सफाई कैसे होगी ?
रमेश पांडेय
स्वक्षता की समस्या का असल कारण क्या है। पहाड़ों से भी उचे ढेरों के रूप में तब्दील हो गया कचरा बनता कहां है और लोगों तक यह कचरा पहुंचता कैसे है।
देश की राजधानी दिल्ली में कचरे के पहाड़ में स्खलन होने और स्खलन की वजह से लोगों के मरने की खबर तो मीडिया ने खूब दिखाई और पढ़ाई पर पर मीडिया के किसी हिस्से ने यह बताने की हिम्मत नही की कि आंखिर यह कचरा बनता कहां है और लोगों तक पहुंचता कैसे है। 25-30 साल पहले की ही बात तो है तब मेरे गांव में कंघी से निकले सिर के बालों के अलावा कुछ भी ऐसा नही होता था जिये कहां फेंकें की समस्या होती थी। बचा खुचा खाना गाय बछड़ों की दोंण पर चला जाता तो बांकी पर्स (खाद) के थुपुड़ में खाद बनने के लिये फैंक दिया जाता। इधर 25-30 ही सालों बाद किसम किसम का कचरा सहर से लेकर सुदूर गांवों तक अगर सबसे बड़ी समस्या बन कर खड़ा हो गया है तो चिन्ता हमें होनी चाहिये कि यह कचरा हम तक कैसे चहुच रहा है जिसके निस्पादन का कानूनी कर्तव्य हमारा तय कर दिया गया है। दगड़ियो यदि आप ने थोड़ी भी माथा पच्ची कर ली हो कि समस्या बन गया यह कूड़ा बनता कहां है और हम तक पहुत्रता कैसे है तो इत्ती सी बात तो समझ में आ ही गई होगी कि यह सारा कचरा बड़े बड़े धन्ना सेठों की बड़ी बड़ी कम्पनियों में बनता है जिसे हम कीमत चुका कर अपने घर तक लाते हैं। कम्पनियां इस कचरे को हम तक पहुचाने के लिये बड़े बड़े और लुभाने वाले विज्ञापन हमें सिखाती और पढ़ाती हैं। कम्पनियां ऐसा इसलिये करती हैं कि कम्पनियों को इस से बहुत बड़ा मुनाफा होता है। कहने का मतलब यह कि जो कचरा हमरे लिये सबसे बड़ी समस्या बन गया है वह कम्पनियों के मुनाफे का साधन है। इससे बड़ा गोरखिया राज और क्या होगा कि कचरे से मुनाफा कमायें कम्पनियां और कचरे के निस्तारण का कानूनी दाइत्व थोप दिया जाये निकायों और पंचायतों पर। निकायें और पंचायतें भी हमारी जेब काट कर ही तो यह कचरा इधर से उधर फैंकेंगी। निकायें चाहें तो एक काम कर सकती हैं कि जिस कम्पनी का का जितना माल उनके क्षेत्रों में बिकता है उतना टैक्स उन कम्पनियों पर लगायें तथा सरकार को निर्देशित करें कि डम्पिंग क्षेत्र का चयन का कानूनी दाइत्व जिला प्रशासन का नही वरन राज्य सरकार और अदालतों का ही निर्धारित किया जाए।