नीति आयोग उत्तराखंड सन्दर्भ

महावीर सिंह जगवाण
नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) की स्थापना 1 जनवरी 2015 को हुई।
विश्व पटल पर भारत के सर्वांगीण विकसित स्वरूप की कल्पना को साकार करने के लिये, बहुप्रतिभा के धनी थिंक टैंक द्वारा राष्ट्र और राज्यों के लिये दिशा और नीति के निर्धारण के प्रमुख तत्वों के बारे मे नियोजन और जमीनी पहल का समग्र स्वरूप ही नीति आयोग है। नीति आयोग के मुख्य लक्ष्यों मे शसक्त ग्राम ही शसक्त राज्य और शसक्त राज्य ही शसक्त राष्ट्र का निर्माण करते हैं। इसी तथ्य की महत्ता स्वीकार कर राज्यों के साथ सतत आधार पर संरचनात्मक सहयोग की पहल और तंत्र के माध्यम से महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संघवाद को बढावा देना है। मोदी सरकार की शुरूआत से एक घोषणा रही है किसानों की आमदनी दुगना करना ताकि किसान अपनी आर्थिक समस्याऔं से मुक्त हो सके और विकास की मुख्यधारा मे अपनी जगह बना सके।इसी संदर्भ को नीति आयोग ने अमली जामा पहनाने की पहल की है। हम यहाँ नीति आयोग के निष्कर्ष और उत्तराखण्ड के परिदृष्य मे इन योजनाऔं के प्रभाव पर भी प्रकाश डालने की छोटी पहल करेंगे। नीति आयोग का मानना किसानो को आमदनी दुगनी करने के लिये धान गेहूँ मक्के की फसलों को छोड़कर सब्जी फल फूल उत्पादन की ओर बढें।साथ ही मुर्गी पालन, मत्स्य पालन, बकरी पालन, सुँवर पालन कर 2022 तक किसान अपनी आय को दुगना कर सकता है। नीति आयोग के एक्सपर्टों की राय है भारत के लोगों का आर्थिक शसक्तीकरण हुआ है और उनके खान पान जीवन शैली मे भी बदलाव आया है सीधे शब्दों मे कहें एक्सपर्टों की राय है मोटे अनाज पर निर्भरता घटी है। अब गाँवो से लेकर छोटे कस्बों और शहरों मे सब्जी फल, अण्डे और माँसाहारी उत्पादों की भारी माँग और बाजार बढ रहा है साथ ही दूध मक्खन चीज पनीर की माँग तेजी से बढी है। यहाँ रोजगार और आर्थिकी के बड़े अवसर हैं। नीति आयोग का कहना पशुपालन इस समय दुनियाभर मे तेजी से बढता क्षेत्र है लेकिन भारत मे बड़ी चुनौती चारा है। समय रहते चारे की उपलब्धता नियोजित की जाय और उच्च गुणवत्ता वाले पशुऔं की ब्रीडिंग तकनीकी का समावेश किया जाय। किसानो को कृषि ऋण के साथ उच्च तकनीकी, विपणन सुविधायें, कोल्ड स्टोर और बड़े स्टोरों तक किसानो के उत्पाद की कौशलता पूर्वक चैन की बात कही गई ताकि किसानो के लाभ की सुरक्षा सुनिश्चित हो। स्पष्ट है आज भी खेत खलिहान और पशुधन रोजगार के बड़े अवसरों की पूर्ति की क्षमता रखता है। इक्कीसवीं सदी मे नीति आयोग जिस विषय को गम्भीरता से ले रहा है भारत के लोंगो ने यह पहल दशकों पहले शुरू कर दी थी, और बड़े लक्ष्य को प्राप्त भी किया। हाँ जो उच्च सूचकांक प्राप्त करने मे हम पिछड़े हैं उसके लिये सरकारें ही जिम्मेदार थी।
