कूड़ा विचार
पंकज सिंह महर
हमारे देश में साफ-सफाई इतना बड़ा मुद्दा नहीं है,जितना बड़ा मुद्दा कूडे के निस्तारण का है,
शहरी और अर्ध शहरी इलाकों की सबसे बड़ी समस्या कूड़ा निस्तारण की है, जो कि पूरे देश में हो ही नहीं रहा है, यहां तक कि देश की राजधानी में भी यह व्यवस्था नहीं है, वहां भी कूड़े को एकत्र कर लैंडफिल साईट पर डम्प कर दिया जाता है और यह साईट लगातार कूड़े के ढेर को लादे-लादे भूगर्भ जल और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, एक स्टडी के अनुसार यह लैंडफिल पर्यावरण में मीथेन, नाइट्रस आक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों के सबसे बड़े उत्पादक हैं। वहीं दूसरी ओर बेल्जियम जैसा छोटा देश अपने कूड़े का ९९ फीसदी निस्तारण करता है। वे लोग कूड़े से बिजली बना रहे हैं और रिसाईकिल होने वाले कूड़े का उपयोग भी कर रहे हैं, बेल्जियम जरुरत पड़ने पर कूड़े का आयात तक कर रहा है। वहां कूड़े के प्रति लोगों कोइ बहुत जागरुक किया गया है, हर घर में तीन डस्ट्बिन होते हैं, गीला कूड़ा, सूखा कूड़ा और रिसाईकिल होने वाला कूड़ा, हर ३०० मीटर पर सरकार ने इसी अनुपात में डस्टबिन लगाये हैं, जिससे आसानी से कूडे का निस्तारण होता है। बेल्जियम की सरकार ने लोगों को रिसाईकिल के लिये भी प्रेरित किया है और प्रोडक्शन कम्पनियों को लोंग लाईफ आईटम बनाने के भी निर्देश दिये हैं। हैदराबाद में भी यह प्रयास किया जा रहा है, इसके लिये हमारे देश को भी प्रयास करना चाहिये, मैने स्वयं पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा में देखा है कि लैंडाफिल साईट पर कूड़ा जला दिया जाता है, जब्कि कूड़ा जलाने से डायोक्सिन और फ्यूरान जैसी जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है, जो सीधे ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती है। यह एक बड़ी समस्या है, जो आज इतनी भयावह भले ही न दिखती हो, लेकिन आने वाली पीढी के लिये बहुत खतरनाक है। इसके लिये बहुत कुछ तो सरकारों को ही करना होगा, लेकिन उससे ज्यादा एफर्ट हमें दिखाना होगा, कम से कम हम इतने से तो शुरुआत कर ही लें कि सूखा कूड़ा और गीला कूड़ा अलग-अलग कर लें, सरकार को अब इस क्षेत्र में गम्भीरता से विचार करना होगा, कूड़े के निस्तारण के लिये हर निकाय को अतिरिक्त बजट देकर कूड़ा निस्तारण के लिये प्रेरित ही नहीं मजबूर करना होगा और इसकी शुरुआत छोटे निकायों से करनी होगी। यह एक ऐसा विषय है, जिसके बारे में सरकार से ज्यादा हमें सोचना और करना होगा, क्योंकि हम अपनी आने वाली पीढी के लिये अच्छा भले ही न छोड़ जांये, कम से कम कूड़े के ढेर तो न छोड़ जांये।
उपरोक्त चित्र गाजीपुर, दिल्ली कूड़े के पहाड़ का है, २०११ में उपरोक्त विषय पर जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’ ने डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी