देव और रागस

व्योमेश जुगराण
पौड़ी। तब शहर इतना तंग नहीं था। मकानों व घरों के आसपास खाली जमीन/खेत भी खूब हुआ करते थे।
ठंडी तासीर के कारण बरसात इस शहर पर कुछ अधिक ही कृपालु रहती थी। हफ्तों तक निरंतर बारिश और कोहरा। खूब धुला-धुला और हरियाला माहौल। पर, जगह-जगह कच्चे रस्ते-पुश्ते-भीटे बहा ले जाते डरावने मटमैले रौले-बौले भी। ऐसे ही एक बौले (बरसाती नाला) को हमारे मोहल्ले में भी उत्पात मचाते सालों हो गए थे। ऊपर कंडोलिया से इकट्ठा होकर पानी जब बहाव की शक्ल में नीचे को रफ्तार पकड़ता तो कंडोलिया रोड पर बने एक बड़े से पिट में जा घुसता। और फिर इस पार ठीक हमारे मुहल्ले के ऊपर किसी गुस्सैल झरने की तरह फूट पड़ता। अब उसका वेग और शोर दूना-चौगुना हो जाता। सब अपने-अपने बचाव में लगे रहते और ऊपर के खाली खेतों में खाइयां खोदकर उसका रास्ता बदलने का उपक्रम करते। लेकिन एक का बचाव तो दूसरे का खतरा। बस फिर लड़ाइयां और कोहराम। खासकर पांच-छह परिवारों के बीच तो बरसात भर कुट्टी रहती थी। बावजूद इसके सबके दस्तखत वाली एक अर्जी कभी डीएम साब को तो कभी नगर पालिका और कभी एक्जीक्यूटिव इंजीनियर को लिखने का समानांतर दस्तूर भी चलता रहता। दरअसल बौले से सबसे अधिक पीडि़त हम ही थे और हमारे खेत का एक हिस्सा इसका स्थायी रास्ता बनकर गधेरे में बदल चुका था। लिहाजा अर्जी की पहल हमारी ओर से ही होती। फिर पिता शिक्षक थे तो कागजी कार्रवाई उन्हें ही आगे कर संपन्न होती। उस साल शहर में नए डीएम आए थे। हमेशा की तरह अर्जी बनी और रस्मी तौर पर पहुंचा दी गई। वही सब लिखा था कि पानी के इस खौफनाक बहाव और आवाज से खासकर बच्चे बुरी तरह डर जाते हैं। अंग्रेजी मे शब्द प्रयोग किया गया था- monster यानी राक्षस।
उस रोज भारी बारिश हो रही थी। रागस अपने रौद्र रूप में उफन रहा था। वाकई डर लगता था कि कहीं सब तहस-नहस न कर दे। अचानक किसी फिल्मी बॉस की तरह सिर से लेकर नीचे तक रेनकोट पहने और छाता ओढ़े छह फुट्टा एक शख्स हमारे चौक में आकर पिताजी को पूछने लगा। उसकी नजर ऊपर उबड़-खाबड़ पाखे से नीचे आ रहे गहरे मटमैले बौले पर थी। जीं हां, वह नए डीएम साब थे। मुहल्ले में हलचल मच गई। सब लोग इकट्ठा हो गए। अब डीएम साब आगे-आगे और मुहल्ला पीछे-पीछे। मोटी बारिश में झाड़-झंकाड़ और उबड़-खाबड़ रस्ते पर हाथपांवों के सहारे डीएम साब चढ़ाई चढ़ते गए और अंतत: कंडोलिया रोड पर बने उस खूंखार पिट तक जाकर ठिठक गए। उन्होंने तसल्ली से मुआयना किया और फिर आश्वासन देकर सब लोगों से विदा ली। एक सप्ताह के भीतर ही बौले का काम-तमाम हो गया। जो काम सालों से नहीं हो सका था, चुटकी में हो गया। मुहल्ले में ‘देव’ आया था, रागस कैसे ठहर पाता। आपको दिलचस्पी होगी कि उस देव का नाम क्या था। जी हां, वो थे- केरलवासी लंबी छहररी काया और चेहरे पर बेहतर फबती दाढ़ी वाले युवा आईएएस टी. जॉर्ज जोसेफ। यूपी कैडर का यह अधिकारी बाद में कई चुनौतीपूर्ण दायित्वों को निभाता देखा/सुना गया।
लेख़क वरिष्ठ पत्रकार हैं
फोटो सौजन्य – गढ़वाल – उत्तराखंड ब्लागस्पाट