विभिन्न राज्यों के ग्रामीण भारत को देखने का अवसर मिला उनकी पारम्परिक और आधुनिक तकनीकियों को जो शक्तिशाली मिश्रण है उसमे आज भी सरकारों का सहयोग पाँच फीसदी भी नही। आसाम राज्य के बोगाँई गाँव मे रहने का अवसर मिला आज से दो दसक पहले, यहाँ के लोग स्वयं के लिये हस्तकरघा निर्मित वस्त्रों मे सम्मपन्न थे, दैनिक जरूरतों की वस्तुऔं के लिये स्थानीय बाजारों मे अपने उत्पादों के विक्रय और विनिमय से पूर्ति करते थे। रोजगार के अवसरो की क्षीर्णता के वावजूद जीवनशैली मे दिनचर्या को उत्पादक बनाने का विरला और आदर्श माॅडल है। पश्चिम बंगाल के दार्जलिंग जनपद के कालिम्पोंग क्षेत्र मे विश्व स्तरीय नर्सरियाँ और जड़ी बूटी की खेती जिसका आज भी नब्बे फीसदी निर्यात होता है। यह आजीविका का बड़ा श्रोत हो सकता है और कम श्रम मे बड़े लाभ की गारण्टी देता है।
हिमालयी राज्य सिक्किम अस्सी फीसदी से अधिक राजकीय सेवाऔं मे और वानिकी के साथ बड़ी इलायची की खेती, राज्य स्तरीय उत्पादोके स्टाॅल, पर्यटन, पन विजली ने एक नई आर्थिकी का माॅडल दिखाया है।
श्रमेव जयते का संकल्प हिमांचल मे दिखता है। इस राज्य के विकास माॅडल को आप इसी से समझ सकते हैं मक्का उत्पादन मे नम्बर वन उत्पादक कर्नाटक को पीछे कर अपना कब्जा जमा लिया है। सब्जी और फल उत्पादन मे पूरे भारत मे श्रेष्ठ पंक्ति मे खड़ा हिमांचल सभी के लिये प्रेरणा श्रोत है। दुग्ध उत्पादन मे भी हिमांचल अपने राज्य के लिये आत्मनिर्भरता की ओर बढ रहा है। उत्तराखण्ड राज्य के परिदृष्य मे नीति आयोग की मंशा का जमीनी अवतरण कठिन है। उत्तराखण्ड का तीन चौथाई भूभाग पर्वतीय विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला राज्य और भारत सरकार की विकास की दृष्टि से कम प्राथमिकता वाला भू क्षेत्र है जबकि एक चौथाई मैदानी भू भाग बढते मानवीय दबाव और कंक्रीट के जंगलो और विकास की भेंट के कारण उपजाऊ जमीनो को साठ फीसदी से अधिक निगल चुका है। उत्तराखण्ड मे पैंसठ फीसदी से अधिक जंगल हैं यहाँ जंगली जानवरों का मानव और खेती से सीधा संघर्ष है। तीन चौथाई पर्वतीय जनपदों मे साठ से अस्सी फीसदी तक कृषि भूमि बन्जर है। मानवीय और प्रतिभा के एकतरफा पलायन के साथ प्रकृति प्रदत्त आपदाऔं, सरकारों के गैरजिम्दार निर्णयों ने इन सम्भावनाऔं से भरे भू क्षेत्र को वीरान बनाने की ओर बढा दिया है। यहाँ छोटी छोटी कृषि जोत, चारे के अकुशल प्रबन्धन के साथ विकास की योजनाऔं मे जबावदेही के अभाव ने इस भू क्षेत्र मे अवसरों का बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। शिक्षा मे अब्बल यह राज्य युवाऔं मे उद्यमिता और स्वरोजगार के नये क्षेत्र स्थापित करने मे असमर्थ रहा।