुचाया।
जनकवि डॉo अतुल यह बताते हुए भावुक हो गये कि उन्होने आन्दोलन मे जुलूसों मे भीड़ के साथ अपना जनगीत गाते हुए आन्दोलन मे शिरकत की। उन्होने कहा कि उन्होने अपने लिखे गीत को जनगीत और लोकगीत होते महसूस किया है।
उनसे बातचीत के दौरान उन्होंने अपने अनुभवो को साझा करते हुए बताया कि यह जनगीत उन्होने पाच “प ” को लेकर उत्तराखण्डआंदोलन को दिया, यह है पानी, पलायन, पर्यावरण और पर्यटन । और भी बहुत कुछ है इसमे।
“डा. अतुल शर्मा विविध आयाम” पुस्तक में बहुत से आन्दोलनकारी साथियों ने इस जनगीत के विषय मे लिखा जिनमें सुशीला बलूनी, कमला पंत, सुरेश भाई, अरण्य रंजन, जितेन्द्र अन्थवाल, जय सिह रावत, रमेश कुडियाल, जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’, नागेन्द् जगूडी, जहूर आलम, श्री गोपाल नारसन आदि शामिल रहे.
यह जनगीत एक इतिहास बयां करता है। लगभग वे सभी आन्दोलन कारी इस जनगीत से परिचित है। अब चाहे वे सत्ता मे हो या सत्ता मे नही हो। उदयशंकर भट्, रोशन धस्माना, जयदीप सकलानी, सुरक्षा रावत, राजेन टोडरिया ( सृति शेष), जगमोहन सिह नेगी, राम लाल खन्डूरी, रविन्द्र जुगरान, प्रदीप कुकरेती, प्रदीप भंडारी जिन्होंने अपनी गढवाली फिल्म मे इस जनगीत को शामिल किया और इसे आलोक मलासी ने गाया आदि अनेकानेक उत्तराखण्ड आंदोलन मे शामिल लोगो ने समय-समय पर इस जनगीत को प्रस्तुत होकर आन्दोलन किया।
अन्य बहुत से महत्वपूर्ण जनगीत रहे है पर आज संक्षेप मे हम जनकवि डाअतुल शर्मा के इस जनगीत पर चर्चा कर रहे है। फिर चाहे वह स्व. प्रकाश पन्त, गणेश जोशी या विनोद चमोली हो या फिर सुबोध उनियाल, मंत्री प्रसाद नैथानी हो। या स्मृति शेष वेद उनियाल हो या सुनील उनियाल गामा हो यह गीत सब ने आदर पूर्ण तरह से अपनाया था। यह प्रतीक के रुप मे नाम हैं वैसे तो कई और भी महत्वपूर्ण नाम है जो इस गीत से जुड़े रहे हैं।
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जनकवि डॉo अतुल शर्मा ने अपने इस जनगीत पर एक जबरदस्त पुस्तक तैयार की है ” कहानी एक जनगीत की। उसमें से कुछ नाम छुट सकते है पर उसमे सबको शामिल किया गया है। मेरे अनुरोध पर एक संस्मरण मे उन्होने बताया कि उत्तरकाशी मे एक जनगीतो को लेकर कवि सम्मेलन हुआ था। जिसमे गिर्दा, नरेन्द्र सिह नेगी, जहूर आलम, बल्ली सिह चीमा आदि शामिल थे। वहा लक्ष्मी प्रसाद नौटियाल, मदन मोहन विजलवान, प्रकाश पुरोहित “जयदीप” आदि थे। उत्तराखंड आंदोलन के दिन थे। तो जब मैने अपना जनगीत आन्दोलन से जुड़े लोगो से सुना तो मन भावुक हो उठा। वहां आदरणीय धर्मानन्द उनियाल पथिक जी भी शामिल थे। उस समय दिल्ली दूरदर्शन के समाचार संपादक श्री राजेन्द्र धस्माना और डॉo शेखर पाठक ने समय समय पर डॉo अतुल शर्मा के इस जनगीत का जिक्र किया है।
लडके लेगे भिड़ के लेंगे,
छीनके लेंगे उत्तराखंड,
शहीदो की कसम हमें है,
मिलके लेगे उत्तराखंड.
पर्वतो के गांव से आवाज उठ रही संभल,
औरतो की मुट्ठियां मशाल बन गयी संभल,
हाथ मे ले हाथ आगे बढ के लेगे उत्तराखंड,
आग की नदी पहाड़ की शिराओ मे बही,
हम ही तय करेगे कब कि क्या गलत है क्या सही,
विकास की कहानी गांव से है दूर दूर क्यों,
नदी पास है मगर ये पानी दूर दूर क्यो,
एक दिन नयी सुबह उगेगी यहां देखना,
दर्द भरी रात भी कटेगी यहां देखना,
जीतके रुमाल को हिलाके लेंगे उत्तराखंड।
आज उत्तराखण्ड बने इतने साल हो गये है। आज भी इस गीत को सुनते है तो नया ही लगता है। आज इस जनगीत का ओडियो विडियो रुप चैनल माउन्टेन ने एक सामाजिक जिम्मेदारी के साथ जारी किया है। इसे पदम गुसाई ने अपनी महत्वपूर्ण आवाज दी है और संगीत दिया है सुमित गुसाई ने। उत्तराखण्ड आंदोलन के शहीदो को नमन। सबके सपनो के उत्तराखण्ड बनने की दिशा मे आगे बढता रहे उत्तराखण्ड यही आशा है। तभी इस जनगीत को प्रस्तुत किया गया है। कृपया शेयर व कमेंट करके जनकवि डॉo अतुल शर्मा के लिखे इस जनगीत को जन-जन तक पहुचाये ऐसा सादर अनुरोध है।
गीत का लिंक – https://www.channelmountain.com/1788/?fbclid=IwAR0DFz-NXvFDYSI3wgxEPSRjkDMBpoj8B6c1Q1BsXnteJ-WGz4j2Km2Gwus