November 23, 2024



कमल दा – समाज के विजिटिंग प्रोफेसर

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जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’


यह बात 1992 के आसपास की होगी, गोपेश्वर के ठीक सामने पहाड़ी की चोटी पर एक गांव है दोगडी कांडई।


यहां पर चिपको आन्दोलन के महत्वपूर्ण सिपाही आनन्द सिंह बिष्ट जी ने एक विशाल वन पंचायत सम्मेलन का आयोजन किया था। जाखेश्वर शिक्षण संस्थान के इस आयोजन में युवा सामाजिक कार्यकर्ता हेम गैरोला का महत्वपूर्ण योगदान था। हेम भाई के आमंत्रण पर मैं भी खड़ी चढ़ाई पार कर गांव के स्कूल में पहुंच चुका था। गले में तीन भारी भरकम कैमरे लटकाये व पीठ पर पिट्ठू हर कोई मुझे अलग दृष्टि से देख रहा था। सम्मेलन में पूरे उत्तराखंड के जाने माने समाजसेवी, वन पंचायत सरपंच, महिला कार्यकत्री, पत्रकार इकट्ठे हो रखे थे। मैंने सम्मेलन की खूब फोटोग्राफी की। उस समय तक मुझे फोटोग्राफी का जूनून सवार हो चुका था। सन 1988 के दौरान ही मैं नैनीताल समाचार, पहाड़, अनिकेत, युगवाणी, पर्वतीय टाइम्स से लेकर हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, संडे मेल, कादम्बिनी, अमर उजाला, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा आदि पत्र-पत्रिकाओं में स्वतन्त्र रूप से लेखन व फोटोग्राफी के रूप में जुड़ चुका था। साथ ही पढ़ाई भी चल रही थी। 1989 के दौरान मुझे नैनीताल समाचार की एक वार्षिक बैठक में शामिल होने का मौका मिला वहीं मेरी पहली बार डाॅ0 शेखर पाठक, गिरदा, अनूप शाह, गोविन्द पंज राजू, सतीश जोशी, महेश दा आदि लोगों से मुलाकात हुई थी। इस बैठक में मै एक शख्स को ढूंढ रहा था जिनकी फोटोग्राफी का मैं कायल था। उनके कई फोटोग्राफ, लेख फीचर में पत्र पत्रिकाओं में देखता रहता था। वह शख्स थे कमल जोशी, पहाड़ के फोटो संपादक। अनूप शाह जी, थ्रीस कपूर ये दो तीन नाम मेरे जेहन में कैद थे। लेकिन नैनीताल में कमल दा से मुलाकात नहीं हो पायी।


खैर पहला दिन दोगडी कांडई गांव में मजे में बीती। दूसरे दिन की शुरूआत गुनगुनी धूप से हुई। हल्की ढंड शुरू हो चुकी थी। सामने की पहाड़ियों पर बर्फ चमकने लगी थी। गोपेश्वर बहुत सुन्दर लगता था। सम्मेलन प्रारम्भ होने में अभी समय था। गोपेश्वर से पत्रकारों का एक बड़ा दल अभी-अभी पंहुचा था। थोड़ी सी मुलाकात में ही सब जान पहचान के निकले। लेखन से यह फायदा मिलता है कि आपकी विरादरी के लोग आपको पहचानने लगते है। कुछ देर बाद गले में दो कैमरे लटकाये सिर में हेट पहने एक सख्स हांफते हुए स्कूल में पहुंचे तो मैने उन्हे तुरन्त पहचान लिया। पावं छुए व परिचय दिया तो उन्होने मुझे गले लगा लिया। अरे छोटू तू ये मत सोचना में तुझे नहीं जानता। नैनीताल समाचार आदि में मै तेरे लेख पढ़ता रहता हूं। ये कोई और नहीं कमल जोशी थे। फिर तो पूरे सम्मेलन में हम दोनों अलग ही नहीं हुए। साथ खाना, चाय पीना, जंगल घूमना, लोगों से बातें करना आदि । उस वक्त मैं फोटोग्राफी करता तो था लेकिन यह सब स्वयं प्रयोग करके। मेरा कोई गुरू नहीं था। मैने कमल दा से आग्रह किया कि मुझे भी कुछ सिखायें तो उन्होने कहा सामने जंगल चलते है। रास्ते भर वो मुझे फोटोग्राफी के टिप्स देते रहे। फूल का फोटो कैसे खींचना है, पत्ती का, गांव का, वर्फीले पहाड़ों का कई फ्रेम बताये। एक फ्रेम उन्होने ने मुझे ऐसा बताया कि सिर्फ वर्फीली पहाड़ी की सादी फोटो खींचने के बजाय उसे पेड़ों, पत्तियों के झुरमुटो से खींचोगे तो फ्रेम भरा हुआ नजर आयेगा। फोटोग्राफी की इस ट्रिक ने मेरी फोटोग्राफी की दिशा व सोच ही बदल डाली।

