लेटी गांव की कहानी
रमेश पाण्डे ‘कृषक’
बागेश्वर जिला मुख्यालय से करीब 12 किलो मीटर दूरी पर लेटी गांव बसा है।
करीब करीब सवा पांच सौ की आवादी के इस गांव में लगभग सौ परिवार निवास करते हैं। द्याारा कोटियों का यह गांव बहुत बड़ा गांव तो नही है पर कृषि वाली नाप जोतें सिर्फ 80 एक्कड़ जमीन पर ही है। खेतों के रूप वाली इस 80 एकड़ जमीन के अलावा इससे थोड़ा कम बन्जर जैसी भूमि भी है। यह भूमि सरकारी दस्तावेजों में नाप है या बेनाप पर मैंने अधिक खोजबीन इस लिये नही की कि जब तक पहाड़ पर के गांवों का शुद्ध बन्दोबस्त नही हो जाता तब तक भू आलेखों पर टिप्पड़ी गांवों के अन्दर की सामाजिक अवस्थाओं के साथ कड़वी छेड़-छाड़ ही करेगी। लेटी गांव में अपने जल श्रोत तो हैं पर ये श्रोत ग्रीष्म काल में बहुत दुबले पतले हो जाते हैं। जिस जल श्रोत का यहां जिक्र किया जा रहा है यह वही श्रोत है जिस के होने पर ही लेटी गांव के पहले पूर्वज ने यहां आ कर बसने का मन बनाया होगा।
लेटी गांव एक, दो, चार बखाइयों में बसा गांव नही है। अपनी सुविधा के हिसाब से जिसे जहां ठीक लग रहा है वह वहां घर बना कर बस रहा है। बसासत की इसी फैलाहट के हिसाब से गांव में पैदल मार्गों और पेयजल आपूर्ति की परियोजनाये प्रस्तावित हो कर धरातल पर उतरती हैं। वर्ष 2007 में गांव की स्वैप पद्धति से बनी पेयजल योजना गांव की इसी फैलाहट के आधार पर रेखांकित हुई और बनी थी। तब गांव वालों के ना चाहते हुए भी इस योजना को एकल योजना मान कर गांव पंचायत को सोंप दिया गया। यह योजना गांव से करीब आठ किलो मीटर दूर के श्रोत से से बनी है। सीमित बजट से इतनी बड़ी योजना का रख रखाव सम्भव है ही नही। यही वजह है कि योजना समय से पहले ही जीण-क्षीण होती जा रही है। इस योजना को जल संस्थान अपने अधीन क्यों नही ले सकता है।गांव में जो जल रोत है वहां एक नौला भी है। इसी नौले के समीप प्षुओं के पानी नीने की व्यवस्था भी की गई है और भैंस खाल भी बनाई गई है। क्यो कि गर्मियों में इस जल श्रोत में पानी बहुत कम होजाता है इस लिये सिंचाई की गूल या नहर इस श्रोत पर बनाई ही नही जा सकती है। गांव के समीप ही थोड़ा नीचे मवाणी और रखुउडिया रनाम के दो सदा बहार जल श्रोत गधेरों के रूप में मौजूद हैं। विज्ञान के वर्तमान युग में पानी को 7-8 सौ मीटर लिफ्ट कर के सिचाई सुविधा की मांग बहुत महंगी मांग नही है। उर्जा प्रदेश में तो कतई नही। यही मांग पिछले दस सालों से लेटी गांव के लोग सरकार से कर भी रहे हैं। सायद कभी किसी सरकार को सदमत्ति आ जाये और लेटी भी सिंचित गांव की सूची में दर्ज हो जाये।
लेटी गांव वर्ष 13-14 में मोटर मार्ग से जुड़ा था। अपने नाम और गुण के अनुसार लो नि वि के दर्शन इस गांव की सड़क में यत्र तत्र सर्वत्र हो जाते हैं। निर्माा के समय आंव के पंचायत धर की बुयिाद तक हिला दी गई परिणाम कि पंचायत घर में दरारें पड़ चुकी हैं। पंचायत राज विभाग के उच्चाधिकारियों ने लो नि वि की इस करतूत की शिकायत जिला धिकारी से करना भी जरूरी नही समझा। गांव के प्रधान ने इस सम्बन्ध में जहां तक सम्भव था संज्ञान तो करवा ही दिया पर नक्कार खाने में तूती की आवाज के कोई मायने नही होते हैं। सड़क निर्माण का 292500 रुपये के मुआवजे की तस्दीक अमीन ने बना कर दो साल पहले ही विभाग को दे दी है पर विभाग कानों में जूं रैंगने की परवाह कब करते हैं। विभागों को तो सिर्फ विस्फोट ही सुनाई देते हैं। लेटी गांव के प्रधान गोविन्द ने भारत सरकार और राज्य सरकार को मुफत में एक सलाह दी है कि गिरेछिना से देवल धार तक मोटर मार्ग को जोड़ दिया जाये तो पालड़ी, झिरोली, जामणी बैण्ड होते हुए सेराघाट के रास्ते रानी खेत से पिथौरागढ़ और धारचूला की दूरी बहुत कम हो जायेगी जो सेना की आवा जाही में होने वाले व्यय को बहुत कम कर देगा। अच्छी और मुफ्त की सलाह के अपने देश में कोई मायने सायद नही होते।लेटी गांव में हाईस्कूल तक का विद्यालय है। इण्टर करने के लिये यातो ज्ञारह किलो मीटर दूर क्वैराली जाना होता है या फिर 12 कि0मी0 दूर बागेश्वर आना पड़ता है। यही दूरी हाई स्कूल के बाद 70 प्रतिशत बच्चों की पढ़ाई रोक देती है। पढ़ाई छोड़ने वालों में बालिकाओं का प्रतिशत तो 95 तक चला जाता हैं।चिकित्सा सेवा के बारे में बता दिया जाये कि जब बागेश्वर विकास खण्ड का ही अपना कोई पीएचसी नही है तो लेटी में प्राथमिक स्वस्थ्य केन्द्र की मांग को कौन सुनेगा।