April 7, 2025



हिमालय का चिंतन

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महावीर सिंह जगवान 


जन गण मन के भारत का मुकुट है हिमालय


हिमालय प्रकृति प्रदत्त नेमतों का विशाल रोचक और अनूठा हिम शैल भू क्षेत्र तो है ही, साथ ही इसकी गोद मे बसी संस्कृति इतिहास आध्यात्म और जीवन पद्धतियों का अद्वितीय बसेरा है। जम्मू कश्मीर हिमांचल उत्तराखण्ड से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक फैला हिमालय ऊँचे हिम शैलपर्वतों हिमनदो, जैवविवधता और हिमालयी वन्यजीव जन्तुऔं, पशु पच्छियों के साथ बहुमूल्य जड़ी बूटियों, पुष्पों, बनस्पतियों से लकदक, आस्था और आध्यात्म के विराट केन्द्रो को समेटे भब्य और आकर्षक मानवीय संसकृतियों का बड़ा केन्द्र है। यहाँ पग पग पर पानी और कोष कोष पर भाषा बोली के बदलने के साथ संस्कृतियों की विविधता अद्वितीय और आकर्षकता के साथ रोचक भी है। हिमालय स्वयं मे एक जीवन का श्रोत है और इसकी ढलानो घाटियों मे पलती बढती संस्कृतियों का विरला संगम हिमालय के प्रति अपने अटूट रिश्ते को स्पष्ट बयाँ करता है। उत्तराखण्ड के परिदृष्य मे हिमालय को जितना सम्मान और सहेजने की पहल होनी चाहिये थी वह आशंकित करती है। यहाँ स्थित विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हिमालय की जीवन्त महत्ता के प्रतीक हैं। हिमनदों की प्रचुरता, पावन सदानीरा नदियों के उद्गम, जैवविवधता की सम्मपन्नता, जड़ी बूटियों और पुष्पों से भरे बुग्याल, एशिया के बड़े ऑक्सीजन सप्लायर हरित वनो की श्रृँखलायें। स्थानीय निवासियों की बारहनाजा फसली खेती, विकट और दुरूह जीवन शैली मे अपने को ढालने की जीवट शसक्त जीवन शैली। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह क्षेत्र आजादी के बाद से ही विकास की मुख्य धारा मे आने के लिये छटपटा रहा है। इसी छटपटाहट की परिणति से, यहाँ के वशिन्दों के त्याग और बलिदान से, इस विषम भौगोलिक परिस्थिति और दुरूह के साथ विकट भू क्षेत्र को नये राज्य का अवसर मिला।


हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा लक्ष्य था, हिमालय की सेहत और पर्यावरण संरक्षण के सर्वोच्च मानक का सम्मान करते हुये प्रकृति सम्मत विकास की किरण से यहाँ के भूभाग के साथ मानवीय सेहत अवसर और शसक्तीकरण की पहल करना। हिमालयी राज्य बने सत्रह वर्षों के बाद भी उत्तराखण्ड यह संकल्प निश्चित न कर सका उसे किस नीति के तहत बढना है। जिसकी परिणति हिमालय की गोद मे बसे तीन चौथाई भूभाग मूलभूत सुविधाऔं और प्रकृति प्रदत आपदाऔं के कारण अधिक संकुचित और मानव विहीन हुआ है। पर्यावरणीय और भौगोलिक परिस्थितियों को नजरन्दाज कर विकास की गंगा को कागजी पैटर्न ने अधिक नुकसान पहुँचाया है। ऊँचे हिम शैल पर्वतों का चटकना, बुग्यालों का सिकुड़ना और दरकना, बहुमूल्य उपयोगी और जैवविवधता की सम्मपन्नता बनाये रखने वाली जड़ी बूटियों का निरन्तर विलुप्त होना, घने और उपजाऊ बनो का सिकुड़ना, खेती किसानी की जमीनों मे उपजाऊ मिट्टी सतह की छीर्ण होना, मानव और कृषि पर जंगली जानवरों का संघर्ष, अपने बीज और अपनी खाद के सम्मन्न श्रोतों का अकाल पड़ना, पशुधन से सम्मपन्नता का ह्रास, जल श्रोतों और गाड गदेरों का टूटता जीवन, फसल चक्र का विलुप्त होना, आजीविका के अवसरों का अकाल, टूटते भवन सिकुड़ते गाँव और इकतरफा पलायन करते लोग इस राज्य की मंसा और हिमालय के गौरव को चुनौती दे रहे हैं। उत्तराखण्ड हिमालय दिवस को भब्यता और गम्भीरता से मना रहा है जिसमे उत्तराखण्ड सरकार भी गर्मजोषी से शामिल है फिर भी हम पहाड़ियो और हिमालय वासियों को सदैव एक ही चिन्ता सालती है, पीड़ा हमारी दुनियाँ के लिये थिसिस बन गई, जरूरत हमारी नेताऔं के लिये एशगाह बन गयी, आँसू हमारे समाज सेवकों के लिये पुरूस्कार बन गये, कंठ प्यासे हमारे ब्यसाइयों के लिये बाँध बन गये, दरकता सिसकता जीवन चन्द लोंगो के लिये भब्य आयोजन बन गया, टूटते भवन खाली होते गाँवो से पुस्तकें भर गई, हिमालय की तस्वीरों से हर घर अटा पड़ा है, हिमालय की पावनता से पूरी सृष्टि महकती है, फिर हम सदा सदा से अवाक स्तब्ध सहमें और टंगे क्यों रहते हैं खूटियों से इसका भी तो समाधान हो।

लेख़क युवा सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं