एक छोटा सा गांव मोहोली
रमेश पाण्डे
बागेश्वर जनपद की नाकुरी पट्टी में एक छोटा सा गांव है मोहोली।
करीब एक दसक पहले तक मोहोली पचार गांव पंचायत के राजस्व गांव के रूप में स्थापित था। मोहोली मोटर सड़क से लगा गांव है, पीने के पानी की लाइनें भी गांव में बिछी हैं, क्यों कि गांव में पानी है तो नहरें और टंकियां भी बनी ही हैं। गांव के किनारे में प्राथमिक पाठशाला भी है ही। एपीएल, बीपीएल, अन्त्योदय, सवर्ण, दलित श्रेणियों की आवादी भी गांव में है। धान और गेहूं की अच्छी पैदावार के लिये गांव नाकुरी भर में अलग पहचान बनाये हुए है। यह मोहोली का एक पक्ष है। नाकुरी पट्टी के करीब करीब मध्य स्थल पर बसे इस गांव में जो पुरातन धरोहर मौजूद है वह मोहोली का बहुत ही सुन्दर अतीत होने की गवाही देता है। क्या है वह पुरातन धरोहर पर विस्तार से जानने से पहले इस क्षेत्र में नाग मन्दिरों पर चर्चा कर ली जानी चाहिये। वर्ष 60-61 में पिथौड़ागढ जिला बनने से पहले आजदी मिलने के कुछ समय बाद विकास खण्डों की सीमायें खिचने से भी पहले के मानचित्र को खंगालें तो बागेश्वर नगर के समीप स्थित बालीघाट से लेकर थल के मध्य भाग को पुराणों में ख्याति प्राप्त नागों की उपस्थि का क्षेत्र मान सकते हैं। काली नाग, बासुकी नाग, बेड़ी नाग, फेड़ीनाग, धौली नाग, हरिनाग और पिंगई नागों के मन्दिर इसी क्षेत्र में स्थापित हैं। इन मन्दिरों की प्रचीनता के कोई दस्तावेज नही है। सभी नाग मन्दिरों में नागो की मौजूदगी सिलाओं के रूप में है।
मोहोली गांव फेड़ी नाग और हरि नाग पर्वतों के केन्द्र में स्थित है। इस स्थिति के अलावा पुगर नदी से मोहोली के बीच खडी चड़ाई पर बनी करीब हजार सीडियों की प्राचीनता का भी कोई पुख्ता प्रमाण नही है। दन्त कथाओं में इन सीड़ियों का निर्माण पाण्डवों द्वारा किया बोला जाता है पर बिना प्रमाण के। ये सीड़ियां जिस स्थान पर आ कर समाप्त होती हैं वहा दो बड़े चबूतरे और कई सारे बिर खम्ब गड़े हैं। इस प्रकार के बिर खम्ब नाकुरी और पुंगराउ में कई जगहों पर मिलते हैं। इन बिर खम्बों से करीब आधा किलो मीटर की दूरी पर तीन शिवालयों का एक समूह है। इन शिववालयों की तस्वीर जब पहली बार प्रख्यात पुरातन वेत्ता श्री यसोधर मठपाल जी ने देखी तो बिना देर किये बोल गये कि यह शिवालय बागेश्वर और बैजनाथ के शिवालयों से भी प्राचीन है। मेहोली की प्रचीनता का एक और दस्तावेज गांव में निवास करने वाले धामी परिवारें के रूप में मौजूद है। मोहोली के धामी शिखर, संज्ञाड़, भनार, फेड़ी नाग उधाण के पारम्परिक धामी भी हैं। यह परम्परा कितनी पुरानी है के पुख्ता प्रमाण भी मौजूद नही हैं। यदि नाग पन्थ के पतन और नाथ पन्थ के उदय के मार्ग से हो कर मोहोली की प्राचीनता टटोली जाये तो सायद मोहोली का सानदार अतीत ढूंडा जा सके।
(विस्तार से पढ़ें हिमालय के स्वर का आगामी अंक – बागेश्वर)