पहाड़ पत्रकारिता संदर्भ-जय सिंह रावत
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
अपने पहाड़ में पत्रकारिता लगातार रसातल की ओर जा रही है। यह स्थिति पहाड़ की तो है ही अमूमन यह स्थिति पूरे देश की है। पत्रकारिता के कुकर्मों, राजनीति के गंदलाते वातावरण ओर नौकरसाही के घाल-मेल ने लोकतंत्र के सभी स्तम्भों को हिलाकर रख दिया है।
पिछले कुछ महिनों से पत्रकारिता और राजनीति के गंदलाते घाल-मेल ने पत्रकारिता की रही बची साख को इतना धक्का पहुंचाया कि लोगों की पत्रकार व पत्रकारिता से विश्वास उठ गया। यह घटना पहाड़ी राज्य के विकास पर इतनी चोट पहुंचा सकता है किसी ने सोचा भी नहीं था। आज पत्रकारिता और राजनीति दोनों हमाम में नंगी हो गई हैं। पहाड़ में पत्रकारिता का जो ऐतिहासिक रूतबा था आज वह कहीं खो गया है। पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग, ठेकेदारी, गलेदारी व माफियागिरी का काम हो रहा है। इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनल हाथ में लागोयुक्त माईक पकड़कार तथाकथित पत्रकोरां को जैसे ऐ के 47 पकड़ा दे रहा है और ये लुटेरे पहाड़ी राज्य को खोद-खोद कर लूट रहे हैं। यही हाल अखबारों व पत्रपत्रिकाओं का हो गया है। राज्य में भीषण बीमारी के रूप में फैल चुका भ्रष्ट्राचार इसको और संजीवनी दे रहा है। नौकरसाह अपने अधीनस्त या उच्चाधिकारियों की पोल खोलने के लिए विकाऊ पत्रिकाओं, अखबारों, चैनलों के पत्रकारों को रूपया भेंट कर जैसा चाहे वैसा लिखवा दे रहा है। यही हाल राजनीति में भी चल रहा है। वो थोड़ा सकून इस बात का है कि सोशियल मीडिया व सिटिजन पत्रकारिता ने परम्परागत व तथाकथित पत्रकारिता को ठेंगा दिखाकर एक नई राह तैयार कर दी है। दरअसल पत्रकारिता एक गम्भीर व जनसेवा का माध्यम रहा है। जिसमें खबरों की सत्यता, खोज, विष्लेषण व अध्ययन पत्रकारिता की आत्मा है। आज पत्रकार बनने के लिए कोई योग्यता मायने नहीं रखती, हाईस्कूल फेल अखबार बांटने व बेचने वाला रिर्पोटर बन गया है। इसी पत्रकारिता की उधेड़बुन के बीच एक शकून भी खबर है। पहाड़ के पत्रकारिता क्षेत्र में 40 वर्षों को कार्यरत वरिष्ठ पत्रकारद्व संपादक व लेखक जय सिंह रावत की इन दिनों उनकी नई पुस्तक ‘‘ स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता’’ पाठकों के समक्ष है। 312 पेज की यह पुस्तक पहली ऐसी पत्रकारिता की किताब हैद्व जो गुलाम भारत, राजशाही के दौर में पत्रकारिता, पत्रकारों, लेखकों, तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को सामने रखती है। विशेषकर यह पुस्तक पत्रकारिता के गम्भीर विषय, समाज व अन्य क्षेत्रों से जोड़ने व उसके अनुकूल पत्रकारों के व्यक्तित्व कृतित्व से परिचित करवाने का कार्य करेगी। पहाड़ के दर्जनां पत्रकार जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, जनसेवी व आन्दोलनकारी भी रहे हैं। नई व युवा पीढ़ी को पत्रकारिता के गम्भीर विषय, समाज व अन्य क्षेत्रों से जोड़ने व उसके अनुकूल पत्रकारों के व्यक्तित्व कृतित्व से परिचित करवाने का कार्य करेगी। पहाड़ के दर्जनों पत्रकार जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, जनसेवी व आन्दोलनकारी भी रहे हैं। नई पीढ़ी उनके संघर्षों से बहुत कुछ सीख सकती है। जय सिंह रावत की यह पुस्तक पांच संदर्भों में विभाजित है। संदर्भ एक में पत्रकारिता का भारत में उदय व उत्तराखण्ड में प्रवेश के इतिहास को दर्शाता है कि कैसे मसूरी उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का जन्म स्थान बना व हरिद्वार कुम्भनगरी में अखबारों का प्रकाशन सुलभ हो पाया। संदर्भ दो में स्वाधीनता आन्दोलन में अखबारों की भूमिका, अंग्रेज पत्रकारों का रोल, राजशाही के दौरान टिहरी के ढंढरी पत्रकारों की भूमिका को बखूबी लिखा गया है। संदर्भ तीन में तत्कालीन रूढ़िवादी समाज, अंग्रेजों व राजशाही के दौरान जन शोषण, अत्याचारों के विरूद्व जनता को एकजुट करने व जनचेतना फैलाने में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता ने ऐतिहासिक योगदान दिया जो आज की पत्रकारिता व पत्रकारों की आंख खोलने के लिए पर्याप्त संदर्भ है। पुस्तक में जय सिंह रावत लिखते है कि उस वक्त अखबार को लोग सगे परिजनों की चिट्ठियों की तरह पढ़ते, पढ़ाते व सहेजकर भी रखते थे।
स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता की इस महत्वपूर्ण पुस्तक के संदर्भ चार में पत्रकारिता और कानून, मानहानि, कानून व भारतीय प्रेस परिषद जैसे महत्वपूर्ण व पढ़ने लायक अध्याय है, जिसे हर पत्रकार व लेखक को मनोयोग से पढ़ना व उसे अपनाना भी चाहिए। खासकर नये पत्रकारों व युवा पीढ़ी के लिए यह अध्याय बाईबिल व धर्मग्रन्थ के सूत्र वाक्यों जैसा है। जय सिंह रावत अपनी नई पुस्तक के अन्तिम संदर्भ पॉच में स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान जन गीतों की भूमिका का ेभी समाने रखते हैं विशेषकर ऐसे जन गीतों को भी संकलित किया गयाह ै जिसने अंग्रेजी शासन व राजशाही की चूलें हिला दी थीं। इसी संदर्भ में ऐतिहासिक अखबारों के पृष्ठों मुख पृष्ठों के दुर्लभ फोटों चित्रों ने इस पुस्तक को पत्रकारिता इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बना दिया है।
1875 में प्रकाशित द इंडियन फॉरस्टेट, गढ़वाल समाचार जिसे गिरिजादत् नैथाणी ने दुगड्डा से प्रकाशित किया था, अल्मोड़ा अखबार, पुरूषार्थ, श्रदा, गुरूकुल, गढ़देश, शक्ति, स्वराज संदेष, कर्मभूमि, विशाल कीर्ति, सत्यवीर, क्षत्रियवीर, गढ़वाली, उत्तर भारत, प्रजाबन्धु, गोरखा संसार, हिमालय, कांगेस बुलेटिन, नव प्रभात, गढ़वाल हितेषीद्व और टिहरी राजशाही को स्वतंत्र भारत में शामिल करने के प्रजामण्डल आन्दोलन का प्रमुख समाचार पत्र युगवाणी की ऐतिहासिक भूमिका का सफलता की खबरों का भित्तयुक्त इतिहास जय सिंह रावत की पुस्तक की विशेषता है।
स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता पुस्तक में न सिर्फ पत्र पत्रिकाओं के दुर्लभ चित्र संकलित हैं बल्कि तत्कालिन पत्रकारों व संपादकों के चित्रों को ढूंढ ढूंढकर एकत्र करना एक तपस्या की तरह है। पुस्तक के अनेक अध्यायों में सरदार जय सिंह भाटिया आचार्य गोपेश्वर कोठियाल, श्याम चन्द्र नेगी, सत्य प्रसाद रतूड़ी, यज्ञवलम्ब दत्ता, एस0पी0 गांधी, जितेन्द्र नाथ, राधाकृष्ण कुकरेती, हर्षदेव ओली, श्री देव सुमन, राधा कृष्णन वैष्णव, राम सिंह धोनी, वैरिस्टर मुकुन्दीलाल, राजा महेन्द्र प्रताप सिंह, भैरव दत्त धूलिया, प्रोफेसर भगवती प्रसाद पांथरी, भगवान दास मुल्तानी, भक्तदर्शन, बदरीदत्त पाण्डे, परिपूर्णानन्द पैन्यूली, नरदेव शास्त्री, तेजराम भट्ट, बंसीलाल पुण्डीर, ठाकुर चन्दन सिंह, कोतवाल सिंह नेगी, अनुसूर्या प्रसाद बहुगुणा, जैसे अनेकों पत्रकारों लेखकों व स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के दुर्लभ चित्र व जीवन परिचय पहाड़ी राज्य की पत्रकारिता के स्वर्णिम काल की गाथा कहती है।
पत्रकारिता के उसूलों सिद्वान्तों व अपने लेखकीय धर्म को आज की पत्रकारिता के उलजलूल दौर में भी एक नई आशा की किरण जगाते जय सिंह रावत ने ग्रामीण पत्रकारिता, उत्तराखण्ड जन जातियों का इतिहास एवं हिमालयी राज्य संदर्भ कोश जैसी अन्य पुस्तकें का भी लेखन किया है। अनेक पत्रपत्रिकाओं में रिपोटर से लेकर संपादक व संपादकीय सलाहकार से लेकर इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनलों में विशेषज्ञ के रूप में सक्रिय जय िसिंह रावत आज की पत्रकारिता पीढ़ी के समक्ष के आदर्श पत्रकार व लेखक की भूमिका में हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में अनेकों सम्मान से सम्मानित रावत जी को राजस्थान पत्रिका के प्रतिष्ठित के0सी0 कुलिस अन्तर्राष्ट्रीय प्रिन्ट पत्रकारिता पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। पहाड़ी प्रदेश के पत्रकारिता के शसक्त हस्ताक्षर जय सिंह रावत जी को ‘‘स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता’’ पुस्तक लेखन हेतु ठेर सारी शुभकामनायें व अन्य पुस्तकों का इन्तजार।
अन्ततः आजकल जय सिंह रावत जी राजशाही व स्वाधीनता आन्दोलन के अग्रणी सिपाही व पूर्व सांसद परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी के जीवन संघर्षों पर नई पुस्तक लिखने का कार्य कर रहे हैं। टिहरी राजशाही व स्वतन्त्रता आन्दोलन में एक एतिहासिक हस्ती के बहाने हमें यह पुस्तक दुलर्भ जानकारियों को सामने लाने वाली है।