February 23, 2025



हिमालय मंथन

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महावीर सिंह जगवान 


पंकज महर 

आज सुबह जैसे ही न्यूज पेपर पढने के लिये उठाया फ्रंट पेज पर मोटी लाइनों मे लिखा है “हिमालय पर मंथन से निकलेगा अमृत” उत्सुकता से देखा तो सार रूप मे एक और लाइन मिली



‘शनिवार से शुरू होने जा रहे हिमालय दिवस के दो दिवसीय सम्मेलन मे विचारों के मंथन से सरकार उत्तराखण्ड ही नही हिमालयी राज्यों की समृद्धि के लिये अमृत खोजने की कोशिस करेगी। रोचक और आश्चर्य होता है उत्तराखण्ड के नीति नियन्ताऔं और सरकार के थिंक टैंक के निष्कर्ष से उन सरशब्द हिमालयी राज्यों को अमृत ढूँढने की बात हो रही है जिनकी विषम और विकट 16000 फीट तक सम्मपन्न संस्कृतियाँ और मुस्कराते गाँव हैं। जम्बू कश्मीर की राजधानी समुद्रतल से 1700 मीटर की ऊँचाई पर है, अशान्ति और उपद्रव ने भले ही इस राज्य को असहज बनाया हो इसके वावजूद 16000 फीट की ऊँचाई पर लद्दाक और कारगिल जैसे विकट भू भाग सम्मन्न और आत्मनिर्भर दिखते हैं। हिमांचल की राजधानी शिमला 6990 फीट की ऊँचाई पर है इसके विकट और दुरूह इलाके बारह हजार फीट की ऊँचाई से ऊपर तक हैं यहाँ के गाँवो मे सम्मपन्नता है अपनी संस्कृति और अपने उत्पादों की धूम है, सिक्किम की राजधानी गंगटोक 1600 मीटर की ऊँचाई पर इसके विषम भू क्षेत्र खुशहाल और आबाद हैं, अरूणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर 750 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, इस राज्य के औसतन सभी भू भाग शसक्त हैं। इनको अमृत देने की आभासी पहल करने वाले हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून 300 से 400 मीटर समुद्रतल की ऊँचाई पर स्थित ट्राॅपिकल क्षेत्र मे है। इसका एक चौथाई मैदानी भूभाग भले ही विलायत जैसा लगता हो लेकिन तीन चौथाई सबट्राॅपिकल क्षेत्र और टेम्प्रेट जोन वीरान और विकट दुरूह है। हाँ इस पर्वतीय क्षेत्र मे जिला और ब्लाॅक तहसील मे हल्की चहल पहल देखी जा सकती है लेकिन गाँव के प्रधान तक गाँवो मे नही मिलते। खंडहर होते भवन बन्जर खेत खलिहान मानव विहीन गाँव अमृत की बाट जोह रहे हैं ताकि विकास और सम्मपन्नता के अंकुर फूटे इस हिमालय की गोद में। हमारा विनम्र निवेदन है इस मंथन से जो अमृत निकले उसे पहले अपने ही राज्य मे छिटकने का कष्ट करे सरकार। हिमालय को हिमालय के लोग ही सहेजते हैं सरकार तो बजट खर्च करती है कागजो पर यदि ऐसा नही तो शक्ल क्यों नही बदली इन हिमालय क्षेत्रों की।

विरेन्द्र सिंह की टिप्पणी


सब कुछ प्लान है, ज्ञान है, तकनीक है लेकिन, इसे लागू करने के लिए तन, मन और धन नहीं है। उत्तर पूर्व हिमालय राज्यों से अच्छा उत्तराखंड है। हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड से पहले है। भारतीय हिमालयन क्षेत्र अपार संभावनाएं के लिए ही रहे हैं। बस कहते रहो की

पंकज सिंह महर का आलेख 




हिमालय दिवस है आज, बड़ा शोर मचा है। साहब बहादुर और हुक्मरानों के बधाई सन्देश आ रहे हैं, प्रतिज्ञा ली जा रही है और कल से यह सब खत्म हो जायेगा, हिमालय फिर अकेला रह जायेगा। मेरा मानना है कि हिमालय तब बचेगा, जब हिमालय बसेगा, हिमालय की तलहटी में उसको जानने, समझने वाले लोग बसेंगे, तो हिमालय खुद बच जाएगा। इसलिए हिमालय बचाओ का नारा अधूरा है। हमें अब हिमालय बसाओ, हिमालय बचाओ के नारे के साथ आगे आना होगा। हिमालय की तलहटियाँ सरकारों की उपेक्षा के कारण लगातार खाली हो रही हैं, हम वहां के वाशिंदों को मूलभूत सुविधायें नहीं दे पा रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, स्थानीय संसाधन आधारित रोजगार और उसका समुचित विपणन, परिवहन और संचार, इतनी भी सुविधा उन्हें नहीं मिल रही। खासतौर से उत्तराखण्ड में अनियोजित विकास हो रहा है, विकास का विकेंद्रीकरण नहीं हो रहा है, इस वजह से हिमालय की तलहटी सूनी होती जा रही है। नारों, सेमिनारों, प्रतिज्ञाओं से हिमालय नहीं बच पायेगा, हो सकता है कुछ लोगों की दुकानें चल जाए या कुछ लोगों को पुरस्कार मिल जाये।

संजय चौहान की टिप्पणी

यह बहुत सही इंगित किया है भाई आपने कुछ लोग पुरूस्कार और कथित सम्मानों के लिए धरती मां को एक साधन मात्र समझ लेते हैं, ऐसे चेहरों को पहचान लेना चाहिए, जो नीरह जनता के नाम पर अपनी कोठियां, अट्टालिकाओं में बदल रहे हैं. बहुत बहुत मंथन और सिर्फ मंथन पूर्व में आवश्यक हैं. वैसे ‘मंथन समितियों’ की भी कमी नहीं है. जय हिमाल.

हेमराज की टिप्पणी 

दाज्यू बहुत बढ़िया, एक अस्कोट से आराकोट तक भी यात्रा आयोजित होती है कुछ तथाकथित बुद्दिजीवियों द्वारा बड़ा ही गहरा अध्यन करते है भल ये लोग यात्रा के दौरान ताकि इनका अध्यन बाद में काम आ सके पहाड़ के लिए और दूसरी यात्रा तथाकथित हिमालय बचाओ अभियान भी चलती है भल बुद्दिजीवियों के माध्यम से इन यात्राओ से कुछ फायदा हुवा होगा क्या पहाड़ को या किसी आवार्ड के लिए 

हेम गैरोला की टिप्पणी 

On “Himalaya Diwas” (don’t know when, why and from where it has emerged…)….sharing a nice poem of Winston J. Creado :

‘The Rape’

Do you not hear the cry

Ascending from these ravaged hills ?

They cry out in their nakedness –

Oh you have stripped from me

My chaste coverlet

Of leaf and bud and flower and brook

And bird – sustaining branch !

O you ! ungrateful man – you have despoiled –

Struck at the root of your own sustenance and birth ! !

Yes, you have raped your own most beauteous

And bounteous Mother – Earth !

 

Photo – Hem Gairola (From Tarakot, Junga village, Bhramkhal,Uttarkashi)

& Mahavir S. Jagwan