रूद्र तीर्थ – रुद्रप्रयाग
दीपा रावत पंवार
नगाधिराज हिमालय के पवित्र आँचल सदियों से संसार में अपने अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य एवं धार्मिक पवित्रता के कारण आकर्षण का केन्द्र रहे है।
गढ़वाल हिमालय प्रचीन काल से ही देवभूमि में अनेक पतित-पावन आनन्ददायी सरोवर, कुण्ड़, निर्झर पावन नदियां, प्रसिद्ध तीर्थस्थल एवं प्रयाग हैं। जिनकी महत्ता आज भी विद्यमान है। उत्तराखण्ड़ के प्रमुख तीर्थ स्थानों में यहां श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक पंच प्रयाग, पंच बदरी और पंच केदार जनमानस में प्रसिद्ध रहे हैं। इनमें से पंच प्रयाग जैसे खूबसूरत मनोहारी दृष्य कम ही दर्शनीय होते है। इन पंच प्रयागों में से एक प्रयाग है रूद्रप्रयाग। सबसे सुन्दरतम् एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर यह प्रयाग अपना अलग ही स्थान रखता है। मुख्य यात्रा मार्ग में ऋषिकेश से मात्र 135 कीमी0 की दूरी पर रूद्रप्रयाग जनपद में यह प्रयाग विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थान बद्रीनाथ व केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है। बद्रीनाथ व केदारनाथ के लिए अलग-अलग मार्ग यहीं से विभाजित होते हैं। यहाँ पर केदारनाथ से आने वाली पवित्र मन्दाकिनी और बद्रीनाथ अलकापुरी से आने वाली अलकनन्दा का संगम होने के कारण धार्मिक रूप से अत्यन्त महवपूर्ण स्थान है। यह स्थान पवित्र रूद्रतीर्थ है। यहाँ पर भगवान रूद्रनाथ जी का प्राचीनतम् सुन्दर मन्दिर है। अभी तक बहुत कम जनमानस को यह मालूम होगा कि रूद्रतीर्थ रूप्रप्रयाग ही संगीत का उत्पत्ति स्थान है। यहाँ पर देवर्षि नारद मुनि ने ‘‘ओम् नमः शिवाय’’ मंत्र का जाप करके भगवान रूद्रदेव की तपस्या की थी तथा भगवान शिव ने नारद को यहां पर प्रत्यक्ष दर्शन दिये थे। फिर यहीं एक शिला पर नारद ने संगीत एवं गायन विद्या का पूर्ण ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त किया था। इसे नारद शिला के नाम से जाना जाता है। प्रसिद्ध पुराण केदारखण्ड में इस पवित्र स्थान का उल्लेख इस प्रकार है।
आलोकं पर्वतं विप्रं, भावनागगिरी भवेत,
पर्णाशनाश्रमः प्रोक्तो रूद्रक्षेत्रं विशेषतः।
गंगाया संगमो यत्र नदी मन्दाकिनी शुभा।।
(केदारखण्ड अध्याय-114 (10)
कहते है कि यहां पर गोपाल सिद्ध नामक एक ब्राह्मण ने शिव मंत्र का जाप कर भगवान शिव से सर्वगत्व तीन वरदान प्राप्त किये थे। रूद्रप्रयाग तीर्थ यात्रियों एवं प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थल है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, हेमकुण्ड, पंच बदरी, पंच केदर एवं कई अन्य तीर्थ स्थानों, बुग्यालों व प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर पर्यटक स्थलों को जाने के लिए यहीं से गुजरना पड़ता है। यहाँ पर रात्रि विश्राम के लिए टूरिस्ट लॉज, विश्राम गृह, होटल एवं छोटे-छोटे रिसॉर्ट भी विकसित हैं। रूद्रप्रयाग में ही मुख्य बाजार से लगभग एक-डेड कीमी0 पूर्व ऋषिकेश मार्ग पर गुलाबराय नामक प्रसिद्ध पौराणिक यात्रा चट्टी रही है। यहां पर भी अब कई