November 22, 2024



पहाड़ की स्वर कोकिला-रेखा धस्माना उनियाल

Spread the love

जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’


सन् 1983 में प्रसिद्व कुमाऊँनी गायक श्री मोहन सिंह मनराल ने एक नवोदित गायिका के साथ ‘‘मेरू बाजू रंगा रंग विचारी…’’ कैसेट में रिकार्ड किया तो यह गीत रातों-रात श्रोताओं के जुबान पर चढ़ गया।


सबने यही पूछा कि ये गायिका है कौन? जिसे माँ सरस्वती का इतना वरदान मिला। तो जनाब वह नवोदित गायिका रेखा धस्माना उनियाल के इतर हो भी कौन सकती थी। फिर दूसरा कैसेट कुमाऊँ के सदाबहार गीतकार व गायक गोपाल बाबू गोस्वामी जी के साथ निकला। इसके दो गाने सदा के लिए एसे हिट हो गए कि अभी तक लोगों की जुबान पर चढ़े हैं। इनमें पहला गीत है, ‘‘ओ भिना कसके जानो द्वारहाटा….’’ और दूसरा गीत ‘‘मोहना मेरू…..।’’ यह सिलसिला अब कहां थमने वाला था। जगदीश बकरोला जी के साथ गाया रेखा जी का ‘‘मितै जुखाम लग्यूं च…’’ ने लोकप्रियता हासिल कर दी। अब यह नवोदित गायिका किसी परिचय की मोहताज नहीं रही। रेखा धस्माना उनियाल का जन्म रूद्रप्रयाग के जनपद की बचणस्यूं पट्टी के छतोड़ा गाँव में 9 मार्च 1964 में हुआ था। लेकिन जन्म के कुछ वर्षों में उन्हें अपने पिता के साथ दिल्ली आना पड़ा। यहां रेखा जी के पिताजी बीर अर्जुन प्रेस में कार्यरत थे। स्कूल से लेकर कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली में ही हुई। बचपन भी महाशहर में ही गुजरा। गाँव से इतनी दूर व भाषा बोली के माहौल से अलग शहरी वातावरण में रहने के बावजूद अपनी गढ़वाली बोली भाषा में महारत व उसे गायन के क्षेत्र में लगाकर गाना कोई विलक्षण प्रतिभा का धनी ही हो सकता है। घर में निश्चित रूप से गढ़वाली बोली-भाषा, रीति-रिवाज का वातावरण रहा होगा। इसका असर बचपन से रेखा जी के जीवन पर पड़ा। कहावत है कि जो जहां जन्म लेता है वह उसकी मिट्टी की गंध, पानी का स्वाद, प्रकृति का स्वरूप और हवा की ताजगी वहां के गीत-संगीत, संगति, परंपरा तो खून में घुल ही जाती है, और खासकर उसे जिसे अपनी मिट्टी, जननी जन्म भूमि से प्यार हो रेखा जी भी इसी मिट्टी की बनी एक संवेदनशील गायिका है। जो आज भी रोज रियाज करना नहीं भूलती। रेखा जी की इस प्रतिभा को पहचाना उनके चचेरे भाई सुप्रसिद्व नाटककार, लेखक, संपादक (दूरदर्शन सामाचार) श्री राजेन्द्र धस्माना जी ने पहले पहला गायन स्कूल में शौकिया तौर पर किया। लेकिन बडे़ भाई का प्रोत्साहन रेखा की हिम्मत बढ़ा चुकी थी। रेखा को गायन स्टेज परफारमेन्स कैमेट फिल्म में माँग बट गई। रेखा धस्माना उनियाल जी की गायिकी के दूसरे पड़ाव में रेखा जी की जुगलबन्दी नये दौरे के लोकप्रिय गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी के साथ शुरू हुई। यह दौर उत्तराखण्डी गायन, गीत व संगीत का स्वर्ण काल बन बैठा। नेगी जी के साथ गाये ‘‘नयूं-नयूं ब्यों च…’’, ‘‘धरती हमारा गढ़वाल की…’’, ‘‘नारंगी सी दाणी…’’, ‘‘ना जा, ना जा तै भ्येलू पाखाड़, जिदेरी घसेरी…’’ आदि गीत सदाबाहर गीतों में अमर हो गये। रेखा ने अपने समकालीन प्रसिद्व गायकां स्व0 चन्द्रसिंह राही, किशन सिहं पंवार, संतोष खेतवाल, देवराज रंगीला, हरीश शर्मा, बीरेन्द्र सिहं नेगी, विजय सकलानी, प्रताप सिहं आदि के साथ कई गीतों का गायन किया। एकल कैसेट ‘‘जुन्याली रात’’ को भी श्रोताओं ने हाथां-हाथ लिया।