कमल दा फोटोग्राफी के पहले अनौपचारिक गुरू बन चुके थे। लेकिन उन्होंने मुझे हमेशा अपने दोस्त की तरह समझा। इसके बाद तो मुलाकातों का सिल-सिला चलता रहा। 1994 में असकोट-आराकोट अभियान के दौरान श्रीनगर में कार्यक्रम के संयोजन की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई थी। बहुत अल्प समय में मैंने कार्यक्रम की रूप-रेखा ऐसी बनाई की गढ़वाल विश्व विद्यालय के काॅमन हाॅल में 400 से ज्यादा लोग दल से स्वागत के लिए खड़े थे। कमल दा ने बोला जेपी इतनी भीड़ कैसे इकट्ठी कर ली। मैंने कहा सब लोग आपको, शेखर पाठक जी व दल के सेलिब्रिटीज को देखने सुनने आये थे। वो हंसने लगे, कहने लगे इतनी भीड़ हमें यात्रा के दौरान बहुत कम जगह देखने को मिली। तू भी तो आज सेलीब्रिटी बन गया। बड़े हल्के-फुल्के मूड में हंसी-मजाक में अपनी बातों को कमल दा कितने सहज ढंग से कह जाते थे पता ही नहीं चलता था। उन्होने अपनी प्रसिद्धि का कभी ढोल नहीं पीटा। महिला समाख्या, हिमालय दिवस, हेस्को, पहाड़, धाद न जाने कितने कार्यक्रमों में हमारी मुलाकातें होती रहती थी। बात अधिकतर फोटोग्राफी पर ही होती थी। 2000 के पश्चात मेरा रूझान वीडियो फोटोग्राफी की ओर बढ़ने लगा था। डाॅक्यूमेन्ट्री फिल्मों के निर्माण का जूनून बढ़ चला था। मैं वीडियो कैमरा बेहतर चलाने लगा था। कई संस्थाओं, सरकारी प्रतिष्ठानों की मैं फिल्में बनाने लगा था। एक दिन 2-3 साल पहले वे अचानक बिना सूचना दिये मेरे चैनल माउण्टेन स्टूडियो आये। और कहने लगे अब तू मुझे भी वीडियो चलाना व एडिटिंग सिखा। मैने कहा स्ट्डियो आपका है जो इच्छा करे। कहने लगे अबसे मैं कुछ समय तेरे स्ट्डियो में बैठा करूंगा। मैने कहा यह मेरे लिए अहोभाग्य होगा। कमल दा कुछ डाॅक्यूमेन्ट्रीज बनाना चाहते थे, लेकिन उड़ते पंक्षी का कभी कही एक ठिकाना रहा है। 2009 से मै युगवाणी में ‘‘पहाड़नामा‘‘ कालम लिख रहा हूं। युगवाणी के मुख्यपृष्ठ पर अधिकतर कमल दा के फोटो छपते थे। बीच-बीच में ऐसा सिल-सिला बना कि हर 2-3 अंक के बाद मेरे फोटो भी युगवाणी के पृष्ठ पर छपने लगे। वाह गुरू कमाल की फोटोग्राफी कर रहे हो जेपी गुड कमल दा हमेशा प्रोत्साहित करते रहे। गुरू शिष्य का काॅम्पटीशन चलता रहा। पिछले एक डेढ़ साल से तो कमल दा ने युगवाणी के मुख्य पृष्ठ पर कब्जा ही जमा दिया था। मैने कहा गुरू अब तो आपने मुख्यपृष्ठ पर धरना दे दिया है, हंसने लगे और कहने लगे क्या करूं नाम ही मुख्य पृष्ठ की कहानी है। आज कमल दा चले गये है मुख्य पृष्ठ फिलहाल खाली है किसी नये फोटोग्राफर, घुमक्कड़ लेखक के लिए वो जेपी भी हो सकता है या कई और नये नाम जिन्हे कमल दा ने अपने बच्चों की तरफ सैंता, पाला, पोसा व प्रोत्साहित किया है। कमल दा को अश्रुपूर्ण विदाई।