छोटी-बड़ी जलपान की दुकानें व होटल, टूरिस्ट लॉज इत्यादि बन गये है। यहां पर स्वच्छ, शीतल एवं मृदु जल का एक प्राकृतिक स्रोत है। यहां का जल पीकर मन तृप्त हो जाता है और यात्रा की सारी थकान पल भर में दूर हो जाती है। इसी स्थान पर विश्व प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट ने 125 से अधिक व्यक्तियों को मारने वाले नरभक्षी बाघ को मार गिराया था। उस बाघ का स्मृति स्थल व पिंजरा आज भी यहां स्थित है। इस नरभक्षी बाघ पर जिम कॉर्बेट ने एक विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘‘मेन इटिंग लिओपार्ड़ ऑफ रूद्रप्रयाग’’ लिखी थी। जिस भी देशी-विदेशी पर्यटक ने इस पुस्तक का अध्ययन किया होगा, वह तो घड़ी भर यहां पर रूके बिना नहीं रह सकता।
रूद्रप्रयाग से लगभग 4 किमी0 की दूरी पर अलकनन्दा के तट पर स्थित कोटेश्वर तीर्थ यहां के समस्त स्थानीय क्षेत्र का पवित्र आस्था का केन्द्र स्थल है। इसे करोड़ों देवताओं का निवास स्थान प्रदान करने वाला स्थल कहा जाता है। यहां पर नदी तट पर एक गुफा के अन्दर अनगिनत छोटे-छोटे शिवलिंग एवं पानी के कुण्ड है। इन शिवलिंगों के मध्य एक छोटा सा चमकदार शिवलिंग है। जिसे छूकर श्रद्धालु अपने को धन्य महसूस करते है। वैसे तो यहाँ स्थानीय श्रद्धालु हमेशा आते रहते है। लेकिन श्रावण माह में यहाँ श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। श्रावण के प्रत्येक सोमवार को तथा शिवरात्रि को यहाँ मेले लगते है। इस स्थान पर खुदाई के दौरान पाषाण कालीन मन्दिरों के अवशेष दबे मिले। कोटेश्वर से ढाई-तीन कीमी0 की दूरी पर रूद्रप्रयाग-चोपड़ा मोटरमार्ग पर उमरानारायण नामक एकान्त स्थान पर लक्ष्मीनारायण के प्राचीन मन्दिरों का एक समूह है। पहले यहाँ पर तप्त कुण्ड स्थित थे। आज यहाँ स्वच्छ, शीतल जल कुण्ड विद्यमान है। इन पुराने ध्वस्त कुण्डों का पुनःनिर्माण किया गया है। प्रकृति की गोद में स्थित इस सुरम्य आस्था के केन्द्र में बैठने से मन में एक आलौकिक शक्ति का संचार महसूस होता है। इस सांसारिक भाग-दौड़ से थक कर इस स्थान पर बैठने से चित्त को अप्रतिम शान्ति की अनुभूति प्राप्त होती है। यहाँ पर हर मंगलवार व शनिवार को कीर्तन-भजन का आयोजन होता है। दूर-दूर के गांवों से श्रद्धालु यहाँ इस दिन कीर्तन में शामिल होने के लिए आते है तथा दूर-दराज क्षेत्र के श्रद्धालु यहीं रात्रि विश्राम भी करते है।
रूद्रप्रयाग के पूर्व में 15 किमी0 की खड़ी चढ़ाई पार कर 3000 मी0 की उंचाई पर स्थित हरियाली देवी एक प्रसिद्ध स्थानीय तीर्थ स्थल है। यहां पर दीपावल को विशाल मेला लगता है। यह स्थान ट्रैकिंग, रॉक क्लांइबिंग व पर्वतारोहण का प्रशिक्षण केन्द्र बनता जा रहा है। रूद्रप्रयाग में उत्तराखण्ड राज्य के जिला रूद्रप्रयाग का मुख्य कार्यालय होने से काफी विकसित हो गया है। इसके अलावा यहाँ दूरदराज के गांवों का मुख्य बाजार भी है। किन्तु प्रसाशनिक व सरकारी उपेक्षा के कारण कई महत्वपूर्ण स्थलों का विकास नहीं हुआ है। यदि रूद्रप्रयाग का सुनियोजित विकास किया जाय तो यहाँ का पर्यटन विकास व क्षेत्र का आर्थिक विकास संभव हो सकेगा।