यहाँ फल सब्जी मोटे अनाज खाद्य जिंसो के साथ मांसाहार और दुग्ध उत्पादों का दो लाख करोड़ से बड़ा बाजार है जिस पर तीस फीसदी नकली उत्पादों का कब्जा है । साठ फीसदी अन्य राज्यों से आयातित और दस फीसदी ही राज्य मे उत्पादित उत्पाद से पूर्ति होती है। सब्जी और फलों के उत्पादन के साथ खेती मे बन्दर और सुँवरों और जंगली जानवरों से प्रतिवर्ष हजारों करोड़ के कृषि उत्पादों का घाटा उत्तराखण्ड के तीन चौथाई पर्वतीय भू भाग को हो रहा है। चारे के लिये प्रकृति प्रदत्त श्रोतो पर लैंन्टाना, गाजर घास और काले बस्या का विस्तार एक त्रासदी की तरह हो रहा है। यह प्रजातियाँ उपजाऊ पोष्टिक चारे की प्रजातियों को नष्ट कर रही हैं। चुनौतियाँ बड़ी है इसके वावजूद समाधान के विकल्प भी हैं। हमें दसवीं और बारहवीं तक की शिक्षा मे कृषि, पशुपालन, औद्योगिकी की प्रारम्भिक माड्यूल का समावेश कर देना चाहिये। सरकार और जिम्मेदार संस्थाऔं को नीति आयोग के विजन को प्रदर्शित करने वाले आकर्शक लाभकारी माॅडलों को गाँव समाज के बीच स्थापित करना चाहिये।यह प्रेरणा और नया करने की सीख देने वाला नजदीकी श्रोत हो।
विकास के ब्ल्यूप्रिन्ट को जमीनी शक्ल देने के लिये हेरदेख माॅनीटरिंग और जबावदेही के साथ लक्ष्य सुनिश्चित हो। एक ही प्रकृति के विभागों का एकीकरण हो ताकि सिंगल विण्डो सिस्टम से जमीनी प्रगति और लक्ष्य प्राप्ति सुस्पष्ट हो। उद्योगों के उत्पादन पर दी जा रही सब्सिडी या सहयोग की तरह कृषि उत्पादों के उत्पादन पर प्रोत्साहन या उत्पादन सुरक्षा राशि तय हो। कृषि और कृषि उत्पादन को उद्योग की तरह भूमि और संशाधनो का इमानदारी से आवंटन बढे। कृषि और कृषि सम्बन्धित उत्पादों के सहायक जैविक कीटनाशक, परिस्कृत चारा, जैविक खाद, कृषि उत्पादन की पैकेजिंग इन सभी के उत्पादन और उपलब्धता उपयोग क्षेत्र के नजदीक सुनिश्चित हो। वन्य जीव सुरक्षा की शसक्त ब्यवस्था विकसित हो। कृषि बीमा की एप्रोच छोटे से छोटे किसान तक सरल स्वरूप मे पहुँचे। कृषि ऋणो को सरल और कृषिकरण के आधार पर ही वितरण हो जिसमे ऋण के साथ बीमा सुनिश्चित हो। उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपदों मे कृषि उद्यान और श्वेत क्रान्ति हेतु चकबन्दी की अवधारणा को पूर्ण करने हेतु आरक्षित वन क्षेत्रों से भी थोड़ा हिस्सा यहाँ के वशिन्दों को आवंटित करना होगा। विश्व मे उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपदों से छोटे छोटे देश विकसित और सम्मपन्न हैं इनकी भौगोलिक संरचना यहाँ से भी विकट और दुरूह है।आज उत्तराखण्ड के इन पर्वतीय जनपदों के पास विश्वस्तरीय पढे लिखे विषय विशेषज्ञों की भरमार है, मानवीय शक्ति और अवसरो का बड़ा बाजार है। जरूरत है कौशलता से नियोजित विकास की किरण गाँवों से राज्य और राष्ट्र के उत्तकर्ष मे बड़ा योगदान दें।