सच्चे ग्रामवासी – गावं वासी
डॉ. सुभाष चन्द्र थलेडी
उत्तराखंड के पूर्व मंत्री और लोकप्रिय राजनेता श्री मोहन सिंह रावत गांववासी जी ने भले ही प्रदेश की राजनीति से हाथ खड़े कर दिए हों, लेकिन वे सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक जागरण के लिए लगातार काम कर रहे हैं। हरिद्वार महाकुंभ के दौरान उत्तराखंड के देवी-देवताओं की भव्य देवड़ोली-यात्रा उनकी ही देन है।
कुछ साल पहले यानि 2015 से उन्होंने बदरीनाथ से लगभग 57 किमी. दूर उच्च हिमालय के माणा दर्रा स्थित “देवताल सीमा दर्शन-यात्रा” की शुरुआत करवाई थी। माना जाता है कि पूर्व में सीमांत गांव के लोग देवताल यात्रा पर निरंतर जाते थे लेकिन कालांतर में किन्हीं कारणों से यह यात्रा बंद करवा दी गई। जिला प्रशासन, आईटीबीपी और सेना से जूझते हुए आखिर गांववासी जी के प्रयासों ने रंग दिखाया और अब लगातार यह यात्रा प्रति वर्ष निर्बाध रूप से संपन्न हो रही है।
यात्रा-स्थल भारत-चीन बार्डर स्थित “माणा पास” पर होने के कारण संवेदनशील है। यहां किसी भी सिविल व्यक्ति को जाने से पहले “इनर परमिट” की जरूरत होती है, जो चमोली जिला प्रशासन जारी करता है और आर्मी से भी अनापत्ति की जरूरत होती है। भारत के आखिरी गांव माणा से लगभग 50 किमी. दूर विश्व के सबसे ऊंचाई की सड़कों में से एक इस मार्ग से होते हुए देवताल पहुंचा जा सकता है। माना जाता है कि इसी ताल से सरस्वती नदी का उद्गम हुआ जो कि माणा गांव के पास अलकनंदा में मिलती है। इस मार्ग पर सेना के वाहनों के अलावा सार्वजनिक वाहन उपलब्ध नहीं होते हैं।
हर साल सीमा दर्शन-यात्रा में तीर्थ यात्रियों की संख्या बढ़ रही है। इस बार यह पांचवीं यात्रा 19 सितंबर 2019 को राधाष्टमी के दिन बदरीनाथ धाम से शुरू हुई। यात्रा को श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति, सेना और आईटीबीपी का सहयोग मिल रहा है। भगवान श्री बदरीनाथ जी के ध्वज के साथ यह यात्रा आगे बढ़ती है। लगभग 18 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान तिब्बत के अति निकट है। देवताल सरोवर में सभी तीर्थ यात्री पूजा-अर्चना करते हैं और स्नान का पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। इस बार यात्रा में लगभग पांच दर्जन से भी अधिक यात्री शामिल हुए। श्री गावंवासी जी की सक्रियता ऐसी ही बनी रहे यह कामना है। उनके स्तुत्य प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए।
श्री गांववासी का कहना है कि भारत के सभी सीमान्त तीर्थो का संरक्षण हो तथा प्रकृति व देवत्व के साथ इन विरासतों का अवलोकन किया जाना चाहिए। साथ ही सच्चिदानन्दमय अनुभूतियाँ को प्राप्त करने के लिए ऐसी यात्राएं सतत होनी चाहिए।
लेखक – उत्तराखंड दूरदर्शन के निदेशक रहे है
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