1988 में रेखा का विवाह राकेश उनियाल जी के साथ हो गया। वे फिर अपने पति के साथ भारत के दूसरे महानगर मुम्बई में पहुँच गई। गीतों का सिलसिला मुम्बई जाकर अब नये स्वरूप में आया। गढ़वाली फिल्मों ‘‘बेटी ब्वारी’’, ‘‘बंटवारू’’ और ‘‘मयालू परांण’’ में रेखा जी ने गायन शुरू किया। अभी तक गढ़वाली व कुमाऊँनी में रेखा जी की 58 कैसेट व डी0वी0डी0 आ चुकी हैं। उत्तराखण्ड के साथ-साथ पूरे देश में रेखा जी के 100 से ज्यादा स्टेज शोज हो चुके हैं। आकाशवाणी दिल्ली, लखनऊ, नजीबाबाद, दूरदर्शन दिल्ली, लखनऊ व उत्तराखण्ड व कई टेलीविजन चैनलों ने रेखा जी के गीतों स्टेज शोज गायन का प्रसारण किया। उत्तराखण्ड आन्दोलन में प्रसिद्व जन कवि डॉ0 अतुल शर्मा के साथ ‘‘लड़ के लेंगे, भिड़ के लेंगे, छीन के लेगे उत्तराखण्ड’’ गीत ने आन्दोलन को एक ऐतिहासिक ताकत दी। जिसे लोग आज भी गाते है।
इसी दौरान देवी प्रसाद सेमवाल जी के गीत ‘‘दीदी भुल्यों, चाची बड्यों, अगने आवा तुम’’ व प्रसिद्व कवि, लेखक, पत्रकार व रेखा जी के ससुर स्व0 धर्मानन्द उनियाल ‘पथिक’ जी का उठा युवा गढदेश का गीत गाकर रेखा जी ने अपने सरोकारों के लिए अपना ऐतिहासिक योगदान किया। हाल ही में रेखा उनियाल ने अपने स्वर्गीय ससुर ‘पथिक’ जी के लिखे गीत उत्तराखण्ड दर्शन को सत्या अधिकारी के साथ गाया। जो उत्तराखण्ड के इतिहास में पहला 23 मिनट का एकल गीत जो 16 छन्दों में है। इसका फिल्मांकन भी किया गया। यह वीडियो एलबम उत्तराखण्ड कि संस्कृति, परम्परा, दर्शन हेतु यादगार प्रस्तुति है। जिसकी लोग भूरि-भिर प्रशंसा करते है। लोक संगीत के संरक्षण एवं संवर्धन में सत्त रूप से सक्रिय रेखा जी अब देहरादून में निवास कर रही है व नई पीढ़ी को गीत संगीत का निःशुल्क शिक्षण दे रही है। आकाशवाणी की प्रसिद्ध नाटककार व उद्घोषिका रह चुकी डॉ0 माधुरी बड़थ्वाल के साथ मिलकर उत्तराखण्ड की मांगल गीतां की परम्परा को संजने में लगी है। धाध सहित कई सामाजिक, सांस्कृतिक संस्थाआें से जुड़कर अपने पहाड़ की सेवा में लगी प्रेरक व्यक्तित्व की धनी रेखा धस्माना उनियाल को कई सम्मान भी प्राप्त हो चुके है। गोपाल बाबू गोस्वामी लीजेंड्री अवार्ड, यूफा, उफतारा, हिलांस जिसमें प्रमुख है। हाल ही में बने प्रथम उत्तराखण्ड फिल्म विकास परिषद् में श्री मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उन्हें परिषद् में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में मनोनीत किया। पहाड़ की स्वर कोकिला, पहाड़ की लता, आशा क्या-क्या नाम दें। साक्षात् सरस्वती की मूर्ति साधारण जीवन चर्चा दूर-दूर तक अहम से दूर रेखा धस्माना उनियाल पहाड़ की एक थाती है। ऐसी देवी को बार-बार प्रणाम।