भराडसर ताल- एक रहस्यमयी दुनिया
मूर्ति राणा/बिशम्बर राणा
नमस्कार दोस्तों आज मैं आपको भराड़सर ताल उत्तरकाशी (उत्तराखंड) के बारे में बताने वाला हूं। यदि आप “भराडसर ताल उत्तरकाशी” के बारे में जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें.
भराड़ सर एक रमणीक ताल है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 16,500 फुट है, यह ताल उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से लगभग 260 कि.मी. दूरी पर स्थित है। यह उत्तरकाशी जिले में मोरी क्षेत्र के गोविंद पशु विहार में स्थित भराड़सर ताल उत्तराखंड का मानसरोवर कहलाता है। स्थानीय धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ एक दिव्य तालाब है ।
लोगों की मान्यताएं है कि इस रहस्य ताल के दर्शन करने से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। इस तालाब के दर्शन करने देश-विदेश के पर्यटक अप्रैल से नवम्बर माह तक आते जाते रहते हैं. यह तालाब उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित है। इस तालाब के आस पास का क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। यहां अनेक प्रकार के वन्यजीव देखने को मिलते हैं जैसे कस्तूरी मृग (राज्य पशु) भरल, काकड़, गुरुड आदि यहां अनेक प्रकार के सुगंधित पुष्प पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख पुष्प ब्रह्म कमल (राज्य पुष्प) फैन कमल जिसे स्थानीय भाषा में भेड गद्दा कहा जाता है, यह सबसे ऊंचाई पर पाए जाने वाला पुष्प है,
इसके अतिरिक्त ज्वैण, लेसर और जयरी नामक सुगंधित पुष्प भी पाए जाते हैं। यह सुगंधित पुष्प इस क्षेत्र के सौंदर्य को चार चांद लगाते हैं. स्थानीय लोग अपने कुल के देवी देवताओं को प्रत्येक वर्ष स्नान कराने भराड़ सरताल (झील) ले जाते हैं जिससे प्रसन्न होकर देवी देवता उनकी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं।
स्थानीय लोगों की कहानी के अनुसार एक बार एक बकरवाल (बकरियों को चुगाने वाला व्यक्ति) अपनी बकरियों को देखने वहां गया, उसने देखा कि वहां स्वर्ण महल है वह भागते भागते यह बात बताने अपने साथियों के पास गया, जब वे लोग वहां आए तब तक स्वर्ण महल गायब हो चुका था। वहां एक तालाब था यही तालाब भराड़ सरताल झील कहलाया तभी से स्थानीय लोग यहां प्रत्येक वर्ष जुलाई अगस्त माह में पूजा करने जाते हैं।
और एक और कहानी के अनुसार एक बार क्वार के लोग अपने देवताओं की चार डोलियां वहां लाए, उन्होंने उन चारो डोलियों को तालाब में मजबूत रस्सी से बांधकर डुबो दिया जब रस्सी वापस खींची गई तो चारों डोलिया गायब थी।
लोक कथाओं के अनुसार वहां जाने से लोगों के पाप धुल जाते हैं भराड सरताल (झील) की एक और विशेषता यह है कि यहां चर्म के रोगी ठीक हो जाते हैं. इसका कारण यहां दिव्य शक्ति का पाया जाना बताया जाता है. भराड़ सर से पहले कुकुर कांडी बहार कांडी और कुमाटा नामक बुग्याल आते हैं, इस तालाब में सूर्य के उदय होते ही रंग बिरंगे दृश्य देखने को मिलते हैं जिससे यह ताल पर्यटकों के लिए आकर्षण का बिंदु बनता है।
भराड़ सरताल (झील) जाने का मार्ग
भराड़ सर जाने के लिए मोरी ब्लॉक के नैटवाड बाजार से दो रास्ते हैं एक रास्ता फतेह पर्वत पट्टी से होते हुए और दूसरा रास्ता पट्टी पंचगाई से होते हुए. पहला रास्ता नैटवाड से धौला (रात्रि विश्राम ) भीतरी (सरताल), विशखुपडी, ढलडार, देववास, कुमाटा होते हुए भराड सर पहुंचता है जबकि दूसरा रास्ता जो जखोल, फिताडी, रेक्चा कासला व राला होते हुए देववासा पहुंचता है जहां से दोनों रास्ते मिल जाते है।
भराड़सर से हिमाचल प्रदेश की ओर जाने पर मांझीवन बुग्याल आता है, इसे मांझीवन फूलों की घाटी भी कहा जाता है. पहले यह बुग्याल उत्तराखंड का हिस्सा था, लेकिन वर्तमान में यह बुग्याल हिमाचल प्रदेश में चला गया है। यह बुग्याल काफी विवादित रहा है। इस बुग्याल में रंग-बिरंगे पुष्प पाए जाते हैं यह प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है।
स्थानीय लोक कहानियों के अनुसार इस बुग्याल पर पहले लिवाड़ी, राला, कासला गांव (पट्टी पंचगाईं) के लोगों का अधिकार था, लेकिन पानी की ढलान हिमाचल की ओर होने के कारण यह हिमाचल प्रदेश में चला गया। इस बुग्याल की प्राप्ति हेतु कासला राला लिवाड़ी और क्वार ( हिमाचल प्रदेश का सीमांत गांव) के लोगों के बीच कई बार खूनी जंग हो चुकी है।
ये दोनों पक्ष एक दूसरे के पक्ष की भेड बकरियों को बलपूर्वक छीनते थे जिन्हें स्थानीय लोगों द्वारा देवी देवताओं के मंदिरों में चढ़ाया जाता था. इस हेतु प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को अनिवार्य रूप से लड़ाई करने जाना पड़ता था और कई बार अपनी जान भी देनी पड़ती थी लिवाड़ी गांव के मंदिर में वर्तमान समय तक इसके साक्ष्य मिलते हैं। इसे एक प्रकार की धाड प्रथा कहा जाता था। धीरे धीरे यह प्रथा समाप्त हो गई अब दोनों पक्षों में पहले की अपेक्षा काफी मधुर संबंध हैं.